संदेश

2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुप्रिया पाठक का आलेख 'इंटरसेक्शनालिटी का स्त्रीवादी पक्ष'

चित्र
  सुप्रिया पाठक दुनिया की आधी आबादी होने के बावजूद आज भी स्त्रियां भेदभाव का शिकार हैं। यह प्रवृत्ति वैश्विक है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भेदभाव की ये परतें इकहरी न हो कर बहुस्तरीय हैं। स्त्री समाज के अन्दर यह भेदभाव जाति, नस्ल और वर्गीय तौर पर देखा जा सकता है। इसके लिए  इंटरसेक्शनालिटी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसे हिन्दी में 'अंतरक्षेत्रीयता' या 'अंतर्विभाजकता' भी कहा जाता है।  इसके अन्तर्गत संस्थागत नस्लवाद, वर्गवाद और लिंगवाद सहित भेदभाव  के कई रूपों पर एक साथ विचार  किया जाता है। इस सन्दर्भ में  यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अश्वेत स्त्री की मुक्ति के पश्चात ही संपूर्ण मानव समाज की मुक्ति संभव है। लिंग, वर्ग तथा नस्ल आधारित शोषण को सम्यक रूप से समझे बिना तथा उनके विरूद्ध एकजुट हुए बिना स्त्री मुक्ति संभव नहीं है। एलिस वाकर तथा अन्य वुमेनिस्ट विदुषियों ने इस बात पर ज़ोर दिया किया कि अश्वेत स्त्री के जीवनानुभव श्वेत, मध्यवर्गीय स्त्रियों की अपेक्षा न सिर्फ भिन्न हैं बल्कि उसके शोषण की परिस्थितियां भी अधिक जटिल हैं। सुप्रिया पाठक ...

अरुण जी का संस्मरण 'पेरिस मेट्रो के अनुभव''

चित्र
  किसी भी देश की संस्कृति को जानना हो तो स्थानीय यात्रा के लिए वहां की परिवहन व्यवस्था का उपयोग कीजिए। वहां आपको उस देश के तमाम लोग एक साथ दिख जाएंगे। उनका शिष्टाचार और व्यवहार दिख जाएगा। वहां की खूबियां और खामियां दिख जाएंगीं। पेरिस मेट्रो दुनिया की पुरानी और सुव्यवस्थित मेट्रो में से एक है। अरुण जी ने पेरिस यात्रा के दौरान वहां की मेट्रो की यात्रा करते हुए फ्रांस को देखने, समझने, जानने की कोशिश की है। इस यात्रा के दौरान ही उन्होंने यह अनुभव किया कि 'जो लहज़ा मेरे लिए सामान्य व स्वाभाविक है वह पेरिस के लोगों के लिए अशिष्टता की श्रेणी में आता है।' पेरिस यात्रा के अपने अनुभवों को अरुण जी ने शब्दबद्ध किया है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अरुण जी का संस्मरण 'पेरिस मेट्रो के अनुभव'। 'पेरिस मेट्रो के अनुभव' अरुण जी आप पेरिस भ्रमण के लिए गए और आपने मेट्रो से सफ़र नहीं किया? फिर तो आप पेरिस के एक महत्वपूर्ण पक्ष को देखने से वंचित रह गए। मेट्रो वहाँ की लाइफलाइन है। उसमें आपको पेरिस के आम जीवन के रूप-रंग, उसकी झलक, उसकी गति मिलती है। वहाँ के लोग, उनकी सभ्यता, संस्कृति...

शिवदयाल का आलेख 'जीवन में नयी अर्थवत्ता की खोज'

चित्र
  फणीश्वर नाथ रेणु  हिन्दी साहित्य में फणीश्वर नाथ रेणु अपने किस्म के अलग कहानीकार हैं। मौलिकता उनकी रचनाओं का प्राण तत्त्व रहा है। यह मौलिकता उनकी कहानियों के कथ्य से ले कर भाषा एवम शैली तक में सहज ही देखी जा सकती है। उनके बारे में शिव दयाल उचित ही कहते हैं कि 'वे अपने पात्रों को जमीन से जस का तस उठाते हैं उनकी कमियों और खूबियों के साथ, और मनकों की तरह कथा में पिरो देते हैं - अपने समय के सच को उद्घाटित करने के लिए।' 3 फरवरी को उनका जन्मदिन था। उनके जन्मदिन पर कल हमने कुमार वीरेन्द्र का आलेख प्रस्तुत किया था। आज उसी कड़ी में प्रस्तुत है शिवदयाल का  आलेख 'जीवन में नयी अर्थवत्ता की खोज'। एक आदिम रात्रि की महक ... 'जीवन में नयी अर्थवत्ता की खोज'                                    शिवदयाल      रेणु की मौलिकता की खूब चर्चा होती है। उनकी मौलिकता की थाह लेने के लिए शायद उन्हें कभी प्रेमचंद तो कभी बांग्ला कथा-परम्परा से जोड़ने की कोशिश की जाती है, और इस पर विवाद भी खूब होता रहा...

कुमार वीरेन्द्र का आलेख 'पतियाइए कि रेणु इलाहाबाद में रहे थे'

चित्र
  1921 में फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मशताब्दी वर्ष पूरे देश में मनाया गया। कई पत्रिकाओं ने रेणु जी पर अपने महत्त्वपूर्ण अंक प्रकाशित किए। अकादमिक जगत में भी रेणु जी की रचनाधर्मिता पर तमाम चर्चाएं आयोजित की गईं। इलाहाबाद तब साहित्य का गढ़ माना जाता था। इस इलाहाबाद से भी रेणु का अपना एक खास रिश्ता था। कुछ समय उन्होंने इलाहाबाद में भी बताया था। रेणु के इलाहाबादी जुड़ाव पर एक शोधपरक नजर डाली है युवा आलोचक कुमार वीरेन्द्र ने। कल रेणु जी का जन्मदिन था। हम पहली बार की तरफ से उनकी स्मृति को नमन करते हैं। आज कुमार वीरेन्द्र का जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं कुमार वीरेन्द्र का आलेख 'पतियाइए कि रेणु इलाहाबाद में रहे थे'। 'पतियाइए कि रेणु इलाहाबाद में रहे थे'                             कुमार वीरेन्द्र कुछ लोग कुछ दिनों के लिए कुछ जगहों पर कुछ-कुछ ऐसे रहते-बसते हैं कि वे जगहें और उनका बहुत कुछ उन प्रवासियों को बेचैन किए रहती हैं। यह बेचैनी जीवन भर अंदर-अंदर धधकती-भभकती रहती है।...