प्रिया वर्मा के कविता संग्रह पर जावेद आलम ख़ान की समीक्षा
 
विमर्शों का समय है यह। इस समय में लेखकों के द्वारा जोरो-शोर से विमर्शों की दुंदुभि बजाई जा रही है। ऐसे में अगर कोई कवि बिना किसी शोर के विमर्श का अहसास करा जाए तो उस पर ध्यान जाना स्वाभाविक है। प्रिया वर्मा ऐसी ही कवयित्री हैं। वे एहसासों को शब्दों में करीने से कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं कि अमूर्त भी मूर्त हो उठता हुआ। यह आसान नहीं होता। लेकिन कठिन को आसान बनाने की चुनौती से ही तो कवि जूझता है। युवा कवि जावेद आलम ख़ान प्रिया के कविता संग्रह पर बात करते हुए लिखते हैं "प्रिया वर्मा के यहां स्त्री विमर्श बिना किसी शोर के एहसासों में अभिव्यक्त होता है। स्त्री अस्मिता के लिए प्रिया सजग हैं और दमित इच्छाओं की सांकेतिक अभिव्यक्ति करती हैं। बगैर किसी वाद, विमर्श के स्त्री-पुरुष के बीच पसरी असमानता को सहजता से कविता में कह जाती हैं और पाठक कला के सौंदर्य के बीच अवसाद की हल्की सी अनुभूति करता चलता है। "कविता दो पंक्तियों के बीच होती है" - प्रिया की कविताएं सही मायने में इस कथन का प्रतिनिधित्व करती हैं।"  प्रिया को 2024 के भारत भूषण पुरस्कार के लिए चुना गया। अपनी संस्तुति में ...
 
 
 
