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राहुल राजेश के कविता संग्रह पर कुलदीप शर्मा की समीक्षा 'कितनी जरूरी है मुस्कान!'

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  राहुल राजेश हमारे समय के चर्चित कवि हैं। उनके पास कविता के सघन बिम्ब हैं जो और कवियों से अलग हैं। कम से कम शब्दों में बातों को कह जाना ही कवि की कारीगरी होती है। कुलदीप शर्मा उनके बारे में लिखते हैं 'अपनी कविताओं में राहुल कहे से ज्यादा अनकहा छोड़ देते हैं। कविता में इस तरह से अनकहा छोड़ देने की कला कविता को ऐसी ताकत देती है कि अनकहा जो छूट जाता है, वह कहे से ज्यादा मुखर हो उठता है। इस छूट गये के कारण ही कविता की वीथिका में नये अर्थ की खोज की शुरुआत होती है। यहीं से कविता का पाठक के साथ एक संवेदनात्मक रिश्ता बनता है। पाठक के लिए यह रिश्ता बेहद खास होता है, आत्मीयता से लबालब।' राहुल राजेश का तीसरा कविता संग्रह 'मुस्कान क्षण भर' हाल ही में प्रकाशित हुआ है। कवि को संग्रह की बधाई एवम शुभकामनाएं। कुलदीप शर्मा ने इस संग्रह पर समीक्षा लिखी है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  राहुल राजेश के कविता संग्रह  'मुस्कान क्षण भर'  पर कुलदीप शर्मा की समीक्षा 'कितनी जरूरी है मुस्कान!'   समीक्षा 'कितनी जरूरी है मुस्कान!' ('मुस्कान क्षण भर' पर बात) कुलदीप...

पल्लवी की कविताएँ

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  पल्लवी परिचय  नाम – डॉ पल्लवी  पिता का नाम – श्री जयराम  शिक्षा – एम. ए. (हिंदी साहित्य), पीएच. डी. (पूर्वाचल विश्वविद्यालय से ) गालियां दुनिया की प्रायः हर भाषा में पाई जाती है। जहां एक तरफ अपने वर्चस्व को प्रदर्शित करने की शब्दावली बन जाता है वहीं दूसरी तरफ कमजोर लोगों के लिए यह प्रतिरोध व्यक्त करने का अपना एक तरीका है जिसके जरिए वे अपनी हिकारत को व्यक्त कर सकते हैं। मन ही मन गाली देने से भला उन्हें कौन रोक सकता है। स्त्रियों को इस अपमान को कहीं अधिक झेलना पड़ता है। इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दुनिया की अधिकांश गालियां स्त्रीसूचक ही हैं। अपनी एक कविता में आक्रोश व्यक्त करते हुए कवयित्री पल्लवी लिखती हैं  : ' मैं काव्य का नहीं/ गाली का सृजन करना चाहती हूँ/ जब मनुष्य से कम चिन्हित होना/ अपमान लगे।/ उस गाली का/ मैं भजन करना चाहती हूँ।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं पल्लवी की कविताएं। पल्लवी की पाँच कविताएँ  मेरा पता  मुझसे मिलने के लिए  कभी फ़ोन नहीं करना  मैं जहाँ से गुज़री  वापस लौटी ही नहीं...

अकिन्वाड़े ओलुबोले शोयिंका की कुछ कविताएँ

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  शोयिंका पश्चिमी दुनिया की इस बात के लिए प्रायः तारीफ की जाती है कि वे स्वतन्त्रता और समानता में विश्वास रखते हैं। लेकिन यह अधूरा सच है। रंग और नस्ल के आधार पर वे खुद को औरों से श्रेष्ठ समझते हैं। सभी अश्वेत उनके लिए काले हैं और काले होने की वजह से असभ्य हैं। इन असभ्य लोगों को कभी सभ्य बनाने का ठेका इन सभ्य लोगों ने ही लिया था और इनके लिए एक टर्म गढ़ा 'व्हाईट्स मैन बर्डन'। खुद को सभ्य कहने वाले  इन यूरोपीय लोगों ने  अपने उपनिवेशों की  खुली लूटपाट की।  अफ्रीका इन औपनिवेशिक देशों की लूटपाट का खुला स्थल बन गया।  अश्वेत अफ्रीका की परंपरा, संस्कृति और धार्मिक विश्वास में युगों-युगों से रचे-बसे मिथकों की काव्यात्मकता और उनकी नई रचनात्मक सम्भावनाओं को शोयिंका ने ही पहली बार पहचाना। प्राचीन यूनानी मिथकों की आधुनिक यूरोपीय व्याख्या से प्रेरित हो उन्होंने योरूबा देवमाला की सर्वथा नई दृष्टि से देखा। सोयिंका की रचनाएं, "संस्कृति और नागरिकता", नागरिकता और संस्कृति के मुद्दों की पड़ताल करती है और यह बताती है कि कला के कार्यों को किसी देश या संस्कृति के लिए कैसे प्रासंगि...