युसूफ कवि
  तेलुगु के युसूफ कवि  की यह कविता पसमांदा समाज की हकीक़त को बयां करती है .     युसूफ कवि      अव्वल कलमा       आपको यकीं  तो ना आये शायद     लेकिन हमारी समस्याओं का सिरे से कहीं जिक्र ही नहीं    अब भी, एक बार फिर से, उनकी दसवीं या  ग्यारहवीं  पीढ़ी    जिन्होंने खोई थी  अपनी शानो-शौकत    बात कर रही है हम सब के नाम पर       क्या इसी को कहते हैं अनुभव की लूट?   सच तो यही है- नवाब, मुस्लिम,   साहेब, तुर्क-   जिनको भी ख़िताब किया जाता  है ऐसे, आते हैं उन वर्गों से    जिन्होंने खोई अपनी सत्ता, जागीर, नवाबी और पटेलिया शान-शौकत   लेकिन तब भी सुरक्षित कर ली उन्होंने, कुछ निशानियाँ उस गौरव...
