मनोज पाण्डेय
 
      क्या हो अगर आज जो स्थिति है वह पलट जाय. अगर आम आदमी के हिस्से में सारी धूप रख दी जाय और साधन-संपन्न लोगों के हिस्से में भयावह अन्धेरा रख दिया जाय. क्या हो अगर आज गांधी जी आज सपरिवार बिहार के चंपारण की यात्रा पर जाय. खाए-अघाए लोगों के लिए यह भले ही अकल्पनीय हो सकता है लेकिन एक कवि इसीलिये विशिष्ट होता है कि वह स्थितियों को इस तरह रख कर भी देख और सोच सकता है और एक समरसतापूर्ण समाज की परिकल्पना कर सकता है. वह समाज जो आज भी हम सबके लिए प्रेय है. वह समाज जिसमें सब बराबर हों. हमारे नए कवि मनोज पाण्डेय इस नयी पहल के हामी हैं. वह जानते हैं कि एकतरफा प्रेम मनोरोग होता है इसलिए वे ऐसा प्रेम चाहते हैं जो दोनों तरफ से बराबर-बराबर का हो. तो आइए रू-ब-रू होते हैं मनोज की तरोताजी कविताओं से.          नई पहल   फिर से बाटना लाजमी है  जरूरी है  बाटना अलग करना नहीं  बल्कि बराबरी है  कि आपके हिस्से में  क्यों रहे  “दिन होता है”  और मेरे हिस्से में  “रात होती है”  क्यों न कुछ दिन  तुम्हारे हिस्से में  “रात होता रहे”  और मेरे हिस्से  “दिन होती रहे”  यह नई पहल   व्याकरण में ...
 
