रवीन्द्र कालिया की कहानी 'सिर्फ एक दिन’
युवावस्था के दिन अजीब से होते हैं। जहां एक तरफ किसी भी बात को कर गुजरने का अदम्य उत्साह होता है वहीं दूसरी तरफ भविष्य की चिन्ता भी सताती रहती है। कम नौकरियां और उसके लिए ढेर सारा आवेदन, युवाओं को हतोत्साहित करता है। रही सही कसर निकाल देती है भ्रष्ट व्यवस्था जिसमें कुछ लोग अयोग्य होते हुए भी नौकरी पाने के सारे हथकंडे अपनाते हुए अन्ततः उसे पा ही लेते हैं। ऐसे में वे युवा जो सामान्य परिवार से आते हैं, एक हताशा जन्म लेती है। युवावस्था के इस संत्रास को रवीन्द्र कालिया ने अपनी कहानी 'सिर्फ एक दिन’ में बेहतर तरीके से व्यक्त किया है। कहानी पढ़ते हुए जो बोझिल सा माहौल लगता है वह हमारे देश दुनिया का यथार्थ भी तो है। रवीन्द्र कालिया इसे अपनी पहली प्रकाशित कहानी बताते थे। हालांकि उनका मानना था कि ‘नौ साल छोटी पत्नी’ उनके द्वारा लिखी गई पहली साहित्यिक कहानी है। कल 11 नवम्बर को कालिया जी का जन्मदिन था। उनकी स्मृति को हम नमन करते हुए हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी पहली कहानी। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं रवीन्द्र कालिया की कहानी 'सिर्फ एक दिन’।