सुल्तान अहमद की ग़ज़लें
 
      ग़ज़ल विधा ऐसी विधा है जो आज भी लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं. ग़ज़लों का आरंभ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ। अरबी से होते हुए यह फ़ारसी, उर्दू के बरास्ते हिन्दी में आयी। आरम्भ में इस विधा का केन्द्रीय तत्त्व प्रेम था। आगे चल कर राजनीति और जनजीवन से जुड़े मुद्दे ग़ज़लों का विषय बने। दुष्यन्त कुमार ने हिन्दी ग़ज़ल को वह लोकप्रियता प्रदान की जो उसे अन्य विधाओं से अलहदा बनाती है. आज भी इस ग़ज़ल विधा में बेहतर लेखन हो रहा है। ऐसा ही एक नाम है सुल्तान अहमद का। सुल्तान अहमद का हाल ही में एक नया ग़ज़ल संग्रह आया है 'नदी हाशिये पर' ।  आज पहली बार पर प्रस्तुत है सुलतान अहमद के इस ग़ज़ल संग्रह से कुछ ग़ज़लें।                 सुल्तान अहमद की ग़ज़लें         1     मेरा सर झुका तो हटे   सभी कि वो सर न हो ,  कोई सूल   हो,   वो ख़ुदा   कहीं न     मिला   जिसे   मेरी बंदगी   ये क़बूल   हो।     मैं खड़ा हुआ तो बिठा दिया , मेरा हाथ उठा तो गिरा   दिया ,   मेरे लब खुले   तो वो हँस पड़े ,   मेरी बात   जैसे   फ़िज़ूल हो।   ...
