शशिभूषण मिश्र का आलेख 'एक सदी की बीहड़ यात्रा में लेखक का जीवन'

मोहन राकेश लेखन कर्म को आमतौर जितना आसान समझ लिया जाता है उतना वह होता नहीं। यह जिम्मेदारी भरा काम होता है जिसका मुख्य दायित्व एक बेहतर समाज की स्थापना होती है। मोहन राकेश लेखन के साथ-साथ लेखक के व्यक्तित्व को भी देखने परखने के पक्षधर हैं क्योंकि लेखक का व्यक्तित्व कहीं न कहीं उसकी रचनाओं में उभर कर आता है। इस क्रम में वे लिखते हैं कि "लेखक के व्यक्तित्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता, मसलन यह देखना जरूरी हो जाता है कि उस लेखक का अपने समय में किस तरह का हस्तक्षेप था! उसकी लेखकीय पक्षधरता क्या रही है! साहित्यिक परंपरा को ले कर उसकी समझ क्या है! उसने दूसरे लेखकों को कितना पढ़ा है और उनकी रचनाओं के बारे उसकी रायशुमारी क्या है! अपने समकालीनों के बारे में वह क्या सोचता है! साहित्य और संस्कृति को लेकर उसका आलोचकीय विवेक क्या है क्योंकि आलोचकीय विवेक के बिना वह अपने समय और समाज का वास्तविक रेखांकन नहीं कर सकता।" यह वर्ष मोहन राकेश का जन्मशती वर्ष है। युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र ने 'अन्वेषा' पत्रिका में मोहन राकेश की आलोचकीय दृष्टि पर महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है जिसे हम ...