संदेश

अक्टूबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शशिभूषण मिश्र का आलेख 'एक सदी की बीहड़ यात्रा में लेखक का जीवन'

चित्र
  मोहन राकेश  लेखन कर्म को आमतौर जितना आसान समझ लिया जाता है उतना वह होता नहीं। यह जिम्मेदारी भरा काम होता है जिसका मुख्य दायित्व एक बेहतर समाज की स्थापना होती है। मोहन राकेश लेखन के साथ-साथ लेखक के  व्यक्तित्व को भी देखने परखने के पक्षधर हैं क्योंकि लेखक का व्यक्तित्व कहीं न कहीं उसकी रचनाओं में उभर कर आता है।  इस क्रम में  वे लिखते हैं कि "लेखक के व्यक्तित्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता, मसलन यह देखना जरूरी हो जाता है कि उस लेखक का अपने समय में किस तरह का हस्तक्षेप था! उसकी लेखकीय पक्षधरता क्या रही है! साहित्यिक परंपरा को ले कर उसकी समझ क्या है! उसने दूसरे लेखकों को कितना पढ़ा है और उनकी रचनाओं के बारे उसकी रायशुमारी क्या है! अपने समकालीनों के बारे में वह क्या सोचता है! साहित्य और संस्कृति को लेकर उसका आलोचकीय विवेक क्या है क्योंकि आलोचकीय विवेक के बिना वह अपने समय और समाज का वास्तविक रेखांकन नहीं कर सकता।" यह वर्ष मोहन राकेश का जन्मशती वर्ष है। युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र ने 'अन्वेषा' पत्रिका में मोहन राकेश की आलोचकीय दृष्टि पर महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है जिसे हम ...

नवमीत नव का आलेख 'जीवन का विकास'

चित्र
पृथ्वी पर जीवन का विकास कोई चमत्कार नहीं बल्कि क्रमिक घटनाओं के चलते हुए परिस्थितिजन्य विकास का परिणाम था। यह जीवन सरलता से जटिलता की तरफ की एक दिलचस्प यात्रा है। पृथ्वी पर जीवन के विकास पर  नवमीत नव लिखते हैं " यह एक रोचक कहानी है लेकिन इसकी कोई स्क्रिप्ट या पूर्वनिर्धारित योजना नहीं थी। न ही कोई अलौकिक या अप्राकृतिक रचयिता ने इसको गढ़ा था।" गतिशील पदार्थ था और लगातार विकसित होती हुई प्रकृति थी। और थे प्रकृति के नियम। वे नियम जो पदार्थ के मूलभूत गुण यानी उसकी गतिशीलता में निहित थे।" नवमीत ने बड़े रोचक और सहज तरीके से पृथ्वी पर जीवन की पहेली को सुलझाने का प्रयास किया है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  नवमीत नव का आलेख 'जीवन का विकास'। 'जीवन का विकास' नवमीत नव यह सब शुरू हुआ था बिग बैंग से। बिग बैंग के साथ स्पेस टाइम और पदार्थ, जिस रूप में हम इसे समझते हैं या कहें कि समझने की कोशिश कर रहे हैं, के वर्तमान स्वरूप की शुरुआत हुई थी। यूनिवर्स का उद्विकास हुआ।  क्वार्क्स, सब एटॉमिक कण, एटम्स, मॉलिक्यूल्स, सितारे, सुपरनोवा, ब्लैक होल्स, ग्रह, उल्काएं, उपग्रह,...

रवि नन्दन सिंह का आलेख ’सर्वोदय’ को पढ़ते हुए

चित्र
किताबों ने इस दुनिया को बदलने में प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं। थॉमस पेन द्वारा लिखी गई किताब 'कॉमन सेंस' (Common Sense) ने  अमरीकी क्रांतिकारियों को आजादी प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने में अग्रणी भूमिका निभाई। नपोलियन बोनापार्ट ने अपने वक्तव्य में यह बात कही कि अगर रूसो न हुआ होता तो फ्रांसीसी क्रान्ति नहीं हुई होती। ज्ञातव्य है कि रूसो की 'सोशल कांट्रेक्ट' नामक किताब को क्रांतिकारी हमेशा अपने पास रखते थे। इसी क्रम में जॉन रस्किन की किताब 'अनटू दिस लास्ट: का नाम लिया जा सकता है जिसने गांधी जी के जीवन को ही बदल कर रख दिया। रस्किन की इस किताब से गांधी जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका गुजराती में अनुवाद 'सर्वोदय' नाम से। कर दिया। सर्वोदय का मतलब होता है सबका उदय अथवा सबका विकास। 'सर्वोदय' ऐसे वर्गविहीन, जातिविहीन और शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और समूह को अपने सर्वांगीण विकास का साधन और अवसर मिले। रवि नंदन सिंह लिखते हैं "रस्किन की पुस्तक 'अनटू दिस लास्ट' के चारों निबंध प्रथम बार 1860 ई. में लंदन के...

सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'महात्मा गाँधी : मूल्यों की संघर्ष कथा'

चित्र
  गांधी जी ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो अपनी मृत्यु के पश्चात कुछ और ही प्रासंगिक होते गए हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक संदर्भों में भी गांधी जी जीवन्त हैं। लेकिन दुखद पहलू यह है कि हम उनके दिखाए रास्ते पर नहीं चल पाए। देश में भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार चरम पर है। आज उनके कसीदे काढ़े जा रहे हैं जिन्होंने गांधी की हत्या कर दी थी। पहले गांधी जी की हत्या की गई अब उनके विचारों की हत्या करने की पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। यह भयावह है। लेकिन दुनिया में जब तक असमानता है, ऊंच नीच की भावना है, निरंकुशवाद है, भ्रष्टाचार है, तब तक गांधी की उपादेयता बनी रहेगी। महात्मा गाँधी के जज्बे को उनके इस कथन से बेहतर समझा जा सकता है ' मौत के बीच ज़िंदगी अपना संघर्ष जारी रखती है। असत्य के बीच सत्य भी अटल खड़ा रहता है। चारों ओर अंधेरे के बीच रौशनी चमकती रहती है।' सेवाराम त्रिपाठी उचित ही लिखते हैं " प्रासंगिकता तो बहुत घिसा-पिटा शब्द  हो चुका है। प्रासंगिकता हत्यारे की भी सिद्ध की जा सकती है और सिद्ध भी कर दी गई। इस दौर में हत्यारों, अपराधियों, तड़ीपारों, झुट्ठों और गारंटीवीरों की प्रासंगिकता ...