संतोष कुमार चतुर्वेदी
 संतोष  कुमार चतुर्वेदी 
चुप्पी
चुप्पी
एक मानचित्र है चुप्पी 
जिसे बांटा जा सकता है 
मनमाने तरीके से
लकीर खींच कर 
चुप्पी 
गोताखोर की गहरी डुबकी है 
उफनते समुद्र में 
जिसके बारे में नहीं बता सकता 
किनारे पर खड़ा कोई व्यक्ति
कि अचानक कहाँ से निकल पड़ेगा गोताखोर
चुप्पी 
किसी डायरी का कोरा पन्ना है 
जिस पर मन की सियाही से 
चित्रकारी की जा सकती है
किसिम-किसिम की
सहमति और असहमति के बीच की 
 पारदर्शी आवाज है चुप्पी
लेकिन साथ ही
निर्बल का एक अचूक-अबोला हथियार भी है चुप्पी 
जिसमें मन ही मन 
गरियाता है
लतियाता है 
वह किसी दबंग को 
हींक भर  
 
 
 
बहुत जीवंत... बधाई...
जवाब देंहटाएंचुप्पी के इस कोलाहल से दुनिया की तमाम विचारधाराएँ ,शासनतंत्र ,दर्शन अटे पड़े हैं....अज्ञेय से उधार लूँ तो चहुँ ओर 'सन्नाटे का शोर' सुनाई पड़ता है.....
जवाब देंहटाएं"गरियाता है हीक भर" , बहुत खूब...और इस प्रयास में एक दिन वह मुखर भी हो जाता है.......अच्छी कविता के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंbahut sundar.....
जवाब देंहटाएंmumfordganj,alld(KNH)