बुद्धिलाल पाल की कविताएं
बुद्धिलाल पाल |
बुद्धिलाल पाल
परिचय
जन्म -13.01.1958, ग्राम भमाड़ा, जिला छिंदवाड़ा (एम पी)
प्रकाशित कृतियां -
1 द्वैभाव्य (काव्य पुस्तिका)
2 चांद जमीन पर (काव्य संग्रह)
3 एक आकाश छोटा सा (काव्य संग्रह)
4 राजा की दुनिया (काव्य संग्रह)
5 बुद्धिलाल पाल की चयनित कविताएं (हिंदी एवम पंजाबी भाषा में )
अन्य - देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में एवम प्रमुख समाचार पत्रों में रचनाओं का प्रकाशन।
कुछ कविताओं का अंग्रेजी, मराठी, बंगला, गुजराती भाषा में अनुवाद। बहुत सी कविताओं में साथियों द्वारा कविता पोस्टर।आकाशवाणी एवम सीमित रूप में साहित्यिक मंचों पर आकाशवाणी में कविता पाठ।
सम्मान -
1 सृजन गाथा सम्मान
2 सव्यसाची सम्मान
यह दुनिया समूची काव्यमय है। जीवन अपने आप में एक कविता है। इसे महसूस करने वाला संवेदनशील मन होना चाहिए। मनुष्य के मनुष्य बनने में कला की बड़ी भूमिका है। जब आदिम मनुष्य ने रोजमर्रा की व्यस्तताओं से कुछ समय निकाल कर गुफाओं की दीवारों पर चित्रात्मक अंकन करना शुरू किया तो इस परिघटना ने उसके कल्पनात्मक आयाम को पंख प्रदान किया। मनुष्य के विकास में इस कल्पनात्मकता की बड़ी भूमिका थी। ये चित्र मनुष्य की काव्यात्मक क्षमता के उदाहरण के तौर पर दिखाई पड़ते हैं। जीवन की तरह ही कविता भी नित नूतन है। कवि बुद्धिलाल पाल ने कविता को इसी नजरिए से देखने की कोशिश की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं बुद्धिलाल पाल की कुछ नई कविताएं।
बुद्धि लाल पाल की कविताएं
1-सड़क
सड़क मेरे सपनों में
बार बार आती है
सपनों में
महल रंगमहल
नहीं आते हैं
जब नींद में होता हूं
स्वर्ग नरक की
सैर भी नहीं
कर रहा होता हूं
नींद में, जागरण में
सपनों में
सड़क चमकती है
2- वे मनवा लेते हैं
शोषण, उत्पीड़न
दमन, लूटपाट
अभाव, आत्महत्या
भेदभाव, अन्याय
इनसे निजात पाने
की कोशिश या
आंदोलन
- देशद्रोह है!
छल कपट से
घुमाफिरा कर
हर कोशिश को
वे
यही घोषित
प्रचारित कर देते हैं
यह बात वे
भ्रमित जनता
भक्त जनता
आम जनता से
मनवा भी लेते हैं
इस पर चुप रहना
सहते रहना ही
देशभक्ति है
समरसता, विकास है
यह भी वे मनवा लेते हैं
3-चिर-निद्रा
फासिस्ट के सिर पर
कोई सींग नही होते
दिखता है आदमी जैसा
चलना फिरना, बातें करना
आदमी जैसे ही
लंबे दांत नाखून भी नहीं होते
धर्मशास्त्रों के गुटखों से
विषैले सांप्रदायिक प्रवचनों
सामंतवाद पूंजीवाद के
अमानवीयकरण जहरों से भरा
अर्ध निद्रा, तंद्रा में, मूर्छा में
अर्ध निर्लिप्त जांबी होता है
बढ़ते रहता दांत गड़ाने
तलाशते रहता मानुष गर्दने
एक दूसरे को दांतो से काटते
चिरनिद्रा में निर्लिप्त होते जाते
इस तरह पूरा देश जांबियों का
चिरनिद्रा वाला देश भी हो जाता है
4-कोई शर्म नहीं
आई आई टी
इसरो भी
इनके महामना
नुक्कड़ से
लेकर राजपथ तक
आई आई टी से
इसरो, चांद तक
कांवड़ यात्रा में
शामिल
विज्ञान की खाते
अवैज्ञानिकता ही हद पार कर
धर्म का जत्था बनते।
सत्ता से संघ से
नजराना के लिए
भक्त बोड़म जनता को
और बोड़म बनाते हुए
न कोई शरम, न हया
ये भी देश की समझ पर
अवैज्ञानिकता का
घना आवरण चढ़ाते हुए।
सत्ता के धर्मवाद में
यही हो रहा है
विज्ञानी संस्थान भी
नीबू मिर्च अपनाते हुए।
देश के विज्ञान बोध
सामाजिक विज्ञान बोध का
मरण काल,आज का देश काल।।
5-भक्ति
राजा
सबसे बड़ा
राक्षस
साबित होता
जनता
सबमें भोली
वह मानुष
गंध खोजता
मानुष हत्याएं
मानुष भक्षण
सिंहासन पर
डोलते रहता
किस्सों के राक्षस
राजा की जमात ही
राज चलता रहता
भक्ति चलती रहती
6-सह रहा है
अनाम जनता की भी
आवाज होती है
न सुने तानाशाह
न सुनें बेईमान
हवा सुन रही है
पेड़ पौधे पहाड़ नदी
सागर पशु पक्षी सुन रहे हैं
नहीं सुनते हैं सत्तावादी
कामुक धनपशु
डंडे के जोर पर इन
गरीब गुरुबों को हांकने वाले
अनाम की आवाज
हवा में चीत्कार में तैर रही है
हवा में उठे बवंडर कई बार
नही फिर भी उसकी
आवाज स्थाई विसिल बनी
धरती में सह रहा है गरीब
शासन प्रशासन सत्ता
पूंजी धर्म सब मिल कर
उसकी आवाज को
धरती से बाहर करते हुए
7-गुलामों का युद्ध
गुलाम जातियों के
कबीलाई युद्धों के
कोई सरोकार
कहीं नही जाते हैं
तू इस जाति का
मैं इस जाति का
मेरी जाति ऊँची
तेरी जाति नीची
तुझको मेरी जाति से
ज्यादा भीख मिली
मुझको मिली कम
खींचते रहते
एक दूसरे की टांग
आपस मे करते
रहते जूतम पैजार
जातिवादी गुलामों
का जाति युद्ध
घुमफिर कर वहीं वहीं
आपस मे मारकाट
जितनी जाति उतने युद्ध
जाति बनी ही इसलिये
गुलामों की गुलामी
बनी रहे सुनिश्चित
गुलाम जनता
गुलाम जातियाँ
गुलाम ही रहेगीं सदैव
जब तक फँसी रहेंगी
जातियों के मकड़जाल में
मिथ ब्रह्मा के ब्रह्मफांस
वर्ण जाति के पायदानों में
8-हेल्लो जी
काश गरीबों के जैसे भी
ईश्वर अल्लाह कुछ होते
जैसे हैं वे हमारे
अपने जैसे होते
दूध दही घी शहद से
स्नान करने वाले न होते
रोज फल फूल माला वाले न होते
छप्पन व्यंजन धूप दीप वाले न होते
देवदासी ढोल मंजीरे नगाड़ों में
अजान में दर्शन देने वाले न होते
ऊंची ऊंची मीनारों देवालय वाले न होते
हम जैसे दिहाड़ी में साथ चलने वाले होते
हल ट्रेक्टर कुदाल निंराई गुड़ाई
मनरेगा संविदा आउटसोर्सिंग
आफिसों खदानों में हम जैसे होते
सरहद में साथ हमारे पहरा देते होते
साथ मेहनत करते पसीना बहाते होते
संग साथ हमारे बीड़ी पीते ताड़ी पीते
कच्ची दारू पीते/ सस्ते भोजनालय में
हमारे साथ खाना खाने वाले होते
झुग्गी झोपड़ी दो कमरों के घरों में
हमारे जैसे रहने सोने वाले होते
हमारे ईश्वर खुदा होते तो ऐसे ही होते
हमारे साथ हमारे बीच घर चौपाल में
कंधा से कंधा मिला कर साथ होते
महल अटारी वाले राजा जी न होते
न नीचे अल्लाह न ऊपर भगवान
लूट रहे हैं हम सबको शोषक शासक
खुद बन कर
ईसा खुदा भगवान
हम लत्ते फत्ते शोषित वे बम बम बम
वे भगवान मालिक हम गरीब नवाज
हेल्लो जी हेल्लो जी हेल्लो जी
न नीचे अल्लाह न ऊपर भगवान
न जी न इन नामों में लड़ो भिड़ो नहीं
हां जी बनाओ अपनी खुद की दुनिया
9-प्रार्थनाएं
प्रार्थनायें फलीभूत होती तो
दुनिया में कभी भी कुछ बुरा न होता
सब जगह प्रार्थनाएं तो भरी हुई हैं
प्रार्थनाएं फलीभूत होती तो
न कोई गरीब होता न कोई बेघर
न कोई दुःख न कोई इच्छा रहती अधूरी
हम नागदेवता की पूजा करते हैं
कभी सर्पदंश से मृत्यु नहीं हुई होती
सर्प के डर से मुक्त हो गए हो गए होते
हम इंद्र देव की पूजा करते हैं
अकाल न पड़े होते बादल न फटते
अवर्षा के भय से मुक्त हो गए होते
अमन चैन, धन धान्य, निरोगी काया
इन सबकी कामना प्रार्थना में यही होता
यह सब कुछ पर कोई विपत्ति न आई होती
हम प्रार्थना करते रहे पर
उसके बाद भी वह सब कुछ होया रहा
जिस सुरक्षा के लिये हम प्रार्थना करते रहे
पूजा पाठ प्रार्थनाओं आडंबरों से
भरी पड़ी है पूरी दुनिया
घर, आकाश, हवा, पृथ्वी सब कुछ
फिर भी सब कुछ अनिष्ट रूप में है
पूजा पाठ, ध्यान में, कामनाएं प्रार्थनाएं
व्यवहारिक रूप में फलीभूत नहीं होती हैं
क्योंकि प्रार्थनाओं के पास कोई
व्यवहारिक, वैज्ञानिक आधार नहीं होता है।
10-धारा
कविता
अच्छी भी होती है
होती है बुरी भी
बुरी कविता
सत्ता की आवाज
बचाव होती है उसका
अच्छी कविता
जनता की आवाज होती
हक हुकूक न्याय के लिए
कवि की किस्म भी
दो ही होती है
एक सत्ता, एक जनता संग
कविता की धारा भी
बस इतनी ही होती है
एक अच्छी एक बुरी
तीसरी चौथी कोई धारा
कोई माप नहीं होता है
है तो वह फ्राड है धोखा है
पाठ भी ऐसा ही बनता है
अब मर्जी लेखकों की
काला पीला कुछ भी करो
11-कविता ही तो थी
जब आदमी कुछ नहीं था
तब भी थी कविता
उसके आग पैदा करने में
आग की हिफाजत करने में
आग की लहराती लौ में
शिकार के खेदा की लय में
पहिये के अविष्कार में
यूरेका यूरेका में
अपने लिए कंद मूल जुटाने में
भित्ति चित्र उकेरने में
सब जगह उसका कवि मन था
इशारों की बोली के भाषा के
आविष्कार में विकास में
सब जगह कविता ही तो थी
दूध की पहली धार की तरह
उसके खुश होने में रोने में
उसकी रोजमर्रा में दिनचर्या में
सब जगह कविता ही तो थी
उसके साथ हर जगह
कविता तो ही चलती हुई थी
नही था तब कोई गद्य पद्य
तब भी तो उसके जीवन में
उसके भाव में उसके साथ
कविता तो ही थी जिसने
नदियों से अपना सफर शुरू किया
दुर्गम चोटियों, को दर्रों को
सागरों को, द्वीपों को, रेगिस्तानों को
महाद्वीपों को बार बार पार किया
सभ्यता के रूप में फैली पसरी
कविता ही तो थी जिसने
स्पार्टकस लेनिन को पैदा किया
मार्क्स को गढ़ा निखारा
अंबेडकर फुले पेरियार
इनको सच्चे में स्वदेशी बनाई
कविता ही तो थी जिसने
लोकशाही की अवधारणा का
बहुत बहुत सम्मान किया
कविता ही तो थी जो
इनके आत्मा के भीतर
बजती थी, गुनगुनाती थी
जब कविता नहीं थी
तब भी वह बजती थी
हवाओं में बरसात में
आज लिखी जा रही
कविता के पहले भी कविता थी
कल न लिखे जाने पर भी
पृथ्वी पर कविता ही रहेगी।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
बुद्धिलाल पाल
MIG - 562 न्यू बोरसी,
दुर्ग (छ. ग.) 491001
मोबा 78695 02334
सटीक व्यंजनापूर्ण कवितायें हैं। अपने समय से मुखातिब। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंपहलीबार ब्लॉग और संतोष चतुर्वेदी जी को धन्यवाद कि उन्होंने बुद्धि लाल पाल जी की कविता पढ़ने का अवसर उपलब्ध कराया । आजकल इतनी मुखर कविताएं काम लिखी जाती हैं।और कविता को लेकर इतनी उदात्त दृष्टि भी बहुत कम देखने को मिलती है। सृष्टि को देखकर, जी कर, आत्म दृष्टि से लिखी गई कविता। आप कविता पढ़ें और वह हृदय में उतरती जाए, कविता पढ़ें और आपके भीतर जो अनकहा है वह भी प्रत्यक्ष होता जाए और लगे कि जो आप पढ़ रहे हैं वह किसी कवि की लिखी कविता की जगह आपके हृदय के चित्रपट पर अंकित भाव और विचार ही हैं, ऐसा बहुत कम होता है। बुद्धि लाल पाल की कविताएं ऐसा अनुभव करा जाती हैं। यही उनका कवि होना है कि वे हमारे पाठक होने के बोध को सार्थकता प्रदान करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचनाएं आप कहे तो गुजराती में भावानुवाद करके भेजुगा❤️
जवाब देंहटाएंबुद्धिलाल पाल की कविताएं अपने समय की विश्वसनीय साक्षी हैं। वे पाठकों को न मात्र समकालीन समस्याओं से जोड़ती हैं , अपितु उन्हें सकारात्मक परिवर्तन के लिए प्रेरित भी करती हैं।
जवाब देंहटाएंफूलचंद गुप्ता
इनकी कविता पढ़ने का अवसर प्राप्त कराए। हार्दिक धन्यावाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सटीक कविताएँ। आपको और बुद्धी लाल जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअपने समय के खतरों से टकराती प्रतिरोध की सशक्त कविताएं।
जवाब देंहटाएंइस दौर में प्रतिरोध की धारदार कविता लिखना एक जटिल दुस्साहस ही कहा जाएगा। साथी बुद्धिलाल पाल को लाखों-लाख बधाई।
जवाब देंहटाएंपाल जी की कविताएं आक्रमण करती हैं। शोषक को कटघरे में खड़ी करती हैं। पाखंड का पर्दाफाश करती हैं उनकी कविताएं।
जवाब देंहटाएं