रानी कुमारी की कविताएं
रानी कुमारी |
परिचय
डॉ. रानी कुमारी
जन्म : 1 अगस्त 1988
कापसहेड़ा गांव, दिल्ली
शिक्षा : बी. ए. (हिंदी विशेष), एम. ए. (हिंदी), दोनों प्रथम श्रेणी, दिल्ली विश्वविद्यालय ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से नेट, जे. आर. एफ.
पी-एच.डी (हिंदी कथा-साहित्य) हिंदी-विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, 2013 - 2019.
लेखन : इंद्रप्रस्थ भारती, हंस, कथादेश, युद्धरत आम आदमी, अपेक्षा, स्त्रीकाल, देस-हरियाणा, संवेद, नया पथ, साहित्य -कुंज, कदम, मगहर, समकालीन जनमत, बहुरि नहिं आवना आदि हिंदी की प्रमुख पत्रिकाओं में शोध-आलेख, पुस्तक-समीक्षा, साक्षात्कार, कविता, लघु-कहानी प्रकाशित।
पुस्तक (संपादन) : दलित स्त्रीवादी विमर्श और दाई, 2023
विशेषज्ञता : हिंदी कथा-साहित्य।
सम्प्रति : 2016 से दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षण।
हम सबके अपने अपने स्वार्थ होते हैं और इसे पूरा करने के लिए दूसरों का उपयोग करने से नहीं चूकते। इसके लिए अक्सर बहाने भी खोज लिए जाते हैं। रानी कुमारी की एक बेजोड़ कविता है 'अविवाहित लड़की'। यह अविवाहित लड़की जिस ऑफिस में काम करती है उसमें सभी कर्मचारी किसी न किसी बहाने से उस पर अपना काम भी थोप देते हैं। इसके पीछे यह तर्क होता है कि रूढगत अर्थों में चूंकि उसका अपना घर परिवार है नहीं, इसलिए उसके पास फालतू इफरात समय है। यानी कि काम करवाने के बदले में उस अविवाहित लड़की के प्रति कोई कृतज्ञता भी नहीं। ऐसे लोग यह नहीं समझते कि जो अकेला होता है उसका भी अपना जीवन होता है। वह भी समय को अपने अनुसार जीना चाहता है। रानी कुमारी के पास कई ऐसी कविताएं हैं जो सहज ही अपनी तरफ ध्यान आकृष्ट करती हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं रानी कुमारी की कविताएं।
रानी कुमारी की कविताएं
बोझ
हर रोज़
एक पैरहन बढ़ जाती है
बोझ की...
बीता हुआ दिन,
जब सालों में बदलने लगे
तो पैरहनों का भार
भी बढ़ जाता है
कई गुना ज्यादा
जैसे
भीगे कपड़ों का बोझ
उसकी सीलन का एहसास
उतार फेंकने की कोशिश...
अब मैं भी
बस्स! इस बोझ को
झटक देना चाहती हूं
नदी
नदी अपने आप में,
संपूर्ण थी...
वो बहती थी,
अपनी ही रौ में
हवा संग खेलती थी,
बादलों के साथ
चुहलबाजी करती थी
वो खुश थी
धाराप्रवाह बही जा रही थी
शीतल, शांत, नील रंग
मीठा पानी जैसे
शरबत का एहसास
दिलाती राहगीरों को...
पर एक दिन जैसे
सब बदल गया...
नदी ने राहगीरों की बात सुनी
नदी को तो
समुद्र में ही मिलना है
तो ही पूर्ण होगी...
नदी सोच में पड़ गई..
उनकी और भी बातें सुन कर
नदी अब
बैचेन थी सागर से
मिलने के लिए
नदी का वेग
बढ़ता ही जा रहा था..
धीरे-धीरे
मिलन की व्याकुलता इतनी
कि अब नदी
क्रोधित होने लगी थी
इतना उफान...
कभी नहीं देखा था
इस नदी में,
वह पूरी शक्ति के साथ
उफान पर थी...
शायद सागर से
न मिल पाने के कारण
और अब नदी
समुद्र की चाहत छोड़
अपनी ही दिशा में मुड़ गई
आप चाहे तो
समझ सकते हैं कि
नदी ने अलग ही रास्ता चुन लिया!
संग
तुम्हारे संग की
पहली बारिश के
साथ से ले कर,
अपनी जिंदगी की
अंतिम बारिश तक
मैं साथ रहना चाहती हूं
तुम्हारे...
मैं संग रहना चाहती हूं
जैसे रहता है सुर्ख लाल रंग
गुलमोहर और गुड़हल में
जो हम दोनों को प्यारे हैं ...
मैं नादीदे बच्चों के
चेहरे पर खुशी बन कर
मुस्काना चाहती हूं
उम्र भर संग तुम्हारे रहने की
दुआएं पाना चाहती हूं
अक्स
कितना खूबसूरत
होता है
वो भाव,
जब हम
निहारते हैं खुद को
सराहते है
अपने ही आप को
जो न कर पाएं
अपने जीवन में
वो सब अपने-अपने
अक्स से चाहते हैं
कि पूरा करें...
सब कुछ लुटा
देने का भाव..
क्योंकि वो प्रतिरूप तो
हमारा ही है।
जब जब
देखती हूं
अपने साथियों को
तो हूंक-सी उठती है
कि वो अक्स
मेरा भी बन पाएगा
या नहीं...
चुप्पी
हर तरफ
आग है, धुआं है
रिश्तों, जात-पात और धर्म की
जल रहे हैं अब बच्चे भी
और मर रहे हैं जवान भी
लोग फिर भी मुस्कुरा रहे हैं
कर रहे हैं जलसे,
घर हुए तबाह,
कितनी कोख उजड़ गई,
संवेदनाएं राख हुई
जीने की चाह भी मर गई...
कुछ दिन बाद सब बदल जाएगा
फिर होगी नई घटना
फिर मशाले जलेंगी
फिर अफसोस जताया जाएगा
किसी का बेटा, बाप और पति
मारा जाएगा...
लूटी जाएगी अस्मतें
लोग देख रहे होंगे
मूकदर्शक बन कर
अब भी अगर
चुप रहेंगे हत्याओं पर
अविवाहित लड़की
घर-बाहर-कार्यस्थल पर
यह मान लिया जाता है
अविवाहित लड़की के पास
कोई काम नहीं होता...
उसके इर्द-गिर्द
घर-बाहर-कार्यस्थल के लोग
उसे काम दिए जाते हैं...
"बच्चे का होमवर्क!
डॉक्टर के पास जाना है मुझे!
परिवार के साथ कहीं जाना है!
आज कोई रिश्तेदार आएगा!
आज पत्नी या पति की
तबीयत ठीक नहीं है!
आज घर पर मेहमान आ रहे हैं!
परिवार में कोई शादी है
खरीदारी करवाने
चांदनी चौक जाना है
किस्म -किस्म के बहाने
फिर चोरी से
झिझकते हुए बताते
अपना काम...
तुम कर दोगी न
कभी मनुहार करते और
कभी दरेरा देते
आराम से मान जाए बात
अविवाहित लड़की तो ठीक
नहीं तो बाहर का
रास्ता भी दिखा सकते है!
समय से पहुंच जाओगी न
देखो काम जरूरी है
बॉस को पता न चले
तुम चुपके से करके काम
मुझे बता देना
काम हुआ है या नहीं!
वह क्या है न
मुझे आगे रिपोर्ट
भी भेजनी है...
यह मान कर कि
अविवाहित लड़की
न बीमार होती है
न डॉक्टर के पास जाती है
न उसका परिवार होता है
न उसके मेहमान आते हैं
न उसे किसी का इलाज
करवाना होता है
न उसकी पसंद इतनी धांसू है
कि कोई उसे ले चले
कपड़ा लत्ता जूता
पसंद करवाने...
लाजपत नगर या
शॉपिंग मॉल
अविवाहित लड़की के
नहीं होते रिश्तेदार
जहां उसे जाना पड़ता है
या कोई आ सकता है
उसके घर..
यह मान कर उसे
काम पर काम
मिलते जाते हैं
घर-बाहर-कार्यस्थल पर
परंतु
सम्मान नहीं मिलता
काम के बदले
कि तुम्हारे पास तो
फालतू वक्त है
और करना ही क्या है?
अविवाहित लड़की चाहती है
कि सब कामों और
जिम्मेदारियों को निभाते हुए
उसे भी समझा जाएं
औरों की तरह इंसान...
कि वह भी खर्च पाए
अपना वक्त अपने लिए!!
उदासी के दौर में...
उदासी इतनी गहरी होती है
कि वक्त भी
उसको पाट नहीं पाता...
हर पल लगता है
कि हमारे
अपने ज़हन का हिस्सा है
आवाज़ कानों में गूंजती रहती है
तस्वीरें आंखों से छलकती रहती हैं
ताज़ा पैदा हुई सुबह भी
बासी लगती है
अपनों के बिना सब ओर
उदासी लगती है...
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क :
मकान नंबर 514 ,
कापसहेड़ा,
नई दिल्ली 110037
मो. 8447695277
ईमेल आईडी : rani.kumari1210@gmail.com
कविताएं अच्छी हैं
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं दमदार कथ्य आदरणीया कवयित्री को बहुत बहुत बधाई 🎉
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