तादेउस्ज़ बोरोवस्की की कहानी 'गैस के लिए इधर जाएँ, देवियों और सज्जनों'

 

Tadeusz Borowski


तादेउस्ज़ बोरोवस्की


लेखक परिचय 


तादेउस्ज़ बोरोवस्की का जन्म 12 नवम्बर, 1922 को झिटोमीर, यूक्रेन में एक पोलिश परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 3 जुलाई, 1951 को वारसा, पोलैंड में हुई। वे पोलिश भाषा के कवि और कहानीकार थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें 1943 में हिटलर की नाज़ी सरकार द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया और वे कुख्यात ऑशविच कंसनट्रेशन कैंप में भेज दिये गए। युद्ध की समाप्ति के पश्चात मुक्त होने पर उन्होंने इन कैंपों में जीवन और उसकी विद्रूपताओं और उन अमानवीय परिस्थितियों में जीवन और नैतिकता के प्रश्नों को ले कर अनेक कहानियाँ लिखी। इन कहानियों के अतियथार्थ को ले कर कई बार उनकी आलोचना भी होती है किंतु जीवित रहने की लालसा और अतिशय क्रूरता के बीच नैतिकता के प्रश्न किस प्रकार हमारी सामान्य समझ से परे चले जाते हैं, यह उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। पोलैंड वापस लौटने पर उनके दो कहानी संग्रह “Farewell to Maria”  और “The World of Stone” प्रकाशित हुए। इन दोनों का अंग्रेज़ी अनुवाद 1967 में “This Way for the Gas, Ladies and Gentlemen, and other stories” के नाम से प्रकाशित हुआ। 1951 में जब उनकी उम्र 29 की भी नहीं थी, उन्होंने आत्महत्या कर ली।


कुछ कहानियां ऐसी भी होती हैं जो सिर्फ कहानियां नहीं होतीं। ऐसी कहानियों पर अति यथार्थवादी होने का आरोप मढ़ा जाता है। पोलिश कहानीकार तादेउस्ज़ बोरोव्स्की ऐसे ही कहानीकार थे।हिटलर और उसका समय न केवल यहूदियों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए त्रासद समय था। एक अनुमान के अनुसार नाजीवादी शासन के दौरान लगभग साठ लाख यहूदियों को गैस चैम्बर में डाल कर मार डाला गया। कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि यह संख्या इस अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है। पोलिश कहानीकार तादेउज़ बोरोव्स्की ने उस परिवेश को अपनी रचनाओं में ज्यों का त्यों चित्रित किया है। बोरोव्स्की इस घटनाक्रम के प्रत्यक्षदर्शी थे। आज इतिहास थोड़ा बदले हुए प्रारूप में खुद को दोहरा रहा है। अब खलनायक की भूमिका में यहूदी हैं। इनके शिकार बन रहे हैं फिलिस्तीन के लोग। गैस चैम्बर की जगह गोलियों और बम ने ले ली है। पता नहीं प्रतिशोध का अन्त कहां और कैसे होगा?

ऑशविट्ज़-बिरकेनौ में रेलवे रैंप पर काम करते हुए, बोरोव्स्की ने देखा कि उस तरफ आने वाले यहूदियों को अपनी निजी संपत्ति पीछे छोड़ने के लिए कहा जा रहा था, और फिर उन्हें सीधे ट्रेनों से गैस चैंबर में स्थानांतरित कर दिया जा रहा था। ऑशविट्ज़ में कैदी रहते हुए, बोरोव्स्की को निमोनिया हो गया; उसके बाद, उन्हें नाज़ी चिकित्सा प्रयोग "अस्पताल" में काम पर रखा गया। 1944 के अंत में बोरोव्स्की को ऑशविट्ज़ से नात्ज़वीलर-स्ट्रुथोफ़ के डौटमेरगेन उप शिविर में ले जाया गया, और अंत में डचाऊ ले जाया गया ।डचाऊ-अल्लाच, जहाँ बोरोव्स्की को कैद किया गया था, को 1 मई 1945 को अमेरिकियों ने आज़ाद करा दिया; उसके बाद बोरोव्स्की ने खुद को म्यूनिख के पास विस्थापित व्यक्तियों के लिए एक शिविर में पाया। तादेउस्ज़ बोरोव्स्की की इस पोलिश कहानी का अंग्रेजी  अनुवाद किया बारबरा वेडर ने। अंग्रेजी से इसका हिन्दी अनुवाद किया है हिन्दी के प्रख्यात अनुवादक श्रीविलास सिंह ने। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं तादेउस्ज़ बोरोवस्की की कहानी 'गैस के लिए इधर जाएँ, देवियों और सज्जनों'। 



'गैस के लिए इधर जाएँ, देवियों और सज्जनों' 


तादेउस्ज़ बोरोवस्की


(पोलिश से बारबरा वेडर के अंग्रेज़ी अनुवाद से)

हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह 



हम सब वहाँ नंगे घूमते हैं। जूँओं से मुक्ति का काम अंततः खत्म हो चुका है और हमारे धारीदार सूट ‘साइक्लोन बी’1, जो कपड़ों में जूँ और गैस चैंबरों में मनुष्यों को मारने हेतु अत्यंत सक्षम है,  के विलयन के टैंक से वापस आ गए हैं। केवल "स्पेनिश गोट्स"2 द्वारा हमारे ब्लॉक से अलग कर दिए गए ब्लॉकों के रहवासियों के पास अभी भी पहनने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन यह सब अपनी जगह, हम सभी वहाँ नंगे घूमते हैं: गर्मी असहनीय है। शिविर सख्ती से सील किया जा चुका है। एक भी कैदी, एक भी अकेली जूँ, छिप कर द्वार से खिसक नहीं सकती। श्रमिक कमांडोज ने काम करना बंद कर दिया है। पूरे दिन, हजारों नग्न पुरुष सड़कों पर आते जाते रहते हैं, चौराहों के आसपास जमा रहते हैं, या दीवारों के सहारे और छतों के ऊपर लेटे रहते हैं। हम सादे तख्तों पर सोते रहे हैं, क्योंकि हमारे गद्दे और कंबल अभी भी विसंक्रमित किए जा रहे हैं। पीछे के ब्लॉकों से हमें एफ.के.एल.- फ्राउएन कोन्जेंट्रेशन लेगर3;  का दृश्य दिखाई देता है; वहाँ भी जूँओं से मुक्ति का काम पूरे जोरों पर है। अट्ठाईस हजार महिलायें नग्न कर दी गयी है और बैरकों से बाहर निकाल दी गयी है। अभी वे ब्लॉकहाउसों के बीच के बड़े आहाते के चारों ओर जमघट बनाये रहती हैं।


गर्मी बढ़ती जा है, घंटे अंतहीन हैं। हम मनबहलाव वाली सामान्य चीजों से भी वंचित हैं: शवदाह गृह तक जाने वाली चौड़ी सड़कें खाली हैं। अभी कई दिनों से, कोई नयी परिवहन खेप नहीं आयी है। "कनाडा"4 का एक हिस्सा नष्ट कर दिया गया है और इसका विवरण हरमेनज़5 में एक श्रमिक कोमांडो6 को - जो कि सबसे सख़्त कमांडोंज में से एक है - दे दिया गया है। क्योंकि शिविर में ईर्ष्या पर आधारित न्याय का एक विशिष्ट ब्रांड मौजूद है: जब अमीर और शक्तिशाली लोग गिरते हैं, तो उनके दोस्त यह सुनिश्चित करते हैं कि वे एकदम नीचले तल में गिरें। और कनाडा, हमारे कनाडा के पास, जिससे मेपल के जंगलों की नहीं, बल्कि फ्रांसीसी इत्र की खुशबू आती है, पूरे यूरोप के हीरों और मुद्रा का खजाना है।


हममें से कई ऊपरी चारपाइयों (बंक बेड्स) पर बैठे हैं, हमारे पाँव किनारे पर लटके हुए हैं। हम सूखी और कुरकुरी ब्रेड के टुकड़े काटते हैं। यह स्वाद में थोड़ी शुष्क है, ऐसी जो कई दिनों तक ताज़ा रहती है। सीधे वारसॉ से भेजी गई - केवल एक सप्ताह पहले ही मेरी माँ ने यह सफेद रोटी अपने हाथों में पकड़ी थी। . . हे ईश्वर, प्यारे ईश्वर. . .


हम बेकन (सुअर का मांस) और प्याज खोलते हैं, हम दूध के पाउडर का एक डिब्बा खोलते हैं। हेनरी, वह मोटा फ्रांसीसी, स्ट्रासबर्ग, पेरिस, मार्सिले से लाई गई फ्रेंच शराब के सपने देखता है। . .  उसके शरीर से पसीना बह रहा है।


“सुनो, मेरे दोस्त, अगली बार जब हम लोडिंग रैंप पर जाएँगे, मैं तुम्हारे लिए असली शैम्पेन लाऊँगा। तुमने पहले कभी उसका स्वाद नहीं लिया होगा?”


“नहीं, लेकिन तुम उसे कभी भी मुख्य द्वार से भीतर नहीं ला पाओगे, इसलिए परेशान करना छोड़ो। क्यों न, इसकी जगह कोशिश करो और मेरे लिए किसी जूते की ‘व्यवस्था’ करो – तुम जानते हो, वो जालीदार, दोहरे तल्ले वाले, और उस क़मीज़ का क्या हुआ जिसका वादा तुमने बहुत समय पहले किया था?”


“धीरज रखो, धीरज रखो। जब नयी परिवहन खेप आएगी, मैं वह सब लाऊँगा जो तुम चाहते हो। हम फिर से रैंप पर जाएँगे !”


“और तब क्या होगा यदि ‘शवदाह गृह जाने वाली’ कोई नयी खेप नहीं आयी?” मैंने घृणा से कहा। “क्या तुम देख नहीं सकते कि यहाँ आसपास जीवन कितना आसान होता जा रहा है: पैकेजों पर प्रतिबंध नहीं, कोई पिटाई नहीं? तुम घर पत्र भी भेज सकते हो….सभी तरह की बातें सुनाई पड़ती हैं, और, भाड़ में जाए ये सब, उनके लिए आदमियों की कमी पड़ जाएगी !”


“बकवास करना बंद करो।” हेनरी का गंभीर और मोटा चेहरा एक निश्चित ताल में घूमता है, उसका मुँह सार्डिंन (एक तरह की छोटी मछली) से भरा हुआ है। हम लंबे समय से मित्र थे, लेकिन मैं उसका उपनाम भी नहीं जानता। “बकवास बंद करो,” कोशिश कर के सार्डिंन निगलता हुआ  वह दोहराता है। “उनके लिए आदमियों की कमी नहीं पड़ सकती, अन्यथा हम इस ध्वस्त हो रहे कैंप में भूख से मर जाएँगे। हम सभी उसी सब के सहारे जीवित हैं जो कुछ वे लाते हैं।”


“सभी? हमारे अपने पैकेज हैं…”


“निश्चय ही, तुम और तुम्हारा दोस्त, और तुम्हारे दस और दोस्त। तुम कुछ पोलिश लोगों को पैकेज मिलते हैं। लेकिन हमारा क्या, और यहूदियों का क्या, और रुस्कियों का? और तब क्या होगा जब हमारे पास भोजन नहीं होगा और परिवहन की खेप से कोई ‘व्यवस्था’ नहीं होगी, तुम सोचते हो तुम शांति से उन पैकेजों को खाते रहोगे? हम तुम्हें ऐसा नहीं करने देंगे !”


“तुम ऐसा करोगे, तुम यूनानियों की भाँति भूख से मर जाओगे। यहाँ जिसके पास पेट भरने को है, उसके पास शक्ति है।”


“जो भी हो, तुम्हारे पास भी पर्याप्त है, हमारे पास भी पर्याप्त है, इसलिए बहस क्यों ?”


ठीक बात, बहस क्यों करनी? उनके पास पर्याप्त है, मेरे पास पर्याप्त है, हम साथ साथ खाते हैं और हम एक सी चारपाइयों पर सोते हैं। हेनरी ब्रेड को काटता है, वह टमाटर का सलाद बनाता है। यह अधिकारियों वाली सरसों की चटनी के साथ स्वादिष्ट लगता है।




हमारे नीचे, नंगे, पसीने से भीगे आदमी बैरकों के संकरे गलियारों में भीड़ लगाए रहते हैं अथवा आठ या दस के समूह में नीचे की चारपाइयों पर पड़े रहते हैं। उनकी नग्न, म्लान देहों से पसीने और मल की दुर्गंध आती है; उनके गाल धँसे हुए हैं। ठीक मेरे नीचे, सबसे नीचे की चारपाई पर एक रब्बी लेटा है। उसने कंबल से फाड़े हुए एक चिथड़े से अपना सिर ढँक रखा है और एक हिब्रू प्रार्थना की पुस्तक (इस तरह के साहित्य की कैंप में कोई कमी नहीं है), एकालाप में, ज़ोर से विलाप करता हुआ पढ़ता है।


“क्या उसे कोई चुप नहीं करा सकता? वह ऐसे घिघिया रहा है मानों उसने स्वयं ईश्वर को पाँव से पकड़ लिया हो।”


“मुझे उठने का मन नहीं कर रहा। उसे विलाप करने दो। वे उसे उतनी ही जल्दी भट्टी में ले जाएँगे।”


“धर्म लोगों की अफ़ीम है,” हेनरी,जो कम्युनिस्ट और किराए से आय कमाने वाला है, पाखंड से कहता है। “यदि वे ईश्वर और जीवन की शाश्वतता में विश्वास न करते, वे बहुत पहले ही शवदाह गृह तक पहुँच चुके होते।”


“फिर तुमने ऐसा क्यों नहीं किया?” 


प्रश्न आलंकारिक है; फ़्रांसीसी उसे अनसुना कर देता है “बेवक़ूफ़,” वह सरलता से कहता है और मुँह में एक टमाटर ठूँस लेता है।


जैसे ही हमने अपना नाश्ता समाप्त किया, दरवाज़े पर एक आकस्मिक शोर सा हुआ। मुस्लिम7 अपनी चारपाइयों की सुरक्षा हेतु बौखलाए हुए हैं, एक संदेश वाहक ब्लॉक एल्डर8 की कोठरी में तेज़ी से जाता है। एल्डर, जिसका चेहरा गंभीर है, तत्काल बाहर आ जाता है।


“कनाडा ! पंक्ति में खड़े हो जाओ ! तेज़ी से ! एक परिवहन खेप आ रही है !” “महान ईश्वर !” हेनरी चिल्लाता है, चारपाई से नीचे कूदता हुआ। वह शेष टमाटर निगलता है, अपना कोट झपटता है, नीचे वाले आदमी पर चीखता है “राउस” (बाहर निकलो) और एक क्षण में दरवाज़े पर होता है। हम अन्य चारपाइयों पर उथल पुथल सुन सकते हैं। 'कनाडा' रैंप के लिए प्रस्थान कर रहा है।


“हेनरी, जूते !” मैं उसे पीछे से पुकारता हूँ।


“कोई डर नहीं !” वह बाहर से चिल्ला कर कहता है।


मैं खाने को दूर हटा देता हूँ। मैं उस सूटकेस के चारो ओर एक रस्सी का टुकड़ा बाँधता हूँ जिसमें वारसा से मेरे पिता के बगीचे से आये प्याज और टमाटर पुर्तगाली सार्डिंन मछलियाँ, लुबलिन से आया बेकन (यह मेरे भाई के यहाँ से है) और सलोनिका का स्वीटमीट आपस में मिल रहे हैं। मैं उस सब को बांध देता हूँ, अपनी पतलून पहनता हूँ, और चारपाई से उतर जाता हूँ।


“जगह दो,” मैं यूनानी लोगों के बीच से जगह बनाता हुआ चिल्लाता हूँ। वे एक ओर हट जाते हैं। दरवाज़े पर मैं हेनरी से टकरा जाता हूँ।


“क्या गड़बड़ है ?”


“क्या हमारे साथ रैंप पर आना चाहते हो?”


“अवश्य, क्यों नहीं ?”


“फिर आ जाओ, अपना कोट ले लो ! कुछ आदमी कम पड़ रहे हैं। मैंने कापो9 को पहले ही कह दिया है,” और वह मुझे बैरक के दरवाज़े से बाहर धकेल देता है।


हम पंक्तिबद्ध खड़े हो गये हैँ। एक व्यक्ति ने हमारे नम्बर नोट कर लिये थे, ऊपर कोई चिल्लाता है, “आगे बढ़ो, आगे बढ़ो,” और अब हम दरवाज़े की ओर दौड़ रहे हैं, बहुभाषी भीड़ के शोर को साथ लिए जो पहले से ही बैरकों में वापस धकेली जा रही है। हर व्यक्ति रैंप पर जाने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं होता… हम लगभग दरवाज़े तक पहुँच गए हैं। एक, दो, तीन, चार ! सैल्यूट! सीधे खड़े हो जाओ, बाहें कूल्हों से लगा कर सीधी रखो, हम ने द्वार तेजी से पार किया, चतुरता से, लगभग गरिमामय तरीक़े से। एक सोते हुए से एस. एस. गार्ड10 के आदमी ने, जिसके हाथ में एक बड़ा सा लिखने का पैड था, हमारी जाँच की और पाँच पाँच के समूह में हमें आगे जाने का हाथ से इशारा किया।


“सौ!” उसने कहा जब हम सभी गुजर गए।


“ठीक!” हमारे सामने से एक कर्कश आवाज आती है।


हम तेज चलते हैं, लगभग दौड़ते हुए। चारों तरफ़ गार्ड हैं, स्वचालित हथियारों से लैस युवा आदमी। हम कैंप II B पार करते हैं, फिर कुछ त्याग दी गई बैरक़्स और कुछ अपरिचित हरियाली — सेव और नाशपाती के वृक्ष। हम वॉचटॉवर्स वाला सर्किल पार करते हैं और दौड़ते हुए, मुख्यमार्ग पर चल पड़ते हैं। हम पहुँच चुके हैं, बस कुछ और गज़। वहाँ, वृक्षों से घिरा हुआ रैंप है।


एक ख़ुशी भरा छोटा सा स्टेशन, बहुत कुछ अन्य प्रांतीय रेलवे स्टेशनों जैसा: एक ऊँचे शाहबलूतों का वर्गाकार ढाँचा जहाँ पीली बजरी बिछी थी। सड़क की बग़ल में, बहुत दूर नहीं, एक छोटा सा लकड़ी का शेड स्थित है, सबसे गंदे और बदहाल रेलवे स्टेशनों से भी गंदा और बदहाल; उससे थोड़ी दूर पुराने कबाड़ का ढेर है, रेल की पटरियों, लकड़ी की शहतीरों का ढेर, बैरकों के टूटे हिस्से, ईंटें, रास्ते में बिछाने के पत्थर। यहीं वे बिरकेनाऊ के लिए माल लोड करते हैं: कैंप के निर्माण हेतु सामग्री, और गैस चैंबर्स के लिए लोग। लकड़ी, सीमेंट और लोगों से लदे ट्रक्स — नित्यप्रति की नियमित दिनचर्या। 


नाजी यातना शिविरों में से सबसे खराब शिविर, माऊथौसेन को अमेरिकी 11वीं बख्तरबंद डिवीजन ने 5 मई 1945 को मुक्त करा लिया था।


और अब रेलवे लाइन के किनारे, पटरियों के आरपार, सिलेसियन शाहबलूतों  की हरी छाया में, रैंप के चारो ओर एक घना वृत्त बनाने हेतु गार्ड्स तैनात किए जा रहे हैं।


“पीछे हटो!”


हम ढेर के रूप में रखी रेल की बेकार पटरियों के साथ बने शेड में पतली संकरी पंक्तियों में बैठ जाते हैं। भूखे यूनानी (कई सारे साथ आने में सफल हो गए है, ईश्वर जाने कैसे) रेल की पटरियों के नीचे कुछ तलाश रहे हैं। उनमे से एक फफूँद लगा ब्रेड पा जाता है, और एक अन्य कुछ सड़ी हुई सार्डिंन। वे खाने लगते हैं।


“श्वाइनद्रेक — सुअर,” मक्के के रंग वाले बालों और स्वप्निल नीली आँखों वाला एक लम्बा, युवा गार्ड थूकता है। “भगवान के लिए, किसी समय तुम्हारे पास अपनी गाँड़ में ठूँसने के लिए इतना भोजन होगा कि तुम लोग फट जाओगे!” वह अपनी बंदूक़ ठीक से पकड़ता है, अपना चेहरा रूमाल से पोछता है।


“हे मोटे!” उसका बूट हल्के से हेनरी के कंधे को स्पर्श करता है। “पास माल आउफ़ — ड्रिंक चाहते हो?”


“ज़रूर, मगर मुझे कोई मार्क्स नहीं मिले हैं,” फ़्रांसीसी थोड़े पेशेवर तरीक़े से जवाब देता है।


“दुःखद, बहुत ख़राब स्थिति है।”


“देखो, देखो, पोस्ट इंचार्ज साहब, क्या अब मेरी बात पर्याप्त नहीं है? क्या हमने पहले धंधा नहीं किया है? कितना होगा?”


“एक सौ। ठीक?”


“ठीक।”


हम पानी पीते हैं, गुनगुना और स्वादहीन। इसका भुगतान उन लोगों द्वारा किया जाएगा जो अभी तक वहाँ नहीं पहुँचे थे। 


“अब तुम सावधान हो जाओ,” हेनरी ने मेरी ओर मुड़ते हुए कहा। वह ख़ाली बोतल दूर उछाल देता है। वह रेल की पटरी से टकराती है और नन्हे टुकड़ों में विखंडित हो जाती है। “कोई मुद्रा मत लेना, वे जाँच कर सकते हैं। वैसे भी किस अभागे को मुद्रा की ज़रूरत है? तुम्हारे पास खाने के लिए पर्याप्त है। सूट भी मत लेना अन्यथा वे सोचेंगे कि तुम पलायन की योजना बना रहे हो। बस एक क़मीज़ लेना, केवल रेशमी, कॉलर वाली। और एक बनियान। और यदि तुम्हें कुछ पीने की चीज मिलती है तो मुझे बुलाने की ज़हमत मत करना। मुझे अपने लिए कैसे चीजों को अपने पक्ष में करना है, मैं जानता हूँ, तुम सावधानी बरतना अन्यथा वे तुम्हें उसे नहीं लेने देंगे।”


“क्या वे यहाँ पिटाई भी करते हैं?”


“स्वाभाविक है। तुम्हारी पीठ में भी आँख होनी चाहिए। आशआउगेन।”


हमारे आसपास यूनानी बैठे हैं, उनके जबड़े लालसा के साथ काम में लगे हुए हैं, मानों वे विशाल मानवीय कीट हों। वे बासी ब्रेड के टुकड़े चबा रहे हैं। वे अधीर हैं, आश्चर्य करते हुए कि आगे क्या होगा। बड़ी बड़ी शहतीरों और रेल पटरियों का ढेर उन्हें चिंतित कर रहा है। वे भारी बोझ धोना नापसंद करते हैं।


“हमें क्या काम करना होगा ?” वे पूछते हैं।


“कुछ नहीं। परिवहन की खेप आएगी, शवदाह गृह जाने वालों को शामिल करके?”


“सब समझ गये,” उन्होंने शवदाह गृह की वैश्विक भाषा में जवाब दिया। सब ठीक है – उन्हें भारी भरकम रेल पटरियाँ नहीं हटानी पड़ेंगी या शहतीरें नहीं ढोनी होगी।


इस दौरान, गतिविधियों के कारण रैंप जीवंत हो उठा है, निरंतर शोरगुल से भरा हुआ। कर्मचारी समूहों में बाँटे जा रहे हैं कि कौन आने वाली पशुओं को ढोने वाली मालगाड़ियों से सामान उतारेगा और कौन लकड़ी की सीढ़ियों पर नियुक्त किए जाएँगे। उन्हें निर्देश दिए जा रहे हैं कि किस प्रकार सर्वाधिक सक्षम तरीक़े से आगे काम करना है। मेडल्स से सजे, चमकदार पीतल से जगमगाते, खूब पालिश किए बूट्स और चमकते क्रूर और मांसल चेहरे वाले  एस. एस. अधिकारियों को ले कर मोटरसाइकिलें आ गयीं। कुछ अपने ब्रीफ़केस भी साथ ले आये हैं, अन्य पतले, लचीले कोड़े लिए हुए हैं। यह सब उन्हें सैन्य तैयारी और तत्परता का प्रभाव देता है। वे अपने कार्यालय के अंदर बाहर टहलने लगे – सड़क के किनारे की बुरी हालत वाली झोपड़ी उनके कार्यालय का काम करती है, जहाँ गर्मियों में वे मिनरल वाटर, स्टूडेंटेंक्वेले, पीते हैँ और जाड़े में गर्म वाइन के प्याले से स्वयं को गर्म रखते हैं। वे एक दूसरे का अभिवादन राज्य द्वारा अनुमोदित तरीक़े से करते हैं, रोमन शैली में एक बाँह उठा कर, फिर प्रेम से हाथ मिलाते हैं, गर्मजोशी से मुस्कुराते हैं, घर से आए पत्रों की चर्चा करते हैं, अपने बच्चों की, अपने परिवारों की। कुछ राजसी अन्दाज़ में रैंप पर चहलक़दमी करते हैं। उनकी कॉलर पर के सुनहले वर्ग चमकते हैं, बजरी उनके बूट्स के नीचे कड़कड़ाती है, उनकी बांस की छड़ियाँ अधीरता से सनसनाती हैं।


हम रेल की पटरियों के किनारे किनारे संकरी छाया में पड़े हैं, उखड़ी उखड़ी साँसें लेते हैं, यदा कदा अलग अलग जुबानों में कुछ शब्दों का आदान प्रदान करते हैं, और हरे वृक्षों के नीचे हरी वर्दी वाले राजसी आदमियों को तथा दूर गाँव के चर्च की घड़ी को देखते हैं।





“परिवहन खेप आ रही है,” कोई कहता है। हम अपने पैरों पर उछल पड़े, सभी आँखें एक ही दिशा में मुड गयीं। मोड़ के आस पास, एक के बाद एक जानवरों को ढोने वाले मालगाड़ी के डिब्बे प्रगट होने लगे। गाड़ी स्टेशन में पहुँचती है, एक कंडक्टर बाहर झाँकता है, अपना हाथ हिलाता है, सीटी बजाता है। साथ में रेलइंजन की सीटी की आवाज़ आती है, इंजन जोर से भाप छोड़ने की आवाज़ करता रैंप के साथ साथ धीरे धीरे चलता है। छोटे आकार की सलाख़ों वाली खिड़कियों से उलझे बालों वाली, आतंकित, थकान से टूट चुकी, सूखे तथा  बदरंग चेहरे वाली महिलाओं और बढ़ी दाढ़ी वाले पुरुषों के चेहरे दिखाई देते हैं। वे सन्नाटे में स्टेशन को घूरते हुए से थे। और फिर अकस्मात् डिब्बों के भीतर हलचल होने लगी लकड़ी के तख़्तों को पीटने की आवाज़ें होने लगीं।


“पानी! हवा! – थकी हुई, असहाय चीखें।


सिर खिड़कियों से बाहर निकलते है, मुँह अधीरता से हवा भीतर खींचते हैं। वे कुछ साँसें लेते हैं और फिर ग़ायब हो जाते हैं। चीखों और विलाप की आवाज़ें तीव्र होती जाती हैं।


हरी वर्दी में एक आदमी, जिसकी वर्दी में अन्य किसी से भी अधिक चमक थी, अधीरता से सिर हिलाता है, उसके होंठ नाराज़गी में टेढ़े हो गये। वह गहरी सांस लेता है फिर तेज़ी से अपनी सिगरेट दूर फेंक देता है और गार्ड को संकेत करता है। गार्ड अपने कंधे से ऑटोमैटिक बंदूक़ उतारता हैं और ट्रेन पर गोलियों की बौछार कर देता है। अब सब कुछ शांत है। इस दौरान ट्रक आ चुके हैं, सीढ़ियाँ लगाई जा रही हैं, और कनाडा समूह के लोग ट्रेन के दरवाज़ों के सामने अपनी अपनी जगह पर तैयार खड़े हैं। ब्रीफ़केस वाला एस. एस. अधिकारी अपना हाथ उठाता है।


“जो कोई भी भोजन के अतिरिक्त सोना अथवा और कोई भी चीज लेगा, राइख की संपत्ति चुराने के लिए उसे गोली मार दी जाएगी। समझे? वेरस्टेंडें?”


“जी बिलकुल!” हमने तत्परता से जवाब दिया।


“एल्सो लोस! शुरू करो!”


कुंडे खड़खड़ाते हैं, दरवाज़े खुल पड़ते हैं। ताजा हवा का एक झोंका रेलगाड़ी के भीतर तेज़ी से जाता है। लोग…. अमानवीय रूप से ठूँसे गए, सामानों के अविश्वसनीय ढेर तले दफ़न, सूटकेस, ट्रंक, सामानों के क्रेट, हर तरह के बंडल (हर चीज जो उनका अतीत थी और उनका भविष्य होने जा रही थी)। राक्षसी तरीक़े से एक साथ ठूँसे गए, लोग गर्मी से बेहोश हो गए हैं, सांस रुकने से मर गए, औरों के नीचे कुचल गए हैं। अब उन्होंने खुले हुए दरवाज़े की ओर बढ़ने हेतु ज़ोर लगाया, पानी से निकाल कर रेत पर रख दी गई मछली की भाँति साँसें लेते हुए।


“सावधान! बाहर निकलो और अपना लगेज अपने साथ ले लो। अपनी हर चीज ले लो। अपनी हर चीज बाहर जाने के द्वार के पास ढेर कर दो। हाँ, अपना कोट भी। अभी गर्मियाँ हैं। बायीं तरफ़ बढ़ो। समझे?”


“श्रीमान, हमारे साथ क्या होने जा रहा है?” वे ट्रेन से बाहर बजरी पर कूद रहे, आशंकित, थके हुए।


“तुम लोग कहाँ के हो?”


“सॉसनोविच, बेद्ज़ीन के। श्रीमान, हमारे साथ क्या होने जा रहा है?” उन्होंने प्रश्न दोहराया, ढिठाई से, हमारी थकी आँखों में झाँकते हुए।


“मुझे नहीं पता, मुझे पोलिश भाषा समझ में नहीं समझ आती।”


यह कैंप का नियम है: मरने जा रहे लोगों को अंत तक धोखे में रखा जाए। यही एकमात्र कृपा है जिसकी अनुमति है। गर्मी बहुत अधिक है। सूरज सीधे हमारे सिरों पर लटक रहा है, श्वेत, और दहकता आकाश चिलचिलाता हुआ, हवा में कंपन है, यदा कदा आने वाला हवा का झोंका किसी भट्ठी से आयी तपती हुई लपट जैसा लगता है। हमारे होठ सूख कर फट गए हैं, मुँह रक्त के नमकीन स्वाद से भरे हुए हैं, शरीर कमजोर और धूप में बैठे होने से भारी हो गए हैं। पानी!


लोगों की एक बहुरंगी विशाल लहर अपने सामान के साथ उतर कर नए रास्ते पर जाती किसी अंधी, पगलायी नदी की भाँति प्रवाहित हो रही है। किंतु इसके पूर्व कि उन्हें संभल पाने का एक अवसर मिलता, इसके पूर्व कि वे ताजा हवा की एक सांस ही ले पाते और एक बार असमान ही देख लेते, बंडल उनके हाथों से छीन लिए गए, कोट पीठ से नोच लिए गए हैं, उनके पर्स और छाते छीन लिए गए हैं।


“लेकिन श्रीमान, कृपा करें, यह धूप के लिए है, मैं इसके बिना नहीं रह सकता…”


“यह निषिद्ध है!” हम में से एक ने भिंचे हुए दांतों के साथ कहा। तुम्हारी पीठ के ठीक पीछे एस. एस. का एक आदमी खड़ा है, शांत, कार्यकुशल, सावधान।


“मीन हेरचाफें, इस तरफ़, देवियों और सज्जनों, कोशिश करें कि अपनी चीज़ें इधर इधर न फेकें। थोड़ी सद्भावना दर्शायें।” वह विनम्रता से कहता है, उसके अधीर हाथ पतली बेंत से खेल रहे हैं। 


“अवश्य, अवश्य,” उन्होंने गुजरते हुए कहा और अब वे रेललाइन के किनारे किनारे कुछ अधिक प्रसन्नता से चल रहे हैं। एक महिला अपना हैंड बैग लेने हेतु तेज़ी से नीचे पहुँचती है। कोड़ा उड़ता है, महिला चीखती है, लड़खड़ा जाती है और बढ़ती जा रही भीड़ के पैरों के नीचे गिर जाती है। उसके पीछे एक बच्ची अपनी महीन नन्ही आवाज़ में चीखती है “मामेल!” — काले घुंघराले और उलझे बालों वाली एक बहुत छोटी लड़की।


ढेर बढ़ता जाता है। सूटकेस, बंडल, कंबल, कोट, हैंडबैग जो गिरते ही खुल जाते हैं, सिक्के, सोना, घड़ियाँ बिखेरते हुए; बाहरी द्वार के पास ब्रेड का पहाड़ सा खड़ा हो गया है। मार्मलेड, जैम, माँस, सासेज; शक्कर बजरी पर बिखर रही है। आदमियों से भरे ट्रक बहरा कर देने वाली आवाज़ के साथ चालू होते हैं और अपने बच्चों से अलग कर दी गई औरतों के बिलखने और चीखने की आवाज़ों के बीच, बुत बने पुरुषों की खामोशी पीछे छोड़ कर वहाँ से चल देते हैं। ये वे हैं जिन्हें दाहिनी ओर हट जाने का आदेश हुआ है — स्वस्थ और युवा लोग जो कैंप में जाएँगे। अंत में वे भी मृत्यु से नहीं बच पाएँगे किन्तु उसके पूर्व उन्हें काम करना चाहिए।


ट्रक किसी राक्षसी कनवेयर बेल्ट की भाँति  बेरोकटोक आ जा रहे हैं। रेड क्रास लगी एक वैन निरंतर आ जा रही है : यह वह गैस ले जा रही है जो इन लोगों को मार डालेगी। उसके हुड पर बना विशाल क्रास,  रक्त जैसा लाल, धूप में पिघलता सा महसूस होता है।


डचाऊ के यातना शिविर की तरफ ले जाए जाते यहूदी



ट्रक पर के कनाडा समूह के लोग एक पल के लिए भी रुक नहीं सकते, सांस लेने भर को भी नहीं। वे लोगों को सीढ़ियों पर धकेलते हैं, ठूँस कर भरते हैं, हर ट्रक में साठ, थोड़े कम या ज़्यादा। पास ही अपने हाथ में एक नोटबुक लिए एक क्लीन शेव्ड ‘भद्र पुरुष’ खड़ा है, एक एस. एस. अधिकारी। हर जाने वाले ट्रक के लिए वह निशान लगाता है; सोलह जा चुके मतलब एक हज़ार लोग, थोड़ा कम या ज़्यादा। भद्र पुरुष शांत और सटीक है। उसके संकेत के बिना अथवा उसकी नोटबुक में निशान के बिना कोई ट्रक वहाँ से नहीं जा सकता : “ओर्डनंग मुस सीन” हर चीज व्यवस्थित होनी चाहिए।  निशान बढ़ कर हज़ारों में पहुँच जाते हैं, एक खेप में हज़ारों, जिसे बाद में हम सब सामान्य रूप से “सालोनिका से” “स्ट्रासबर्ग से” “ रॉटरडम से” कहेंगे। यह वाला “सॉस्नोविच बेद्ज़ीन” कहा जाएगा। सॉस्नोविक बेद्ज़ीन से आए इन नए क़ैदियों को क्रमांक दिया जाएगा। 131-2– हज़ार, निश्चित रूप से, यद्यपि बाद में हम उन्हें संक्षेप में साधारण तरीक़े से, मात्र 131-2 के क्रमांक से याद करेंगे।


खेप हफ्तों, महीनों, वर्षों तक तक बढ़ती रही। जब युद्ध समाप्त हो जाएगा, वे अपनी नोटबुक्स में निशान गिनेंगे – कुल पैंतालीस लाख लोग। युद्ध की सबसे रक्त रंजित लड़ाई, मज़बूत, एकीकृत जर्मनी की सबसे बड़ी विजय। एन राइख, एन वोल्क, एन फ़ुहरर (एक जनता, एक शासन, एक नेता) – और चार सामूहिक शवदाह गृह।


ट्रेन ख़ाली की जा चुकी है। एक दुबला-पतला, चेहरे पर बहुत से गड्ढे जैसे निशानों वाला एस. एस. अधिकारी अंदर झाँकता है, घृणा से सिर हिलाता है और हमारे समूह की तरफ़ मुड़ता है, उँगली से दरवाज़े की तरफ़ संकेत करता हुआ।


“रीन। साफ़ करो इसे!”


हम भीतर चढ़ जाते हैं। कोने में मानव मल मूत्र और त्याग दी गई कलाई घड़ियों के बीच मसले कुचले शिशु पड़े हैं, नंगे, बड़े सिरों और बढ़े हुए पेट वाले नन्हे राक्षस। हम उन्हें मुर्गियों की तरह बाहर लाते हैं, प्रत्येक हाथ में कई कई को पकड़े हुए।


“उन्हें ट्रकों तक मत ले जाओ, औरतों को पकड़ा दो,” एक एस. एस. अधिकारी सिगरेट जलाते हुए कहता है। उसका लाइटर ठीक से काम नहीं कर रहा; वह उसका सावधानी से परीक्षण करता है।


“ईश्वर के लिए इन्हें ले जाओ!” जब औरतें अपनी आँखें ढँके आतंक के मारे मुझसे दूर भागने लगीं तब मैं चीखा। 


ईश्वर का नाम विचित्र रूप से अर्थहीन लगता है, क्योंकि औरतें और शिशु, उनमें से हर एक बिना किसी अपवाद के ट्रकों पर जाएगा। हम सब जानते हैं कि इसका क्या मतलब है। और हम एक दूसरे की ओर घृणा और आतंक से देखते हैं।


“क्या, तुम उन्हें नहीं लेना चाहती?” गड्ढों वाले चेहरे वाला एस. एस. अधिकारी पूछता है, उसकी आवाज में आश्चर्य और तिरस्कार है। वह अपना रिवाल्वर निकालने को होता है।


“तुम गोली मत मारो, मैं उन्हें ले जाऊँगी,” एक लम्बी, भूरे बालों वाली औरत मेरे हाथों से नन्हे शव ले लेती है और एक क्षण को सीधे मेरी आँखों में देखती है।


“मेरा बेचारा बच्चा,” वह फुसफुसाती है और मेरी ओर देख कर मुस्कराती है। फिर वह रास्ते पर लड़खड़ाती हुई दूर चली जाती है। मैं ट्रेन की साईड पकड़ कर झुक जाता हूँ। मैं बुरी तरह थक गया हूँ। कोई मेरी बाँह खींचता है।

 

“एन अवांत, रेल लाइन की ओर, चलो!”


मैं ऊपर देखता हूँ लेकिन चेहरा मेरी आँखों के आगे तैर जाता है, घुल जाता है, बहुत बड़ा और पारदर्शी चेहरा, गतिहीन वृक्षों और लोगों के समुद्र में पिघल जाता है…मैं तेज़ी से पलकें झपकाता हूँ: हेनरी।


“सुनो, हेनरी क्या हम अच्छे लोग हैं?”


“बेवक़ूफ़ी की बात है। तुम क्यों पूछ रहे हो?”


“तुम देखो, मेरे दोस्त, तुम देखो, मैं नहीं जानता क्यों लेकिन मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा है, इन लोगों पर ग़ुस्सा, ग़ुस्सा इसलिए कि मैं यहाँ इन लोगों के कारण हूँ। मुझे कोई दया नहीं महसूस हो रही। मुझे दुख नहीं है कि वे लोग गैस चेंबर में जा रहे हैं। भाड़ में जाएँ वे सब। काश मैं उन पर टूट पड़ता, उन्हें घूँसों से पीट सकता। यह कोई बीमारी हो सकती है, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा…”।


युवा यहूदी जो नाज़ी यातना शिविरों से मुक्त कराए गए 



“आह, इसके विपरीत, यह सब सामान्य बात है, जानी समझी, नपी तुली। रैंप तुम्हें थका देता है, तुम विद्रोह करते हो – और अपनी घृणा निकालने का सबसे आसान तरीक़ा है किसी कमजोर पर पिल पड़ना। इसीलिए इसे मैं स्वस्थ प्रतिक्रिया मानता हूँ। यह सामान्य सा तर्क है, समझे? वह स्वयं को रेल पटरियों के ढेर के सहारे आराम से छोड़ देता है, “यूनानियों को देखो, वे जानते हैं कि इस अवसर का कैसे फ़ायदा उठाया जाए ! वे जो भी चीज पाते हैं उससे अपने उदर भर लेते हैं। उनमें से एक ने मार्मलेड का पूरा एक जार चट कर दिया है।


“सुअर! कल उनमें से आधे दस्त से मर जाएँगे।”


“सुअर? तुम्हें भी भूख लगी है।”


“सुअर! मैंने ग़ुस्से में दोहराया। मैं अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ। हवा भयंकर विलाप से भरी हुई है, मेरे पैरों के नीचे धरती काँप जाती है, मैं अपनी पलकों पर चिपचिपी नमी महसूस करता हूँ। मेरा गला एकदम सूखा हुआ है।


यह घृणित जुलूस चलता ही जाता है – ट्रक पागल कुत्तों की भाँति गरजते हैं। मैं अपनी आँखें कस कर बंद कर लेता हूँ लेकिन फिर भी मैं देख सकता हूँ - ट्रेन में से घसीटे जाते शव, कुचले मसले शिशु, मृतकों के ऊपर ढेर कर दिए गए अपंग, लहर के पश्चात लहर … माल गाड़ी आती हैं, कपड़ों, सूटकेसों और बण्डलों का ढेर बढ़ता जाता है, लोग बाहर आते हैं, धूप की ओर देखते हैं, कुछ साँसें लेते हैं, पानी के लिए रिरियाते हैं, ट्रक्स में चढ़ते हैं, दूर ले जाये जाते हैं। और फिर माल गाड़ी आती है, फिर लोग…। दृश्य मेरे मस्तिष्क में गडमड हो जाता है — मुझे निश्चय नहीं होता कि यह सब सचमुच घटित हो रहा है, अथवा मैं स्वप्न देख रहा हूँ। मेरे सिर के भीतर एक गूँज सी है; मुझे लगता है कि मैं उल्टी करने वाला हूँ।


हेनरी मेरी बाँह पकड़ लेता है।


“सोओ मत, हम लूट का माल लादने जा रहे हैं।”


सभी आदमी जा चुके हैं। दूर, कुछ आख़िरी ट्रक धूल के बादलों में से सड़क पर चले जा रहे हैं, रेलगाड़ी जा चुकी है, बहुत से एस. एस. अधिकारी रैंप पर ऊपर नीचे टहल रहे हैं। चाँदी उनके कॉलर पर चमचमाती है। उनके बूट चमकते हैं, उनके लाल मांसल चेहरे चमकते हैं। उनके बीच एक महिला है – अभी अभी मुझे भान हुआ कि वह इस पूरे समय यहीं थी – सूखी सी, सपाट वक्ष वाली, दुबली सी, उसके हल्के रंगहीन बाल पीछे की ओर नॉर्डिक शैली की गाँठ में बंधे हुए हैं, उसके हाथ उसके चौड़े स्कर्ट की जेब में हैं। चूहे जैसी दृढ़ मुस्कान उसके होठों पर चिपकी हुई है। वह रैंप के चारो ओर सूँघती सी घूमती है। वह स्त्री सौंदर्य से घृणा करती है, एक ऐसी स्त्री की घृणा जो स्वयं घृणोत्पादक है और इसे जानती भी है। हाँ, उसे मैंने पहले भी कई बार देखा है और मैं उसे जानता भी हूँ: वह एफ़. के. एल. की कमांडेंट है। वह महिलाओं की नई खेप देखने आयी है - क्योंकि उनमें से कुछ ट्रकों पर जाने की बजाय, पैदल जायेंगी – कांसंट्रेशन कैंप की ओर। वहाँ हमारे लड़के, ज़ौना के नाई, उनके सिर के बाल साफ़ करेंगे और उनकी “बाहरी दुनिया” के शील और सम्मान पर हँसेंगे।


हम लूट का माल लादने के लिए बढ़ते हैं। हम बड़े बड़े बक्से उठाते हैं, और उन्हें ट्रक में लादते हैं। वहाँ वे एक के ऊपर एक कसे हुए करीने से रखे जाते हैं। यदा कदा कोई किसी एक बॉक्स को मजे अथवा वोदका या इत्र की तलाश में चाकू से चीर कर खोल देता है। एक क्रेट गिर कर खुल जाता है; सूट, क़मीज़ें, किताबें बाहर ज़मीन पर गिर पड़ती हैं… मैं एक छोटा, भारी पैकेज उठा लेता हूँ। मैं उसे खोलता हूँ – सोना, दो मुट्ठी भर, ब्रासलेट्स, अँगूठियाँ, ब्रोच, हीरे….


“ग़िब हिया — यहाँ लाओ,” एक एस. एस. अधिकारी अपना ब्रीफ़केस, जो पहले से ही सोने और रंगीन विदेशी मुद्रा से भरा है, लिए हुए शांति से कहता है। वह ब्रीफ़केस बंद कर देता है, उसे एक अन्य अधिकारी को दे देता है, वह एक और ब्रीफ़केस ले लेता है, एक ख़ाली ब्रीफ़केस, और अगले ट्रक के पास प्रतीक्षा करता खड़ा हो जाता है। सोना राइख के लिए जाएगा।


दिन बहुत गर्म है, भयानक रूप से गर्म। हमारे गले शुष्क हैं, हर शब्द तकलीफ़ देता है। एक घूँट पानी के लिए कुछ भी किया जा सकता है। तेज, और तेज, ताकि यह सब ख़त्म हो जाये। अंततः हमारा काम पूरा हो गया है, सभी ट्रक जा चुके हैं। अब हम तेजी से बची हुई गंदगी साफ़ करते हैं: ‘श्वाइनहाई’- कचरे का कोई चिह्न शेष नहीं रहना चाहिए। किंतु जैसे ही आख़िरी ट्रक पेड़ों के पीछे ओझल होता है और हम, अंततः, छाया में विश्राम के लिए जाते हैं, मोड़ के पास एक तीखी सीटी की आवाज आती है। धीमे, धीमे, भयंकर धीमी गति से एक रेलगाड़ी प्रवेश करती है, इंजन बहरी कर देने वाली तीखी आवाज में चीखता है। फिर, पीले पड़ गये, थके चेहरे खिड़कियों पर दिखाई देते हैँ, इतने सपाट मानों कागज़ में से काटे गये हों, बड़ी बड़ी, बुखार की मानिंद जलती हुई आँखों वाले चेहरे। ट्रक पहले से ही आने लगे हैं, नोटबुक वाले गम्भीर श्रीमान अपनी जगह पर आ चुके हैं, और एस. एस. के लोग सोने और विदेशी मुद्रा के लिए ब्रीफ़केस लिए कार्यालय से प्रगट होते हैं। हम रेलगाड़ी के दरवाज़े खोलते हैं। 


अब स्वयं को और देर तक नियंत्रित कर पाना असंभव है। क्रूरता से हम उनके हाथ से सूटकेस नोच लेते हैं, अधीरता से उनके कोट उतारते हैं। जल्दी करो, जल्दी करो, ग़ायब हो जाओ! वे चले जाते हैं, वे ग़ायब हो जाते हैं। आदमी, औरतें, बच्चे। उनमें से कई यह जानते हैं।


यहाँ एक स्त्री है — वह तेजी से चलती है किंतु शांत दिखने का प्रयत्न करती है। लाल गालों वाला एक छोटा बच्चा उसकी ओर दौड़ता है, पहुँच पाने में असफल रहने पर, वह अपनी बाँहें फैलाता है और चिल्लाता है: मामा! मामा!


“अपना बच्चा उठाओ, औरत !”


यह मेरा नहीं है, श्रीमान, मेरा नहीं है!” वह अपने हाथों से अपना चेहरा ढाँपे पागलों की भाँति चीखती हुई भागती है। वह छिपना चाहती हैं, वह उनके पास पहुँचना चाहती है जो ट्रक पर नहीं चढ़ेंगे, जो पैदल जाएँगे, जो जीवित रहेंगे। वह युवा है, स्वस्थ, और सुदर्शन, वह जीवित रहना चाहती है।


लेकिन बच्चा उसके पीछे भागता है, जोर से चीखता हुआ: “मामा, मामा, मुझे मत छोड़ो!” 


“यह मेरा नहीं है, मेरा नहीं है, नहीं!”


आंद्रेई, सेवास्टोपोल का एक नाविक, उसे पकड़ लेता है। उसकी आँखें वोदका और गर्मी से शीशे जैसी हो रहीं है। एक ही शक्तिशाली चोट से वह उसे ज़मीन पर गिरा देता है, फिर जैसे ही वह गिरती है, वह उसके बाल पकड़ता है और पुनः खड़ा कर देता है। उसका चेहरा ग़ुस्से से विकृत हो जाता है।


“हरामी यहूदी। तो तुम अपने ख़ुद के बच्चे से दूर भाग रही हो। मैं तुम्हें दिखाता हूँ, रण्डी!” उसके विशाल हाथ उसका गला घोंट रहे होते हैं, वह उसे हवा में उठा लेता है और ट्रक में अनाज के भारी बोरे की भाँति फ़ेक देता है।


“और इसे भी ले जा कुतिया!” वह बच्चे को उसके पैरों के पास फ़ेक देता है।


“गूत गेमाख़्त, बहुत बढ़िया। बदजात माँओं से निपटने का यही सही तरीक़ा है।” ट्रक के पास खड़ा एस. एस. का सदस्य कहता है। “गूत, गूत, रुस्की।”


“अपना मुँह बंद करो,” भिंचे हुए दांतों से आंद्रेई गुर्राता है और दूर चला जाता है। चीथड़ों के ढेर में से वह एक बोतल निकालता है, कार्क खोलता है, कुछ गहरे घूँट लेता है और उसे मेरी ओर बढ़ा देता है। तेज वोदका गला जला देती है। मेरा हृदय तैरने सा लगता है, मेरे पाँव लड़खड़ा रहे हैं, मैं पुनः उल्टी करने जैसा महसूस कर रहा हूँ।


और अचानक, किसी अदृश्य शक्ति द्वारा चलायमान नदी की भाँति आगे बढ़ती अंतहीन भीड़ के ऊपर एक लड़की प्रगट होती है। वह धीरे धीरे रेलगाड़ी से उतरती है, बजरी पर तेजी से आगे बढ़ती है, आस पास पता लगाती हुई सी देखती है, मानों कुछ कुछ आश्चर्यचकित हो। उसके कोमल, सुनहले बाल लटों में उसके कंधों पर गिरे हुए हैँ, वह अब उन्हें अधीरता से पीछे करती है। एक सामान्य क्रिया के रूप में वह अपने हाथ अपने ब्लाउज से नीचे के कपड़ों पर फेरती है, अनायास अपने स्कर्ट को सीधा करती है। वह इस तरह से एक क्षण भीड़ को देखती हुई खड़ी रहती है, फिर मुड़ती है और एक फिसलती सी नज़र भीड़ पर डालती है, फिर मुड़ती है और उड़ती नज़र से हमारे चेहरों का परीक्षण करती है, मानों किसी को तलाश रही हो। बिना जाने ही मैं उसे ताकना जारी रखता हूँ, जब तक कि हमारी आँखें नहीं मिलती।


“सुनो, मुझे बताओ, वे हमें कहाँ ले जा रहे हैं?”


मैं बिना एक भी शब्द कहे उसे देखता रहता हूँ। यहाँ, मेरे सामने एक लड़की खड़ी है, अद्भुत सुनहले बालों वाली एक लड़की, सुंदर वक्षों वाली, छोटा सूती ब्लाउज पहने, अपनी आँखों में बुद्धिमत्तापूर्ण, परिपक्व चमक लिए एक लड़की। वह यहाँ खड़ी है, मेरे चेहरे को देखती, प्रतीक्षारत। और दूर वहाँ गैस चेंबर है: सामूहिक मृत्यु, घृणित और कुरूप। और उधर दूसरी दिशा में कांसंट्रेशन कैंप है : घुटा हुआ सिर, तपती गर्मी में भारी सोवियत पैंट, बीमार करती, स्त्री देह की नम, बासी गंध, पशुवत् भूख, अमानवीय श्रम, और बाद में वही गैस चैम्बर, कुछ और भयानक, कुछ और घृणित मौत….


वह इसे क्यों ले आयी थी? मैं उसकी नाज़ुक कलाई में एक प्यारी सी सोने की घड़ी को देख कर अपने आप सोचता हूँ। वैसे भी वे इसे उससे ले लेंगे।


“सुनो, मुझे बताओ,” वह पुनः दोहराती है।


मैं चुप रहता हूँ। उसके होंठ भिंच जाते हैं।


“मैं जानती हूँ,” वह अपना सिर झटक कर एक गर्वीली घृणा की छाया अपनी आवाज में लिए कहती है। वह ढ़ृढ़ निश्चय के साथ ट्रक्स की दिशा में चली जाती है। कोई उसे रोकना चाहता है, वह निडरता से उसे एक ओर धकेल देती है और सीढ़ियों पर दौड़ जाती है। दूर खड़ा मैं हवा में उड़ते उसके सुनहले बालों की झलक भर देख पाता हूँ।


नाज़ी यातना शिविर का एक दृश्य



मैं रेलगाड़ी के अंदर वापस जाता हूँ; मैं मृत शिशुओं को बाहर लाता हूँ; मैं सामान नीचे उतारता हूँ। मैं शवों को स्पर्श करता हूँ, लेकिन मैं निरंतर बढ़ रहे अनियंत्रित आतंक से पार नहीं पा पाता। मैं शवों से दूर जाने का प्रयत्न करता हूँ, लेकिन वे हर तरफ़ हैं, बजरी पर पंक्तिबद्ध रखे हुए, रैंप के सीमेंट के किनारे पर, पशु ढोने वाली मालगाड़ी के डिब्बों में। बच्चे, भयानक नग्न औरते, ऐंठन से मुड़े हुए पुरुष। मैं जितनी दूर भाग सकता हूँ, भागता हूँ लेकिन तत्काल ही एक कोड़ा मेरी पीठ को काट देता है। अपनी आँखों के कोने से मैं एस. एस. के एक अधिकारी को जोर से बड़बड़ाते देखता हूँ। मैं आगे को लड़खड़ाता हूँ और भागता हूँ, और कनाडा समूह में घुस जाता हूँ। अब कम से कम एक बार फिर मैं रेल की पटरियों के ढेर के सहारे विश्राम कर सकता हूँ। सूरज क्षितिज पर नीचे झुक गया है और रैंप को एक लालिमा युक्त चमक से प्रकाशित कर रहा है। वृक्षों की परछाइयाँ लम्बी हो गई हैं, प्रेतों जैसी। उस मौन में जो दिन के इस समय प्रकृति में पसरता है, मनुष्यों की चीखें दूर आकाश तक उठती हुई महसूस होती हैं। 


मात्र इस दूरी से ही कोई भीड़ भरे रैंप पर के नर्क को पूरी तरह देख सकता है। मैं एक मानव जोड़े को देखता हूँ जो एक अंतिम निराश आलिंगन में बंधे ज़मीन पर गिरे हुए हैं। आदमी ने स्त्री की देह में अपनी उँगलियों गड़ा रखी हैं और उसके वस्त्रों को दांतों से पकड़ रखा है। वह पागलों की भाँति चीखती है, क़समें खाती है, रोती है, जब तक कि अंत में एक भारी बूट उसके गले पर नहीं आ पड़ता और वह चुप हो जाती है। वे खींच कर अलग कर दिए गए हैँ और जानवरों की भाँति ट्रक की ओर घसीट कर ले जाए जा रहे हैँ। मैं देखता हूँ कि चार कनाडा वाले एक स्त्री की भारी, फूली हुई लाश ट्रक में चढ़ा रहे हैं। वे गालियाँ देते, थकान से बहते पसीने से भीगे, कुछ भटकते हुए बच्चों को – जो सारे रैंप पर इधर उधर बिलबिलाये कुत्तों की भाँति हाहाकर करते दौड़ रहे हैं – अपने रास्ते से ठोकर मार कर हटाते हैं। आदमी उन्हें कॉलर से, हाथ से, सिर से, पाँव से पकड़ते हैं और ट्रक के भीतर ढेर के ऊपर उछाल देते हैं। चारों आदमियों को भारी भरकम लाश को ट्रक पर चढ़ाने में दिक़्क़त हो रही है, वे औरों को मदद के लिए पुकारते हैं, और साथ मिल कर माँस के ढेर को ऊपर चढ़ाते हैं। बड़ी बड़ी, सूजी हुई, फूल चुकी लाशें सारे रैंप पर से इकट्ठी की जा रही हैं; उनके ऊपर अपंगों का, कुचले हुए लोगों का, बीमारों और बेहोश हो गए लोगों का ढेर है। ढेर चीख़ों को, गुर्राहटों को छिपा लेता है। चालक मोटर चालू करता है, ट्रक आगे बढ़ने लगता है।


“ठहरो! ठहरो!” एस. एस. का एक आदमी पीछे से चीखता है। “रुको, बेवक़ूफ़!”


वे एक वृद्ध व्यक्ति को, जो लंबा कोट और अपनी बाँह पर एक पट्टी पहने हैं, घसीटते हुए ट्रक की ओर ला रहे हैं। उसका सिर बजरी और फुटपाथ से टकराता है; वह कराहता है और एक बिना रुके एकालाप में विलाप करता है, :”इश विल मिट डेम हेर्न कमांडान्ते स्प्रीचे — मैं कमांडेंट से बात करना चाहता हूँ….” वह बुढ़ापे की धृष्टता के साथ ये शब्द पूरे समय दोहराता रहता है। ट्रक पर फ़ेक दिए जाने, दूसरों के नीचे दब जाने, दम घुटने के बावजूद वह चीखता है: "इश विल मिट डेम….”


“इधर देखो, बुड्ढे!” एक युवा एस. एस. सदस्य प्रसन्नता से हँसता हुआ पुकारता है। “आधे घंटे में तुम सर्वोच्च कमांडेंट से बातें कर रहे होओगे! बस ‘हेल हिटलर’ कह कर उस का अभिवादन करना मत भूलना!”


कई और व्यक्ति एक टाँग वाली एक छोटी सी लड़की को ला रहे हैं। वे उसे बाहों से और एक टाँग से पकड़े हुए हैं। उसके चेहरे से हो कर आँसू बह रहे हैं और वह अस्फुट आवाज में बुदबुदा रही है : “सर, मुझे तकलीफ़ हो रही है, तकलीफ़ हो रही है…” वे उसे ट्रक में लाशों के ऊपर फ़ेक देते हैं। वह उन शवों के साथ ज़िंदा ही जलेगी।


स्वच्छ और शीतल साँझ आ चुकी है। तारे निकल आये हैं। हम रेल की पटरियों के सहारे पड़े हैं। सब कुछ अविश्वसनीय रूप से मौन है। ऊँचे लैंप पोस्टों पर मरियल रोशनी वाले बल्ब लटके हैं; प्रकाश के वृत्त के परे अभेद्य अंधेरा पसरा हुआ है। बस एक कदम और कोई सदैव के लिए ग़ायब हो सकता है। लेकिन गार्ड देख रहे हैं, उनके स्वचालित हथियार तैयार है।


“क्या तुम्हें जूते मिले?” हेनरी पूछता है।


“नहीं”


“क्यों?”


“भगवान के लिए भाई, हो गया, बस हो गया!”


“इतनी जल्दी? बस दो ही खेप के बाद? मुझे देखो, मैं…. क्रिसमस से यहाँ हूँ, मेरे हाथों के नीचे से कम से कम दस लाख लोग गुजर चुके हैं। सबसे ख़राब खेप पेरिस के आस पास की होती है — कोई न कोई मित्र टकरा ही जाता है।”


“और तुम उनसे क्या कहते हो?”


“यही कि पहले वे स्नान करेंगे, फिर हम कैंप में मिलेंगे। और क्या कह सकते हो?”


मैं जवाब नहीं देता हूँ। हम वोदका के साथ कॉफ़ी पीते हैं; कोई कोकोआ का एक डिब्बा खोलता है और उसमें शक्कर मिलाता है। हम इसे एक एक मुट्ठी लेते हैं, कोकोआ होठों से चिपकता है। फिर कॉफ़ी, फिर वोदका।


“हेनरी, हम किस चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हैं?”


“अभी एक और खेप आएगी।”


“मैं अब नहीं उतारने जा रहा! अब मुझसे नहीं होगा।”


“तो तुम इतने से ही पस्त हो गये? कनाडा वाले बढ़िया हैं? हेनरी दया से हँसता है और अंधेरे में गुम हो जाता है। एक क्षण में वह पुनः वापस आ जाता है।


“ठीक है, फिर चुपचाप यहाँ बैठो और एस. एस. के आदमियों को दिखाई मत पड़ना। मैं तुम्हारे लिए जूते लाने की कोशिश करूँगा।”


“बस मुझे अकेला छोड़ दो। जूतों की चिंता मत करो।” मैं सोना चाहता हूँ। बहुत देर हो गई है।


एक और सीटी, एक और खेप। अंधेरे में से मालगाड़ी के डिब्बे प्रगट होते हैं, लैम्पपोस्टों के नीचे से गुजरते हैं और पुनः रात्रि के अंधेरे में ग़ायब हो जाते हैं। रैंप छोटा है लेकिन रोशनी का घेरा उससे भी छोटा है। अनलोडिंग क्रमिक रूप से की जानी है। दूर कहीं ट्रक गड़गड़ा रहे हैं। वे सीढ़ियों के पास पीछे की ओर आते हैं, काले, प्रेत जैसे, उनकी हेड लाइट्स पेड़ों के आर पार चमकती हैं। वासा! लुफ्त! – पानी! हवा! वही सब कुछ एक बार फिर, मानों कोई फ़िल्म दोबारा दिखाई जा रही हो : गोलियों की आवाज, रेलगाड़ी ख़ामोश हो जाती है। बस इस बार एक लड़की छोटी खिड़की में अपना आधा शरीर घुसेड़ लेती है, संतुलन खो कर नीचे पथरीली ज़मीन पर गिर जाती है। स्तंभित, वह एक क्षण को पड़ी रहती है, फिर उठती है और एक वृत्ताकार में चलने लगती है, तीव्र और तीव्र, अपनी अकड़ी हुई बाँहें हवा में लहराती हुई, जोर से उखड़ी उखड़ी सांसें लेती हुई, अस्पष्ट आवाज में गुनगुनाती हुई। उसका दिमाग़ रेलगाड़ी के भीतर के नर्क में ही जवाब दे गया है। उसका गुनगुनाना सहन कर पाना कठिन है: एक एस. एस. गार्ड उसकी ओर धीरे से बढ़ता है, उसका भारी बूट उसके कंधों के मध्य चोट करता है। वह गिर जाती है। उसे अपने पैर के नीचे दबाए हुए वह अपनी रिवाल्वर निकालता है, एक फ़ायर करता है, फिर दूसरा। वह चेहरा नीचे किए पड़ी रहती है, अपने पाँव बजरी पर रगड़ती हुई, जब तक कि उसकी देह अकड़ नहीं जाती। वे रेलगाड़ी को खोलने के लिए आगे बढ़ते हैं।


मैं वापस रैंप पर आ गया हूँ, दरवाज़े के पास खड़ा हूँ। भीतर से एक गर्म, बीमार करती सी गंध तेज़ी से बाहर आती है। छत की लगभग आधी ऊँचाई तक ऊँचा लोगों का पहाड़ गतिहीन है, बुरी तरह उलझा किंतु अभी भी गर्म भाप छोड़ता हुआ।


“ऑसलादेन!”  उतारो! आदेश होता है। एक एस. एस. गार्ड अंधेरे में से बाहर आता है। उसके सीने पर एक सर्चलाइट लटकी हुई है। वह भीतर रोशनी फेकता है।


“तुम इस तरह भेड़ की तरह क्यों खड़े हो? उतारना शुरू करो।”





उसका कोड़ा उड़ता है और हमारी पीठों के आर पार गिरता है। मैं एक शव को हाथ से पकड़ता हूँ; उसकी उँगलियां मेरी उँगलियों में कस कर उलझ जाती हैं। मैं एक चीख के साथ अपना हाथ छुड़ाता हूँ और लड़खड़ा कर दूर चला जाता हूँ। मेरा हृदय जोर से धड़कता है और उछल कर मेरे गले में आ जाता है। मैं अब और उबकाई नहीं रोक पाता हूँ। ट्रेन के नीचे उकड़ूँ बैठा मैं उल्टी करना शुरू कर देता हूँ। फिर एक पियक्कड़ की भाँति लड़खड़ाता हुआ मैं रेल की पटरियों के ढेर पर बिछ जाता हूँ।


मैं शीतल, कृपालु धातु पर पड़ा हूँ और कैंप में लौटने, अपनी चारपाई पर, जिस पर कोई बिछावन नहीं है लौटने, उन साथियों के मध्य सोने के स्वप्न देखता हूँ जो आज रात गैस चैम्बर नहीं जा रहे। अकस्मात् कैंप मुझे शांति के स्वर्ग जैसा दिखता है। यह सच है, अन्य लोग मर रहे हो सकते हैं, लेकिन कोई एक अब भी किसी तरह जीवित है, किसी एक के पास पर्याप्त भोजन है, काम करने के लिए पर्याप्त ताक़त…।


रैंप पर प्रकाश धारियों में झिलमिला रहा है, लोगों की लहरें - बौखलाए, उद्वेलित, स्तंभित लोग - प्रवाहित हो रही हैँ - एक के बाद एक, अंतहीन रूप से। वे सोचते हैं अब वे कैंप में एक नए जीवन का सामना करने वाले हैं और वे स्वयं को आगे के कठिन संघर्ष हेतु भावनात्मक रूप से तैयार कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि कुछ ही क्षणों में वे मर जाएँगे और सोना, पैसा और हीरे जिन्हें उन्होंने इतनी सावधानी से अपनी देह में और अपने कपड़ों में छुपा रखा है अब उनके लिए व्यर्थ हैं। अनुभवी पेशेवर उनकी देह के एक एक अंतराल में खोजेंगे और सोना उनकी जीभ के नीचे से, और हीरे उनके गर्भाशय और मलाशय में से खींच निकालेंगे। वे सोने मढ़े दाँत तोड़ डालेंगे। अच्छे से सील किए बक्सों में वे उन्हें बर्लिन भेज देंगे।


एस. एस. गार्ड्स की काली आकृतियाँ गरिमायुक्त, पेशेवर तरीक़े से गतिशील हैं। नोटबुक वाले भद्र पुरुष आख़िरी निशान लगाते हैं, गिनती कर राउंड फ़िगर निकालते हैं। पंद्रह हज़ार।


बहुत, बहुत सारे ट्रक आज शवदाह गृह तक ले जाए गए।


काम लगभग समाप्त हो चुका है। मृतकों को रैंप पर से उतारा और अंतिम ट्रक में लादा जा रहा है। कनाडा लोग, ब्रेड, मार्मलेड और शक्कर के बोझ से लदे, ताजा मलमल और परफ़्यूम की महक में डूबे, जाने के लिए पंक्तिबद्ध हैं। कई दिनों तक पूरा कैंप आज की खेप के सहारे जिएगा। कई दिनों तक पूरा कैंप “सॉसनोविच बेड्ज़ीन” के बारे में बात करेगा। “सॉसनोविच बेड्ज़ीन” एक अच्छी, समृद्ध खेप थी।


जब हम कैंप के लिए वापस लौटे तारे मद्धम पड़ने लगे हैं। आकाश पारदर्शी होने और हमारे सिरों के दूर ऊपर खुलने लगा है — रोशनी बढ़ने लगी है।


शवदाह गृह से धुएँ का विशाल पहाड़ उठ कर बिरकेनाऊ के आकाश में धीरे से बहती विशाल काली नदी में घुल जाता है और ट्रेबीनिया की दिशा में स्थित जंगलों के परे तिरोहित होता जाता है। “सॉसनोविच बेड्ज़ीन” की खेप अब तक जल रही है।


हम एस. एस. गार्ड्स के एक हथियारबंद विशाल दल को पार करते है जो सुरक्षा व्यवस्था की पाली बदलने जा रहा है। वे तेज़ी से चल रहे हैं, कदम से कदम, कंधे से कंधा मिलाए, एक समूह, एक इच्छाशक्ति।


“उन मॉर्गन दि गंज वेल्ट — और कल सारी दुनिया…” वे अपने पूरे ज़ोर से गाते हैं।


“दाहिने चलो!” सामने से एक कड़क आदेश होता है। हम उनके रास्ते से हट जाते हैं।


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सन्दर्भ 

1. हाइड्रोजन सायनाइड आधारित एक कीटनाशक जिसका प्रयोग नाज़ी कंसनट्रेशन कैंपों के गैस चैंबर्स में क़ैदियों को मारने के लिए किया जाता था।

2. स्पैनिश गोट- क्रॉस के आकार की कँटीले तारों से लिपटी लकड़ी की बल्लियों की बाड़।

3. कंसनट्रेशन कैंप - कैंप जहाँ बड़ी संख्या में युद्धबंदियों को नाज़ियों द्वारा अत्यंत बुरी परिस्थितियों में रखा जाता था।

4. कनाडा- नाज़ी कैंप की भाषा में क़ैदियों का एक समूह 

5. हरमेनज गाँव में स्थित ऑशविच का एक छोटा कैंप

6. कमांडो के लिए जर्मन शब्द जो अक्सर होलोकास्ट कंसनट्रेशन कैंपों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है।

7. मुस्लिम - कंसनट्रेशन कैंप के उन क़ैदियों को कहा जाता था जो मानसिक और शारीरिक रूप से पूर्णतः टूट चुके होते थे।

8. ब्लॉक एल्डर - कंसनट्रेशन कैंप में एक मुख्य क़ैदी जिसका काम क़ैदियों में अनुशासन बनाये रखना होता था।

9. कापो - कंसनट्रेशन कैंप में बेगार करने वाले क़ैदियों का सुपरवाईजर क़ैदी।

10. हिटलर द्वारा तैयार विशेष सैन्य टुकड़ी।

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इस पोस्ट में प्रयुक्त सभी चित्र गूगल के सौजन्य से लिए गए हैं।





सम्पर्क 


श्रीविलास सिंह 


मोबाइल : 8851054620


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