अजामिल
जन्म : आजादी के बाद किसी 
एक दिन
प्रकाशन : देश की लगभग सभी 
महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं 
में कविताओं का प्रकाशन, त्रयी-एक, 
शिविर, काला इतिहास, आठवें दशक 
की सर्वश्रेष्ठ 
कविताएँ, जो कुछ हाशिए पर लिखा 
है आदि काव्य संकलनों में कवितायेँ शामिल | स्वतंत्र 
काव्य संकलन शीघ्र प्रकाश्य 
|
सम्प्रति :  इलाहाबाद के एक 
स्थानीय चैनल में समाचार 
संपादक|
अजामिल ऐसे कवि हैं जो जीवन को उसकी पूरी रंगत के साथ जीने के पक्षधर हैं. असुरक्षित-सुरक्षित कविता इस बात की तस्दीक करती है. जिसमें वे स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि सुरक्षित तो केवल अतीत होता है. वह अतीत जो वर्त्तमान से विदा ले चुका होता है. जबकि जीवन की तो यही खूबी होती है कि वह हमेशा असुरक्षित होता है, अपनी जिजीविषा के साथ वर्त्तमान में जीता है. दरअसल यह एक कवि का संघर्ष है जो तमाम असुरक्षाओं के बीच भी रचता है वह कविता जिसमें बेख़ौफ़ होकर वह अपनी बातें करता है और एक सुरक्षित एवं बेहतर भविष्य रचने की कामना करता है. इसी क्रम में पहली बार पर प्रस्तुत है शब्द को सबसे बड़ा आविष्कार मानने वाले हमारे वरिष्ठ कवि अजामिल की कुछ नवीनतम कविताएँ...
   
अजामिल ऐसे कवि हैं जो जीवन को उसकी पूरी रंगत के साथ जीने के पक्षधर हैं. असुरक्षित-सुरक्षित कविता इस बात की तस्दीक करती है. जिसमें वे स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि सुरक्षित तो केवल अतीत होता है. वह अतीत जो वर्त्तमान से विदा ले चुका होता है. जबकि जीवन की तो यही खूबी होती है कि वह हमेशा असुरक्षित होता है, अपनी जिजीविषा के साथ वर्त्तमान में जीता है. दरअसल यह एक कवि का संघर्ष है जो तमाम असुरक्षाओं के बीच भी रचता है वह कविता जिसमें बेख़ौफ़ होकर वह अपनी बातें करता है और एक सुरक्षित एवं बेहतर भविष्य रचने की कामना करता है. इसी क्रम में पहली बार पर प्रस्तुत है शब्द को सबसे बड़ा आविष्कार मानने वाले हमारे वरिष्ठ कवि अजामिल की कुछ नवीनतम कविताएँ...
असुरक्षित-सुरक्षित
इस बदलते 
परिदृश्य में
जब सारा 
कुछ असुरक्षित हो चूका 
हो,
एक हाँथ 
दूसरे हाँथ का
भरोसा न 
कर पा रहा हो
जनसंघर्षो 
में लोग चीखते-चिल्लाते 
हुए
लगातार 
कर रहे हैं सुरक्षा की 
मांग |
कोई असुरक्षित 
है सुरक्षित से
तो कहीं 
सुरक्षित असुरक्षित हैं 
सुरक्षित से
जिंदगी 
नई समस्याओं के रूबरू हो रही 
है-हर पल
और हर पल, 
हर पल अपनी हैसियत खो रहे 
हैं-
हजारों 
समाधान |
कितने असुरक्षित 
हो गए हैं समाधान
नई चेतना 
को बाँध पाना मुश्किल हो रहा 
है
नए सूत्रों 
से, सवाल हैं-जवाब नहीं है किसी 
के पास,
कोई लीक 
नहीं, कोई सीमा नहीं,
कोई नक्शा 
नहीं, कोई तस्वीर नहीं
आईने की 
तरह साफ़ है जिंदगी का चेहरा
फिर भी असुरक्षित 
है जिंदगी
जिंदगी 
जितनी सुरक्षित है
उतनी ही 
असुरक्षित है जिंदगी
असुरक्षा 
जीवंत है – सुरक्षा में है 
मौत
जीवन को 
प्रेम करोगे
तो प्रेम 
करना ही होगा असुरक्षा को
जीवन का 
प्रेम संभव नहीं
अनिवार्य 
असुरक्षा के खतरों के बीच 
से गुज़रे बगैर |
सुरक्षित 
केवल अतीत है
हमेशा असुरक्षित 
और जिजीविषा के साथ है
सुरक्षित 
वर्तमान और सुरक्षित भविष्य|
                   अकाल प्रेत
महोदय,
इस युद्ध 
में अनवरत लड़ते न रहें 
हम
तो क्या 
करेंगे/सुबह से शाम तक आखिर 
कोई
कितना अर्थहीन 
होगा ?
आखिर समय 
की धड़धड़ाती मशीनों के बीच
घूमते चक्के 
ही तो है हम,
भंगिमाएं 
कुछ भी हो,
तकलीफे 
पूँजी तो नहीं कि आदमी के
हड़पने के 
संस्कार काम आ जाएं/और 
बदबूदार मोजों के साथ
जिंदगी 
की सडन भी आज़ाद हो जाए |
दरअसल नाखून 
कटवा लेने से
आदमियत 
नहीं लौटती,
चेहरें 
तब खुलते हैं
जब संस्कार 
धुलते हैं |
मुक्ति 
के लिए फिर कोई जश्न हो 
और
गर्दनें 
चाक़ू की धार पर रखी जाएँ
फिर कहीं 
भड़क उठे कोई आग
सन्दर्भों 
को मिले कोई भाषा,
इसके पहले 
हम तुम्हारे साथ होना चाहेंगे
उत्तेजित 
भीड़ के रहनुमाओं,
बहंस और 
कार्यवाही के बीच
पैदा करना 
होगा संतुलन
अतिरिक्त 
बहाव को बांधना होगा परिधि 
में
मछली जल 
में है
और तुम्हारी 
आँखें हवा की मोटी पर्त 
के ऊपर,
वक्त रहते 
निशाने को समझो,
और सामोहिक 
बलि को रोको,
गिरगिट 
की तरह रंग बदलते
ये राजीतिक 
नुमांइदे, और कोई नहीं
दलाल चेहरें 
हैं जिन्हें रानी जी
अपनी दूध 
भरी छातियों से
सांप की 
तरह पाल रही हैं,
विषाक्त 
हो गया है सारा ममत्व,
आस्थाएं 
लंगड़ा कर चल रही हैं-
और पुल 
टूटने-टूटने को है,
गाँव के 
भीतर अकाल प्रेत है |
हर दरख्त 
से छीने जा रहे हैं कपड़े,
गूंगों 
का स्कूल खोलने की
योजना चल 
रही है देश स्तर पर,
अब हमें 
घटनाओं से चौकना नहीं है,
बारूदी 
छर्रों की तरह सतर्क रहना 
है
वक्त के 
हर धक्के को सहने के लिए 
कहीं अँधेरा 
बढ़ता गया और भुतहे
गाँव की 
हदों पर हम सिद्ध जगाते 
रहे
तो कथा 
भी चलती रहेगी विक्रमादित्य 
की
ठूंठ डर 
ठूंठ लटका होगा बेताल
चेहरे रंग 
छोड़ चुके होंगे-पत्तियों 
की तरह|
हाशिए 
पर शब्द
शब्द 
सन्यास नहीं लेते
शब्द 
समय प्रवाह के प्रतिनिधि 
होते हैं
शब्द 
सच होते हैं – झूठ के खिलाफ
शब्द 
बचा लो तो बहुत कुछ बच जाता 
है –
जिंदगी 
की किताबों में |
जब साथ 
छोड़ रही होती हैं चीज़ें
देह केंचुल 
बदलने को बेताब होती हैं,
ख़ामोशी 
की चादर ओढ़े लोग इशारों-इशारों 
में
अनुपस्थित 
का उपस्थित दर्शन
खंगाल 
रहे होते हैं – एक दूसरे 
के डरे हुए
चेहरों 
को देखते हुए –
शब्द 
तब भी साँस लेते हैं – हमारे 
बीच |
यकीन 
करो, जब कुछ भी शेष नहीं 
होगा –
शब्द 
होंगे – हमारी स्मृतियों 
की अपार
सम्पदा 
को सहेजे हुए |
शब्द 
कभी नहीं मरते/शब्द सतत 
जीवन का
अर्थपूर्ण 
संगीत हैं |
शब्द 
हवा है – शब्द दवा है
शब्द 
शक्ति है – शब्द प्रेम है 
– शब्द भक्ति है |
कोई भी 
आविष्कार शब्द से बड़ा नहीं, 
शब्द 
हाशिए पर है इन दिनों
मै सबसे 
ज़्यादा परेशान हूँ
शब्दों 
को मुकम्मल करने के लिए |
बार-बार 
हाशिए पर
फेक दिया 
जाना ही तो
सुबूत 
है शब्दों के जिंदा होने का|
जूते
लाखों-करोड़ो 
बे मतलब की चीज़ों के बीच
कहीं न 
कहीं है सबके मतलब की
कोई न कोई 
चीज़ |
परमपराओं 
के इतिहास में
घटती बढ़ती 
रही है पैरों की नाप
लेकिन जूते 
जहाँ थे, वहीँ हैं आज भी |
जूते कहीं 
भी रहें
कभ नहीं 
भूलते अपनी औकात
चाल से चाल 
चलन तक
अकड़ नहीं 
छोड़ते जूते
अमीरों 
के पैरों में जूते प्रतिष्ठित 
हैं
बे हिंसाब 
लतियाए जाते हैं गरीबों के 
पैरों में
लाजवाब 
निष्ठा के प्रतीक जूते
बदरंग हो 
जाने के बाद भी
साथ नहीं 
छोड़ते पैरों का
सिलाई खुले 
या फट जाएँ – जूते ढीट की तरह
मुंह खोल 
कर हसंते हैं ज़माने पर
जूते आरक्षणजीवी 
हैं,
जूते चाहते 
हैं इज्ज़त भर सुरक्षा   
जूते लामबंद 
हो रहे हैं – टोपियों के 
खिलाफ
वह वक्त 
बहुत जल्द आएगा जब
दुनिया 
देखेगी जूतों का जुझारूपन
जूते चरमरा 
रहे हैं
चूं-चूं 
कर रहे हैं जूते
गड़ रहे 
हैं जूतों के पैने दांत
जूते काटने 
लगे हैं
जूते बदल 
रहे हैं अपनी चाल
अंदाज बदल 
रहा है जूतों का
जूते जीतेंगे 
अब हक और हुकूक की हर लड़ाई.
संपर्क-  
712/6, हर्षवर्धन नगर, 
मीरापुर, 
इलाहाबाद 211003
मोबाइल नंबर : 09889722209 





 
 
 
'सुरक्षित-असुरक्षित' और 'अकाल प्रेत' बहुत पसंद आयीं ...
जवाब देंहटाएंबार पढ़ने लायक कविताएँ ..समय-काल को समझने के लिए ....समय असुरक्षित है सुरक्षित से .....सादर .
जवाब देंहटाएंबार -बार पढ़ने लायक कविताएँ ...अपने समय -काल को समझने के लिए ...बहुत -बहुत आभार इस पोस्ट के लिए ..सादर .
जवाब देंहटाएंनित्यानंद गायेन
Hamare samay kee jarooree kavitain. Badhai aur abhaar! - kamal jeet choudhary ( j and k )
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कवितायें। बहुत कुछ कह जाती हैं। बधाई!
जवाब देंहटाएंपीयूष पन्त
अजामिल जी की कविताएँ मुझे बहुत अच्छी लगीं | आज के दौर की ये वो कविताएँ हैं जो नासमझ लोगों द्वारा लगातार आज की कविता के मर जाने की घोषणा को खारिज करती हैं | 70 और 80 के दशक में अजामिल की कविताओं ने बहुत से कवियों को प्रेरित किया था | डॉ. धर्मवीर भारती, वीडीएन साही, गोपी कृष्ण गोपेश, डॉ जगदीश गुप्त, डॉ हरिवंश राय बच्चन, आलोक धनवा, अरुण कमल आदि अनेक महत्वपूर्ण कवि अजामिल की कविताओं के प्रशसंकों में थे | आपने अजामिल की कविताएँ एक साथ यहाँ पेश करके हमें उनके कवि को समझने में काफी सहयोग किया | आभार...
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