राहुल राजेश की कविताएँ
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| राहुल राजेश | 
कोरोना की दूसरी लहर ने जन जीवन को, हमारी सामाजिकता को, हमारे व्यवहार को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। भय कुछ ऐसा कि अपनों का फोन आने पर भी एक भयावह आशंका मन में मँडराती रहती थी। जो लोग कोरोना के शिकार हुए उन्हें अपनों तक के कंधे नसीब नहीं हुए। आस पास, टोले मुहल्ले में किसी के यहाँ मृत्यु होने पर पहले सारे लोग खुद ही संवेदनाएं जताने आते थे और शोक संतप्त परिवार के दुःख में सहभागी होते थे, वहीं कोरोना काल में कोई भी घर से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। कवियों ने इस यातनादायी समय को भी कविताओं में रेखांकित करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण कविताएँ लिखी हैं। सुपरिचित कवि राहुल राजेश ने कोरोना समय को लेकर कुछ उम्दा कविताएँ लिखी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है राहुल राजेश की कविताएँ।
राहुल राजेश की कविताएँ
वक्त
दिन-दोपहर या दफ्तर में 
जब कभी गाँव-घर से 
आ जाता है कोई फोन 
तो घबरा उठता है जी 
सब कुछ ठीक-ठाक तो है न?
आशंकाओं का दखल 
अब हमारे अवचेतन में 
इतना अधिक है कि
हम सहसा सोच ही नहीं पाते 
किसी ने याद किया होगा 
हमें यूँ ही औचक 
ये कैसा वक्त आ गया 
कि बेवक्त याद करना 
अब किसी को खुशी से नहीं 
आशंकाओं से भर देता है?
*** 
इस वक्त
रात 
बुरे ख्यालों में कटी 
 
दिन भी कुछ 
रौशन न रहा
 
गोधूलि का समय है
और सारे बुरे ख्याल
 
मवेशियों की तरह 
 
गर्दोगुबार उड़ाते 
 
घर लौट रहे हैं 
 
मन के अँगने में
 
उनका पीढ़ा-पानी लग चुका है 
 
सारे अच्छे ख्याल 
 
न जाने क्यों 
 
खाट-पटवास पर हैं 
 
बुरे ख्यालों ने भी 
 
कितनी बार आवाज दी उन्हें 
 
कि अकेले जीमने को 
 
जी नहीं कर रहा 
 
इस वक्त 
 
अच्छे ख्यालों के बिना 
 
बुरे ख्यालों का भी 
 
जी घबरा रहा...
***    
निरुपाय
 
ऐसी कोई जगह नहीं बची थी 
जहाँ मृत्यु की छाया न पड़ी हो 
हर तरफ विनम्र श्रद्धांजलि 
देने की अफरातफरी थी 
मृतकों के मुस्कुराते चेहरों से 
पटा था आभासी संसार
बाँचते हाँफ रहे थे शब्द
स्मृति इससे पहले कभी
इतनी निष्ठुर नहीं हुई थी
मृत्यु को बिसराने का
एक भी उपाय न बचा था
जीवन के पास...
      
मृत्यु 
जब मृत्यु 
हर दरवाजे पर दस्तक दे रही है
तब कब कौन 
मृत्यु का ग्रास बन जाए 
माता या पिता, पति या पत्नी 
पुत्र या पुत्री, पड़ोसी या मित्र 
वृद्ध या युवा, राजा या रंक 
कुछ कहा नहीं जा सकता... 
इस कोरोना काल में 
किसी के काल-कवलित हो जाने की 
दूर गाँव या शहर से या 
बिल्कुल पास से आयी खबर 
अब दुख से ज्यादा 
बेबसी से भर देती है... 
आज स्वप्न में क्या देखता हूँ 
नमक हल्दी तेल मल कर
खुद को तैयार कर लिया है!
अब इसे देख कर
या काल की कढ़ाही में
मेरी बला से!!
मनुष्य
हारता है
मनुष्य हारता है
हारता है, हारता है
अपने ही अहंकार से 
मनुष्य हारता है
हारता है, हारता है
अपने ही दुस्साहस से 
मनुष्य हारता है
हारता है, हारता है 
अपने ही विजयी भाव से 
मनुष्य हारता है
हारता है, हारता है
अपने ही स्वभाव से!
***            
ख़बर
मौत अब बस 
ख़बर बन कर आती है
ख़बरों की मौत की 
ख़बर भी ऐसे ही आई
अफ़सोस कि इस बार किसी ने 
अफ़सोस तक न जताया 
बस चैनल बदल दिया
पन्ना पलट दिया
विज्ञापनों में मुस्कुराते चेहरे पर 
थूकने का मन तक न किया... 
***  
तब भी
फूलों ने खिलना बंद नहीं किया है
पेड़ों ने झूमना बंद नहीं किया
है 
हवाओं ने बहना बंद नहीं किया है 
चिड़ियों ने चहचहाना बंद नहीं
किया है
 
लहरों ने उठना बंद नहीं किया है 
सूरज ने उगना बंद नहीं किया है 
खेतों ने लहलहाना बंद नहीं किया
है 
बच्चों ने खिलखिलाना बंद नहीं
किया है 
जब हर तरफ जीवन सांसत में है 
तब भी सांसों ने चलना बंद नहीं
किया है
आँखों ने देखना बंद नहीं किया
है
कानों ने सुनना बंद नहीं किया
है 
जब सारे दरवाजे बंद हैं तब भी 
खिड़कियाँ ने खुलना बंद नहीं
किया है
दुआ में हाथों ने उठना बंद नहीं
किया है
मंदिरों के पट बंद हैं लेकिन
घरों में 
घंटियों ने बजना बंद नहीं किया
है
मृत्यु ने मंडराना बंद नहीं किया है तो
जीवन ने भी अँखुआना बंद नहीं किया है।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है)
संपर्क
जे-2/406, रिज़र्व बैंक अधिकारी आवास,
गोकुलधाम, गोरेगांव (पूर्व),
मुंबई-400063
मो. 9429608159



 
 
 
आज के समय की सार्थक कविताएं।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
इस त्रासद समय का मनोवैज्ञानिक चित्रण। शानदार कविताएं।।
जवाब देंहटाएंSir Kya hm apni Kavita send KR skte hai aapko
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