हिमांगी त्रिपाठी की कविताएँ।
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| हिमांगी त्रिपाठी | 
प्रेम दुनिया की सबसे सघनतम अनुभूति
है। प्रेम एक मानवीय संघर्ष भी है जिसे
समाज की प्रताडनाओं और दुत्कारों से गुजरना पड़ता है। प्रेम उन मानवीय बंधनों से
आजाद होने की एक मुहिम भी है जिसे मनुष्य ने वर्जनाओं का नाम दे कर सीमित करने की
प्रत्याशा में रोपित कर दिया था।  प्रेम
की यह सघनतम अनुभूति रचना में ढल कर सदियों से ले कर आज तलक रचनाकारों की रचना का
विषय बनती रही है। कवि इन वर्जनाओं को ही अपनी कविता का विषय बना कर प्रतिपक्ष का
एक पक्ष रचते हैं। ऐसा पक्ष जो प्रायः ही उपेक्षित कर दिया जाता है। हिमांगी की
कविताओं के कथ्य और शिल्प में क्रमिक विकास सहज ही देखा जा सकता है। आज हिमांगी का
जन्मदिन है। जन्मदिन की बधाई देते हुए 'पहली बार' ब्लॉग पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं हिमांगी की कुछ नयी-नवेली कविताएँ।
हिमांगी त्रिपाठी की कविताएँ 
हमारा प्रेम 
हमारा प्रेम उन जगमगाती किरणों की तरह
है 
जो हर किसी छोर से घुस आती है बिना
किसी रोक-टोक के 
जो हर महीन छेद को भी 
कर जाती है पार
एक हल्की मुस्कान के साथ। 
हमारा प्रेम मौसम के उन ठहरावों सा है 
जिसमें न तो तपिश की ठौर है 
न ही कड़कड़ाती ठण्ड 
न ही बिना रुके गरजते बरसते बादलों की
जगह। 
हर उतार-चढ़ाव के बावजूद 
एक से रहने वाले उस मौसम की तरह 
जिसमें बहार है, फुहार है 
और हल्की-सी नमी भी है। 
हमारा प्रेम उन तमाम बन्धनों से है
जुदा
जहाँ नात-रिश्तेदार और समाज की दकियानूसी
परम्पराएं हैं  
जहाँ परिवार के बन्धन हैं सैकड़ों 
और जहाँ खुले विचारों की है ढेरों
पाबन्दियाँ। 
सबसे पवित्र और सबसे अनमोल 
नदी की उन लहरियों की तरह है हमारा
प्रेम 
जो हर कठिनाई को पार कर 
जा मिलता है उस जगह 
जहाँ से महासागर के अनंत छोर की
शुरुआत होती है।
आखिरी सांस तक 
आखिरी सांस तक उम्मीदें बचाये रखना
चाहती हूँ 
आखिरी सांस तक प्यार सहेजे रखना चाहती
हूँ 
आखिरी सांस तक वह सब रखना चाहती हूँ
पास
जो जुड़ी है तुमसे।
मेरे जीवन का हर पन्ना 
अब भर चुका है तुम्हारी स्याह से 
इस कदर, जिसमें न तो अब 
कोई स्थान है खाली
और न ही कोई पन्ना है शेष। 
प्रारम्भान्त तक ऐसे सहेज रखा है
तुम्हारी यादों और बातों को मैंने 
जहाँ जीवन का आखिरी पड़ाव भी 
थम जायेगा तुम्हारे लिए 
और हर एक पन्ना जुड़ जायेगा तुम्हीं
से। 
तुम मेरे जीवन की सुबह हो
मेरी आखिरी सांस का वो उजाला हो तुम 
जहाँ न तो कोई बन्धन है 
न ही लेशमात्र अन्धकार 
और न ही तुमसे बिछुड़न की कोई वजह।
एक कटी पतंग 
जिस किसी के हाथों में रहती है 
डोर उस पतंग की 
उसी के मुताबिक वह  
भरती है उड़ान आसमां में
मदमस्त हो कर 
समाज की सारी बुराइयों से दूर
सभी पाखण्ड और कर्मकाण्डों से विलग 
स्वच्छन्द विचारों संग। 
उड़ान भरने के दरमियान ही 
मिल जाती है वो 
कुछ अपनी ही बिरादरी के लोगों से 
और साथ ही पक्षियों से भी 
जो देख उस पतंग को 
अपने पास हो जाते हैं भौचक्के यह सोच कर 
कि न ही कोई पंख है 
न ही उड़ने का हुनर
फिर एक सहारे के साथ 
उड़ती जा रही है दूर तलक 
निर्भय हो कर। 
डोर और पतंग का खेल भी है 
कितना निराला 
कि दोनों जुड़े हैं एक-दूजे के संग
और किसी से भी भय न खाने वाली वह पतंग 
भयभीत हो जाती है 
अपनी ही बिरादरी में शरीक होने वाली 
उन तमाम पतंगों से 
जो मंडरा रही हैं 
इर्द-गिर्द उसी के।
बहुत दिनों बाद तुम्हारी बातों से 
रोमांचित हो उठा अंग-मन सारा, 
जैसे सूखी टहनियों में आ गये हों नव
पल्लव 
जैसे लहरों में भी बजने लगा हो गान
और चहुंओर उड़ने लगी हों
पताकाएँ प्रेम की।
कैसे कहूँ तुमसे 
करती हूँ कोशिश मैं 
बहुत कुछ लिखने की 
पर लिख नहीं पाती 
सोंचती हूँ शब्दों से बाँध दूं
तुम्हारे उन सभी दर्द को 
जिससे गुजर रहे हो तुम 
मगर क्या करूँ 
शब्द हैं कि याद आते ही नहीं। 
इस वक्त अगर आती है याद 
किसी भी चीज की 
तो वो हर तरह से 
जुड़ी है तुमसे 
बंधी है तुमसे 
चाहे वो शब्द हों चाहे कुछ और
सबमें केवल चेहरा है तुम्हारा। 
कैसे कहूँ तुमसे कि
तुम्हारे किसी भी तरह के दर्द से 
होता है बहुत दर्द मुझे भी
कैसे बताऊँ तुम से कि
तुम्हारी तकलीफों को देख कर 
भीतर से खत्म होने लगती हूँ मैं भी 
और कैसे दिखाऊँ तुमको 
अपने भीतर की छिपी
उन तकलीफों और तन्हाईयों को
जो सिर्फ और सिर्फ तुमसे जुड़ी हैं। 
जीवन का चक्र है ये ऐसा
जिस से तुम नहीं हो अनजान 
जीवन का ये खेल है ऐसा 
जिससे परिचित हो शायद तुम भी पूरी तरह 
कि जो आया है वो जायेगा इक दिन 
और जो जायेगा वो आयेगा भी निश्चित है
चाहे जिस रूप में, जिस रंग में 
वो हैं हम सबके पास 
हम सबके साथ 
बस उन्हें सहेज कर 
और बड़े ही प्यार से और खुशी मन से
रखना है 
अपने पास।
कुछ ऐसा ही रंग है जीवन का 
होली के रंगों सा ही
कुछ रंग है इस जीवन का
जहाँ तमाम आशाएँ और अपेक्षाएँ हो जाती
हैं उन सबसे 
जो कहीं न कहीं रिश्ते की डोर से बंधे
हुए हैं। 
सुनती आई हूँ अक्सर ये
कि लाल रंग में शामिल होता है प्रेम
का रंग 
देखती भी आयी हूँ कई बार 
कि अक्सर प्रेम का इजहार 
करने में सबसे अव्वल रहता है यह रंग
ही। 
हरे रंग की हरियाली से 
महक उठता है चमन सारा
लहलहा उठते हैं बाजरे और धान के पौधे 
लहलहा उठता है जीवन का रंग भी ऐसे 
जैसे फूलों की डालियाँ और
खेतों में पत्तियाँ। 
शान्ति और समानता का पाठ पढ़ाते हुए 
सबको एक तराजू से तौल कर देखने वाला 
सफेद रंग का यह अन्दाज़ 
है सबसे अनोखा और सबसे विलग। 
पतझड़ के मौसम सा यह पीला रंग 
सिखा जाता है कुछ न कुछ ऐसा 
जहाँ आशाओं और अपेक्षाओं का 
नहीं है कोई मोल
जहाँ सूखी पत्तियों सरीखे हो जाती हैं 
आशाएँ भी सूखी 
और अपेक्षाएँ भी उड़ जाती है किसी और
वन में। 
बचे हुए और भी रंगों की तरह
बचा है अभी भी जीवन का रंग कई
जो न तो शब्दों में बंध सकते हैं 
जो न तो रिश्तों में रुक सकते हैं 
जो चलते हैं मस्ती से 
और जीते हैं एक खुशहाल जीवन 
कुछ ऐसा ही रंग है जीवन का।
सम्पर्क  
ई-मेल : tripathihimangi@gmail.com


 
 
 
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.08.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2931 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर
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