रश्मि भारद्वाज की कविताएँ
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| रश्मि भारद्वाज | 
जन्मस्थान- मुजफ्फरपुर, बिहार
शिक्षा -अँग्रेजी साहित्य से एम.फिल
पत्रकारिता में
डिप्लोमा
वर्तमान में
पी-एच.डी. शोध (अँग्रेजी साहित्य)
दैनिक जागरण, आज आदि प्रमुख समाचार पत्रों में रिपोर्टर और
सब-एडिटर के तौर पर कार्य का चार वर्षों का अनुभव, वर्तमान में अध्यापन और स्वतंत्र लेखन। (उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी द्वारा अधीनस्थ विश्वेश्वरया कॉलेज में
असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत)
अनेक पत्र –पत्रिकाओं में विविध विषयों पर आलेख एवं
कविताएँ प्रकाशित। मुजफ्फरपुर दूरदर्शन से जुड़ाव। 
बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित और वरिष्ठ कवि
विजेंद्र द्वारा संपादित 100  कवियों के संकलन “शतदल” में रचनाएँ चयनित।
हिन्दी
युग्म द्वारा प्रकाशित “तुहिन” में कुछ कविताएँ प्रकाशित 
कविता
 के लिए मुख्य रूप से एक दृष्टि की जरूरत होती है. शायद इसी के मद्देनजर 
कभी रसूल हमजातोव ने कहा था कि ' यह मत कहो कि मुझे विषय दो, यह कहो कि 
मुझे आँखें दो.' यह हिंदी कविता का सौभाग्य है कि उसकी नयी पीढ़ी में यह 
दृष्टि है. युवा कवयित्री रश्मि भारद्वाज ने अपने अनुभवों को जिस शिद्दत से
 अपनी कविताओं में ढाला है वह हमें उस पीड़ा का दीदार कराता है जिसे एक लड़की
 जिन्दगी भर झेलने के लिए अभिशप्त होती है. जैसे उस लड़की की अपनी कोई आवाज 
नहीं, उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं. रश्मि अपनी एक कविता में लिखती हैं -  'नोच कर फेंक दिये जाने के
बाद भी उस आँगन से/ जहां से जुड़ी होती हैं
नाभि नाल से/ 
हर उस हवा, हर
उस राहगीर और हर उस बोली को निहारती हैं/ जो छू कर आती हैं उनका देश, उनके
लोग और उनका आँगन/ हौले से गुनगुनाती यह गीत/ अगले जनम मुझे बिटिया 
ना
कीजो' यह कैसी विडम्बना है कि त्रासदी इतनी हो कि उसे यह कहना पड़े कि ऐसा 
जनम कभी भी न आए. दुःख का सिलसिला अबाध और अनन्त है. इसीलिए तो दुनिया के 
सबसे खूबसूरत रिश्ते को सहेजने वाली 'माँ से कभी नहीं छूटता है घर/ घर हमेशा ही छोड़ देता
है माँ को.' तो आइए पढ़ते हैं कुछ इसी भावभूमि की रश्मि की कुछ नयी कविताएं.   
रश्मि भारद्वाज की कविताएँ  
1.सपने
नहीं जानते उगना अकेले 
जुटाते रहना एक भीड़ अपने आस-पास
जोड़ता नहीं हमें किसी से 
बहाना है यह बस 
कि मानते आए हैं हम
ठंडी पड़ जाने से पहले
जरुरी है संभाले रखना
जिंदगी की नरमाई 
अपनी हथेलियों में
सपने नहीं जानते उगना
अकेले 
वह ढल जाना चाहते हैं 
लेकर किसी और की आँखों का
रंग 
अंत से ज्यादा डराता है
हमें 
सपनों का सिमट जाना
बस खुद की आँखों तक 
जबकि जानते हैं कि 
उनके टूटने पर रोना होगा
अकेले ही
खारापन बनने लगता है 
हमारी जीभ का स्थायी स्वाद
मिठास बटोरने की बुरी 
लत के बाद भी
हर शाम, 
यह दुनिया हमारे हाथों से
फिसल कर 
डूब जाती है नमक के समन्दर
में
हर सुबह,
हम मिटाते हैं हथेलियों से
निशान 
एक और ख़ुदकुशी के
2. आईने सिर्फ सच ही नहीं
बताते
आईने में झांकती बेचैन
आँखें
खोजती हैं अपनी पहचान, 
अतीत के रौंदे हुए सपने 
उलझे हुए आज़ की लकीरें
और डरावने कल को परे हटा
खोज लाते हैं हम हर बार
एक अज़नबी चेहरा
आईने सिर्फ सच ही नहीं बताते
रखते हैं हिसाब
एक पूरी उम्र का
सिखाते हैं सुकून से
ताउम्र 
ख़ुद से भाग सकने का हुनर
3.स्मृतियाँ बीज नहीं होती
स्मृतियाँ बीज नहीं होती
कि उगाया जा सके उनसे 
यादों का एक घना वृक्ष
तपती धूप में
दो घड़ी की छाया के लिए
वह तो मौजूद रहती हैं आस
पास हर घड़ी हवा सी, 
याद नहीं किए जाने पर भी 
कहीं नहीं जाती 
देती रहती हैं सांसें
आगे चलते जाने के लिए
वह हैं उस पानी सी 
जो आँखों से बहे तो नमकीन 
और होठों पर तैरे
तो मीठी हो जाती हैं
तय करती रहती हैं एक सफ़र
चुपचाप 
शिराओं से लेकर धमनियों तक
का
बिखरी होती हैं यह जिए गए
रास्तों पर 
समेटते हैं इसके अवशेष हम 
जोड़ना चाहते हैं 
अधूरी जिग सॉ पजल ज़िंदगी
की 
गुम कर आए बेपरवाही में 
जिसके कई टुकड़े
4.सात फेरों से आगे 
सात फेरों में हमारे दो जोड़े पैर
जाने कितने कदम चले थे 
आज़ फिर कुछ कदम साथ चलते
हैं, 
साक्षी इस बार अग्नि नहीं 
होंगे धूप, हवा, पेड़
और पहाड़। 
हम साथ चलेंगे 
कोई संकल्प नहीं 
मंत्र नहीं 
बस उतने ही पल 
जब तक चल सकें हम बिन थके 
और जिस क्षण मेरे अंगूठे
को अपनी उँगलियों से उठा तुम 
किसी पत्थर पर टिकाओगे, 
मुक्त हो जाएगा मेरा शरीर
और तुम्हारी आत्मा,
मैं नहीं रहूँगी 
तुम भी नहीं 
वह पत्थर शिव हो जाएगा 
5.थोड़ा और!
अपनी शाख से बिछड़ा
सूखे पत्ते सा मँडराता एक
और दिन 
अपनी आवारगी के साथ
ले आता है यह याद भी
कि बहुत कुछ है 
जिसे दरकार है थोड़ी सी नमी
की
थोड़ा और सहेजे जाने की
बहुत कुछ है, जो
जरूरी है 
बचाया जाना 
इस जलती–सुलगती फिज़ा में
जैसे कुछ टुकड़े हँसी की
हरियाली 
कुछ अधखिली भोलेपन की
फसलें 
बहते मीठे पानी सी कुछ
यादें 
और बसंत 
हमारे –तुम्हारे मन का
 
6. माँ से कभी नहीं छूटता है घर
माँ हमेशा कहती है
जब नहीं रहूँगी मैं 
तब भी रहूँगी इस घर
में 
यहाँ की हवा में 
अधखिले फूलों में 
पत्तों पर टपके ओस
में 
बेतरतीब हो गए
सामानों में 
पूजा घर में ठिठकी
लोबान की खुशबू में 
तुलसी के पास रखे
उदास संझबाती के दिये में 
या मेरे चले जाने के
बाद अनदेखे कर दिये गए 
मकड़ी के जालों में
पौधों पर नन्ही कोई
गिलहरी दिखे 
तो समझना मैं हूँ 
कोई नन्ही चिड़िया 
तुम्हें बहुत देर से
निहारे 
तो समझना मैं ही हूँ।
हर शाम अकेली बैठी
माँ 
जपा करती है कुछ
मंत्र 
और पास के एक बंद पड़े
मकान की खिड़की पर आ बैठता है एक बड़ी आँखों वाला उल्लू 
बस चुपचाप देखा करता
है, जाने क्या गुना करता है मन ही मन 
माँ उससे बतियाती है, वह
भी सर हिलाता है कि जैसे सब समझ पा रहा हो 
छुट्टियों में आए
अपने बच्चों को उससे मिलवाती,
कहती है माँ 
ऐसे ही चुपके से मैं
आ बैठूँगी रोज़ 
देखूँगी इस घर को 
याद करूंगी तुम सब को
तुम सब आओगे यहाँ कभी
न कभी
माँ से कभी नहीं
छूटता है घर 
घर हमेशा ही छोड़ देता
है माँ को
7. एक भरोसा 
मुझे बनना था ठोस
दायरे में घिरा हुआ 
खाँचों में बंद किए जा
सकने योग्य 
मैंने चुना पानी हो जाना 
जब बहना था मुझे 
पानी की ही तरह 
बहा देना था सारा ताप
मैंने चुना आग हो जाना 
जब मान लेना था मुझे 
हृदय होता है 
शरीर में रक्त और ऑक्सिजन 
पहुंचाने का एक अंग मात्र 
मैंने चुना इसका दिल होना 
जहां चुपके से रख दिया
जाता है 
एक भरोसा 
8.और सब ठीक है!
जगमगाती रोशनियों वाले
इन सोते हुए से घरों में 
जागती होंगी जाने कितनी
अनकही कहानियाँ
किसी एक रोशनी के पार 
एक बेरोजगार ने खाने में
मिला दिया होगा थोड़ा सा जहर 
और चैन की नींद सो रहा
होगा पूरा परिवार,
इन्ही किन्ही खिड़कियों के
पीछे 
करवटें बदलती एक औरत 
कभी-कभी घूरती होगी पंखे
को,
इसी रोशनी के साये में 
जुड़े होंगे कुछ हाथ बेचैन
प्रार्थना में 
दिन भर से बाहर गयी लड़की
की 
अब तक नहीं आई कोई ख़बर
और आंसुओं से भरी आँखों को
धुंधला नज़र आता होगा सोते
हुए बच्चे का चेहरा
शायद यहीं कुछ अंखुयाए सपने
खोज रहे होंगे ब्लेड 
टूटे सपनों को 
उम्र भर की हकीकत मानते 
आधी रात
चीखता है चौकीदार-जागते
रहो 
और कुछ जोड़ी आँखें 
फिर कभी नहीं सो पाती
होंगी 
जगमगाती रोशनियों के पार 
9.वह
नहीं देखती आसमां के बदलते रंग
कुछ लड़कियाँ 
छुपा कर रखती हैं वह पन्ने
जो कर आते हैं उनके उजालों
की चुगली स्याह रातों से
पर लाख छुपाए जाने पर
भी  
वह लौट आते हैं हर बार नयी
सतरंगी जिल्द के साथ 
ढिठाई से सेंकते हैं धूप
घरों की मुंडेरों पर 
ताकि हवा के पहले झोंके के
साथ ही 
गुनगुना आए हर कान में कुछ
किस्से 
जिसे समेट कर रखा गया था
दुपट्टे की तहों में
या कि बड़े ही जतन से खोंसा
गया था 
दिल की धड़कनों के करीब, कपड़ों
की सिलवटों के बीच कहीं
 कि उन पर भूले से वह लिख बैठी होती हैं प्रेम और
जीवन   
अजीब होती हैं कुछ लड़कियाँ
आसमां के बदलते रंगों से
अनजान
धरती को नज़रों से निगलती
हैं 
कि जैसे नज़र हटते ही लड़खड़ा
जाएंगी  
सीने से चिपकाए रखती हैं
सवा दो मीटर लंबी आबरू  
लेकिन फिर भी भर जाती हैं
अपराध बोध से 
एक्स रे लगी नज़रों को खुद के आर पार उतरते महसूस
कर 
घबरायी हिरनी सी भागती हैं
एक सुरक्षित ठौर की तलाश में
शायद जानते हुए भी कहीं
अंदर यह बात 
कि ऐसी कोई जगह नहीं कहीं
जहां घात पर ना हो कुछ नुकीले पंजे 
इनके सपनों में  बहुत जल्दी ही डाल दिये जाते हैं 
सफ़ेद घोड़ों पर सवार सजीले
राजकुमार  
घरोंदों के खेल और गुड़ियों
का ब्याह रचाते
काढ़ने लगती हैं तकियों पर
गुडनाइट, स्वीट ड्रीम्स 
सहेजती हैं अपना दहेज भी 
सहेजे जा रहे कौमार्य के
साथ 
अर्पण करने को सब कुछ एक
अंजान देवता के नाम
जो अक्सर नहीं जानते अपना
देवत्व संभालें कैसे   
सच, बड़ी
अजीब हैं यह लड़कियां 
जब कि जानती हैं उनके आने
पर घुटनों तक लटक गए थे जो चेहरे 
पड़ी रहती हैं उनके ही
प्रेम में ताउम्र 
नोच कर फेंक दिये जाने के
बाद भी उस आँगन से 
जहां से जुड़ी होती हैं
नाभि नाल से 
हर उस हवा, हर
उस राहगीर और हर उस बोली को निहारती हैं 
जो छू कर आती हैं उनका देश, उनके
लोग और उनका आँगन
हौले से गुनगुनाती यह गीत 
अगले जनम मुझे बिटिया ना
कीजो
दरअसल इस किस्म की लड़कियाँ जन्म नहीं लेती
उन्हें तो ढाला जाता है एक
टकसाल में
ताकि वह खरीद सकें खुद को
बेच कर 
कुछ सपने 
और थोड़ी सी ज़िंदगी
10. वह कुछ नहीं कहेगी    
हथेलियों की लाल हरी चूड़ियाँ
खिसका कर 
वह टाँकती है कुछ अक्षर 
और दुपट्टे के कोने से
पोंछ लेती है 
अपनी हदें तोड़ते बेशर्म
काजल को    
माँ के नाम रोज़ ही लिखती
है वह चिट्ठियाँ 
और दफन कर देती है उसकी
सिसकियों को 
सन्दूक के अँधेरों में दम
तोड़ने के लिए   
वही सन्दूक जिसे माँ ने 
उम्मीदों के सतरंगी रंगों
से भरा था 
और साथ ही भरी थीं कई
दुआएं
बिटिया के खुशहाल जीवन
की    
माँ को अलबत्ता भेजी जाती
हैं 
कुछ खिलखिलाहटें अक्सर ही 
जिसे सुन कर थोड़ा सा और 
जी लेती हैं वह    
मर ही जाएंगी वह गर
जानेंगी कि 
उनकी बिटिया के माथे पर
चिपकी गोल बिंदी से
सहमा सूरज  सदा के लिए भूल गया है 
देना अपनी रोशनी 
और उसके घर अब चारों पहर 
बसता हैं सिर्फ
अंधेरा    
कैसे जी पाएँगी वह 
गर जान जाएंगी कि 
उसकी मांग में सजी सिंदूर
की  सुर्ख लाल रेखा 
बंटी हुई है कई और रेखाओं
में 
और झक्क सफ़ेद शर्ट पर 
रेंगती आ जाती हैं 
उसके बिस्तर तक भी    
कैसे सुन पाएँगी वह 
कि पिछली गर्मियों जिन
नीले निशानों पर 
लगाया करती थी वह ढेर सारा
क्न्सीलर 
वह किसी के प्रेम की
निशानी नहीं थे    
नहीं, वह
कुछ नहीं कहेगी 
और शायद कभी खुद भी 
दफन कर दी जाएगी 
किसी सन्दूक में 
हमेशा के लिए
पता: 
129, 2nd फ्लोर,  
ज्ञानखंड-3, इंदिरापुरम, 
 गाजियाबाद, 
 उत्तरप्रदेश-201014
ईमेल: mail.rashmi11@gmail.com
वेब मैगज़ीन: www.merakipatrika.comका संपादन
ब्लॉग: जाणा जोगी दे नाल (www.rashmibhardwaj.blogspot.in)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.) 


 
 
 
बहुत सुन्दर कवितायेँ और उतनी ही दमदार समीक्षा
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavitaayein rashmi
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक रचनाएँ ...........शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसरल, सहज शब्दों में गंभीर और जटिल भावों की व्याख्या करती ये कविताएँ हर पाठक के मन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाएँगी। बेहतरीन कविताएँ...कविता लिखना किसी को कवि नहीं बनाता....कवि होना एक दृष्टिकोण है, जीवन शैली है...कवि की पहचान ही यह है कि वह क्षमता रखता है दुनिया को एक अलग दृष्टिकोण से देखने की और पाठकों को भी अपनी कविताओं से वह दिखाना जो केवल एक कवि ही देख सकता है...आप में दोनों ही हुनर हैं। रोजमर्रा की चीज़ों को नयी तरह से देखने का और दूसरों में भी वही एहसास उत्पन्न करने का..बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसजग दृष्टि और संवेदना का सुन्दर सामंजस्य रचती इन कविताओं के लिए रश्मि भारद्वाज हार्दिक बधाई की पात्र हैं / अनंत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों का आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंStri sansaar ki pramaanik anubhuti... Aisee kavitain aapka niji muhavaara hai. In kavitaon ko thoda rukkr ...rmkar padha jana chahiye...Bahut bahut Badhai va Shubhkaamna!!
हटाएं-Kamal Jeet Choudhary
बहुत सुन्दर ,मन को छूते शब्द ,शुभकामनायें और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविताएँ। पहली कवित बहुत ही अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द , भाव व प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलेखनी को नमन