पंकज पराशर का आलेख 'अरथ अमित अरू आखर थोरे'

(नरेश सक्सेना) नरेश सक्सेना हमारे समय के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अत्यंत कम लिख कर भी कविता के परिदृश्य में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है। उनका पहला संग्रह 'समुद्र पर हो रही है बारिश' काफी चर्चा में रहा था। अभी-अभी भारतीय ज्ञानपीठ से उनका दूसरा कविता संग्रह 'सुनो चारुशीला' प्रकाशित हुआ है। इस महत्वपूर्ण संग्रह पर युवा आलोचक पंकज पराशर ने बड़ी बारीकी से निगाह डाली है। इसी क्रम में हम प्रस्तुत कर रहे हैं 'सुनो चारुशीला' पर पंकज का समीक्षात्मक आलेख। 'अरथ अमित अरू आखर थोरे' पंकज पराशर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने सुप्रसिद्ध निबंध ‘ कविता क्या है? ’ में लिखा है, ‘ज्यों-ज्यों हमारी वृत्तियों पर सभ्यता के नये-नये आवरण चढ़ते जायेंगे त्यों-त्यों एक ओर तो कविता की आवश्यकता बढ़ती जाएगी, दूसरी ओर कवि कर्म कठिन हो जाएगा।’ मनुष्य की वृत्तियों पर सभ्यता के नये-नये आवरण आज इस कदर चढ़ गए हैं कि कविताओं की बढ़ती संख्या के बीच ‘शुद्ध कविता की खोज’ करना बहुत श्रमसाध्य कार्य हो गया है। हिंदी काव्य-आलोचना में...