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महेश चन्द्र पुनेठा की कविताएं

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महेश चन्द्र पुनेठा   महेश का जन्म 10 मार्च 1971 को उत्तराखंड  के पिथौडागढ  जिले  के  लम्पाटा  नामक गाँव में हुआ। राजनीति शास्त्र में परास्नातक  करने के पश्चात  इनका राजकीय इंटर कालेज में  प्रवक्ता पद (एल टी ग्रेड) पर चयन हो गया।  अभी हाल ही में इनका पहला कविता संग्रह 'भय अतल में' प्रकाशित हुआ है जो काफी चर्चा में रहा है। युवा कवियों में महेश चन्द्र पुनेठा अपने कथ्य और शिल्पगत प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। महेश जीवन में घटने वाला कोई दृष्टान्त बिलकुल अपने आस-पास से उठाते हैं और बिलकुल सहज-सरल भाषा में उसे कविता में ढाल देते हैं। यह कवि मित्र से अगर अपनी शिकायत नहीं सुनता तो बेचैन हो जाता है कि उससे कहाँ-कौन-सी गलती हो गयी। दरअसल यह लोक का अपना चलन है जो महेश में लगातार प्रवहित होता रहता है। वह लोक जो अपनी ही लय और गति से आगे बढ़ता है। प्रस्तुत है महेश की बिलकुल ताजी कविताएं जिसमें उनकी बानगी दिखाई पड़ेगी। 'पहली बार' पर आगे भी आप उनकी कविताएं पढ़ते रहेंगे। महेश चन्द्र पुने...

युसूफ कवि

तेलुगु के युसूफ कवि  की यह कविता पसमांदा समाज की हकीक़त को बयां करती है . युसूफ कवि अव्वल कलमा आपको यकीं  तो ना आये शायद  लेकिन हमारी समस्याओं का सिरे से कहीं जिक्र ही नहीं  अब भी, एक बार फिर से, उनकी दसवीं या  ग्यारहवीं  पीढ़ी  जिन्होंने खोई थी  अपनी शानो-शौकत  बात कर रही है हम सब के नाम पर   क्या इसी को कहते हैं अनुभव की लूट? सच तो यही है- नवाब, मुस्लिम,   साहेब, तुर्क- जिनको भी ख़िताब किया जाता  है ऐसे, आते हैं उन वर्गों से  जिन्होंने खोई अपनी सत्ता, जागीर, नवाबी और पटेलिया शान-शौकत लेकिन तब भी सुरक्षित कर ली उन्होंने, कुछ निशानियाँ उस गौरव...

संतोष कुमार चतुर्वेदी

 भाई  बिमलेश त्रिपाठी ने अपने  ब्लॉग 'अनहद'  पर मेरी तीन कवितायें अभी हाल ही में  प्रकाशित  थीं.   अपनी   उन्हीं कविताओं को  मैं आपसे साझा कर रहा हूँ. इन कविताओं पर आपकी बहुमूल्य एवं बेबाक  प्रतिक्रियाओं का इंतजार तो रहेगा ही। संतोष कुमार चतुर्वेदी पानी का रंग गौर से देखा एक दिन तो पाया कि पानी का भी एक रंग हुआ करता है अलग बात है यह कि नहीं मिल पाया इस रंग को आज तक कोई मुनासिब नाम अपनी बेनामी में भी जैसे जी लेते हैं तमाम लोग आँखों से ओझल रह कर भी अपने मौसम में जैसे खिल उठते हैं तमाम फूल गुमनाम रह कर भी जैसे अपना वजूद बनाये रखते हैं तमाम जीव पानी भी अपने समस्त तरल गुणों के साथ बहता आ रहा है अलमस्त निरन्तर इस दुनिया में हरियाली की जोत जलाते हुए जीवन की फुलवारी में लुकाछिपी खेलते हुए अनोखा रंग है पानी का सुख में सुख की तरह उल्लसित होते हुए दुःख में दुःख के विषाद से गुजरते हुए कहीं कोई अलगा न...

बलभद्र

दूसरी किश्त बलभद्र लेवा ... ...  बा की अब त बतिये कुल्हि बदलत जात रहल बा. पुरान साड़ी आ दू-अढाई सै रुपिया ले के शहर-बाजार में, लेवा त ना, बाकिर लेवे अइसन चीज सिये के कारोबार शुरू बा. बस एह में फोम रहेला पतराह, एकदम बिच में. सीआई, फराई, काट-डिज़ाइन एकदम लेवा अस. अब त नयो-नयो कपड़ा के बनि रहल बा. बड़े-बड़े सेठ लोग बेच-बनवा रहल बा. गाँव आ गरीब के कला अपना के पइसा पिट रहल बा लोग, अ आपन साज-समाज कुल्हि गाँव में भेजि रहल बा लोग. अब सुतरी आ बाधी के खटिया उडसल जा रहल बा. बैल उड़सलें, गाय उड़सली, नाद उडसल, हर, जूआठि, हेंगा उडसल, खरिहान गइल, अइसही एक दिन लेउवो चली जाई. जे अभि ले एकरा के डासत- उड़ासत बा, मने बिछावत-बटोरत बा, ओह किसान-मजूरा के सरकार आ सरकारी लोग उदबास लगावे पर तुलल बा. ई लोगवे उड़स जाई त लेउवो उडस जाई. लेवा बनेला सूती लूगा-धोती से नीमन- नीमन. आ सूती गरीब-गुरबा लोग के बेवत से बहरी के चीज हो गइल बा. आ अमीर लोग खातिर इ लेवा बा ना. अमीर लोग बहुते चिंता में बा हमनी खातिर.... हमनी के ह़ाथ के कउशलवे ऊ लोग कीन लेता, छीन लेता.     ...

बलभद्र

लेवा ई कवनो पूंजीपति घराना के उत्पाद ना ह कि एकरा खातिर कवनो सरकारी भा गैरसरकारी योजना भा अभियान चली. ई  गाँव  के गरीब मनई आ हदाहदी बिचिलिका लोग के चीज ह. एकदम आपन. अपना देहे-नेहे तैयार कइल. एकरा खातिर कवनो तरह के अरचार-परचार ना कब्बो भइल बा, ना होई कवनो टी वी भा अखबार में. ई गाँव के मेहरारुन के आपन कलाकारी के देन ह,  गिहि थां व  के . फाटल पुरान लूगा आ धोती के तह दे के ,कटाव काटि के अइसन सी दिहली कि का कहे के. बिछाई भा ओढीं -घरे- दुवारे, खेते- खरीहाने - कवनो दिकदारी ना. हमारा होश सम्हारे से पहिले से बा  . ओकरो से पहिले से ई लेवा. तब से बा जब सुई डोरा ना रहत रहे घरे-घरे. आ लूगा-फाटा के रहत रहे टान. ई बा, तबे से बा, आ लोग-बाग ओढत बिछावत बा आज ले. बड़  बा तनी, चउकी भा खटिया भर के त लेवा, जनमतुआ के सुते लायक तनी छोट- चुनमुनिया- त लेवनी. कतो ई कटारी कहाला, कतो गेंदरा, त कतो लेढा. कायदा से जदी जो रंग विरंगा डोरा से, किनारी काट के कटावदार सियाला त सुजनी कहाला. तोसक तनी ऊँच चीज हवे, लेवा के ...

संतोष कुमार चतुर्वेदी

 संतोष  कुमार चतुर्वेदी चुप्पी एक मानचित्र है चुप्पी जिसे बांटा जा सकता है मनमाने तरीके से लकीर खींच कर चुप्पी गोताखोर की गहरी डुबकी है उफनते समुद्र में जिसके बारे में नहीं बता सकता किनारे पर खड़ा कोई व्यक्ति कि अचानक कहाँ से निकल पड़ेगा गोताखोर चुप्पी किसी डायरी का कोरा पन्ना है जिस पर मन की सियाही से चित्रकारी की जा सकती है किसिम-किसिम की सहमति और असहमति के बीच की   पारदर्शी आवाज है चुप्पी लेकिन साथ ही निर्बल का एक अचूक-अबोला हथियार भी है चुप्पी  जिसमें मन ही मन गरियाता है लतियाता है  वह किसी दबंग को  हींक भर  

अब्राहम लिंकन

उसे सिखाना    (अब्राहम लिंकन का अपने पुत्र के शिक्षक के नाम एक पत्र ) उसे पढ़ाना कि संसार में दुष्ट होते है तो आदर्श नायक भी  कि जीवन में शत्रु हैं तो मित्र भी  उसे बताना कि श्रम से अर्जित एक  रुपया बिना श्रम के मिले पांच रूपये से भी अधिक मूल्यवान है  उसे  सिखाना  कि पराजित कैसे हुआ जाता है   यदि तुम उसे सिखा सको तो सिखाना कि ईर्ष्या  से दूर कैसे रहा जाता है नीरव अट्टहास का गुप्त मंत्र भी उसे सिखाना तुम करा सको तो उसे  पुस्तकों   के  आश्चर्य लोक क़ी सैर अवश्य कराना  किन्तु उसे   इतना   समय भी  देना कि वह नीले आकाश में विचरण करते विहग-वृन्द के शाश्वत सत्य को जान सके  हरे- भरे पर्वतों क़ी गोद में खिले...