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अमरेन्द्र कुमार शर्मा का आलेख 'औपनिवेशिक विषाद और वि-उपनिवेशीकरण की आवाजें'

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  फ्रेंज फैनन   हम भले ही खुद के आधुनिक होने का दावा करें लेकिन हमारी मनोवृत्तियां यह साबित कर देती हैं कि सही मायनों में तो हम सभ्य हुए ही नहीं। रंग भेद ऐसी ही मनोवृत्ति है जो आमतौर पर उन श्वेत चमड़ी वाले लोगों का वह फितूर है जिसके चलते वे खुद को श्रेष्ठ मानते हैं जबकि काले अफ्रीकी लोगों को असभ्य और पिछड़ा मानते हैं। यूरोपीय औपनिवेशिक देशों ने एशिया, कैरेबियाई देशों और अफ्रीकी देशों पर अपने शासन को 'व्हाइट मैंस बर्डन' का भ्रामक टर्म गढ़ कर औचित्यपूर्ण साबित करने की कोशिशें की। लेकिन एक न एक दिन उनका यह भ्रम तो टूटना ही था। अफ्रीकी और एशियाई देशों के लोग जब अपने अध्ययन के क्रम में यूरोपीय देश गए तो वहां भी उनके नस्लीय भेदभाव के शिकार हुए।  फ्रेंज ओमर फैनन ऐसे ही विचारक थे जिन्होंने फ्रांस में अपनी पढ़ाई के दौरान अपने साथ होने वाले नस्लीय भेदभाव को महसूस किया। इसी भेदभाव को उन्होंने अपने लेखन में उतारा। अनुभवबद्ध होने के कारण उनका लेखन वैश्विक स्तर पर विश्वसनीय माना गया। अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने  फ्रेंज फैनन के चिन्तन की एक गहन पड़ताल की है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़त...

केट शॉपिन की कहानी 'डेजरे का बच्चा'

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  केट शॉपिन  यह दुनिया विविधवर्णी है। लेकिन यह विविधता ही तब अभिशप्त हो जाती है जब हम इसे अपनी नस्ल, रंग, जाति, बोली, भाषा के नजरिए से इसे देखने लगते हैं। दुनिया के सामने आज भी यह एक बड़ी समस्या है। अपने को सभ्य और सुसंस्कृत कहने वाले यूरोपीय श्वेत लोग काले लोगों को हेय नजरिए से देखते रहे हैं। अमरीका और यूरोप में रंगभेद सम्बन्धी हिंसा आज भी प्रायः होती रहती है। अफ्रीकी, एशियाई देशों पर कब्जा कर श्वेत लोगों ने इनका बेइंतहा आर्थिक शोषण तो किया ही, अपने को तथाकथित तौर पर सभ्य और सुसंस्कृत दिखाए रखने के लिए इन देशों ने 'व्हाइट मैंस बर्डन' का एक मनमाना टर्म गढ़ लिया। केट शॉपिन ने 1893 में एक कहानी लिखी 'डेजरे का बच्चा'। रंगभेद की समस्या को शिद्दत से उभारती  शॉपिन की  यह कहानी महत्त्वपूर्ण है। एक अनुवादक के रूप में श्रीविलास सिंह की नजर दुनिया के उस साहित्य पर रहती है जो महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद उपेक्षित रहता आया है। वे ऐसी रचनाओं के अनुवाद करते हैं  जिससे हिन्दी जगत प्रायः अपरिचित है लेकिन जो आज भी समसामयिक और महत्त्वपूर्ण है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं...