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अविनाश मिश्र की कहानी जहाँ जहाँ गया

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                            अविनाश मिश्र  अविनाश मिश्र मूलतः कवि हैं। अन्य विधाओं में लिखते हुए भी उनका कवि वहां अपने अंदाज में ही मौजूद रहता है। वे अपने लेखन से कुछ नया जोड़ने की सलाहियत रखते हैं।। हाल ही में अविनाश का 'वर्षावास' नाम से नया उपन्यास आया है। इस उपन्यास की भाषा अपने किस्म की अलहदा भाषा है। अपने समकालीनों से भी बिलकुल अलग। शिल्प के तौर पर भी यह एक नया प्रयोग है। पंक्ति दर पंक्ति चिन्तन से भरपूर। यह उपन्यास उन विरोधाभासों को रेखांकित करता है जो हमारे सभ्य समाज की तथाकथित सभ्यता की पोल खोल कर रख देता है। अविनाश के एक वाक्य से इसकी बानगी मिल जाती है 'संकट में श्रम चाहें जिसका हो, अन्ततः श्रेष्ठ के ही काम आता है।' इसी उपन्यास का एक अंश कहानी के रूप में इंडिया टुडे की साहित्य वार्षिकी में प्रकाशित हुआ था जिसे आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं अविनाश मिश्र की कहानी : 'जहां जहां गया'।   जहाँ जहाँ गया  अविनाश मिश्र मैं क्या था?  मेरे पास क्या था?  ...

प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह'

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  प्रेमचंद ऐसे कथाकार हैं जो हिन्दी पट्टी की मनोभूमि से अच्छी तरह वाकिफ थे। उनकी रचनाएं इसकी गवाह हैं। जितनी बार आप इसे पढ़िए, उतनी बार उतने तरह के नए अर्थ खुलते चलते हैं। ईदगाह प्रेमचंद की चर्चित कहानियों में से एक है जिसका विषय वस्तु जाहिर तौर पर ईद जैसा महत्वपूर्ण त्योहार है। ईदगाह पर लगने वाला मेला और बच्चों का उत्साह, इस बात को वही समझ सकते हैं जो गांव पर रहे हों, और जिन्होंने बाकायदा गांव का मेला देखा हो। गांव के बच्चों के लिए मेला देखना किसी उत्सव से कम नहीं होता। तो इस कहानी की पृष्ठभूमि में ग्रामीण मुस्लिम जीवन है। इस कहानी का पात्र हमीद है, जो हिन्दी कहानी के अमर चरित्रों में से एक है। हामिद एक गरीब परिवार का बच्चा है, जो अपनी दादी को रोज जूझते हुए देखता है। एक बांग्ला कहावत है कि अभाव स्वभाव को बदल देता है। अभाव की जिंदगी ने महज चार साल के अनाथ बच्चे हामिद को गम्भीर और काफी जिम्मेदार बना दिया है। कहानी का अन्त जैसे एकबारगी झकझोर सा देता है। ईद के मौके पर मुबारकबाद देते हुए आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं प्रेमचंद की कालजयी कहानी 'ईदगाह'। प्रेमचंद की यह कहानी उस...

फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की की कहानी 'क्रिसमस का पेड़ और शादी'

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  दोस्तोवएस्की फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की  रूसी कथाकार और पत्रकार फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की का जन्म 11 नवम्बर 1821 को मास्को में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे। 15 वर्ष में माँ की मृत्यु के बाद दोस्तोवएस्की ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और मिलिट्री इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला ले लिया। इंजीनियर का पेशा न अपना कर उन्होंने लेखन कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाया। उनका पहला उपन्यास “पुअर फोक” एक सरकारी कर्मचारी के जीवन पर आधरित था। उन्हें सत्ता के विरोध में चार साल जेल में रहना पड़ा और चार साल साइबेरिया में फौज़ में काम करना भी पड़ा। 19वीं शताब्दी के रूस की राजनीतिक सामाजिक और आध्यात्मिक परिवेश में मानवीय स्थितियों का उनकी कृतियों में प्रामाणिक साक्ष्य मिलता है। उनके उपन्यासों में ऐसे मनुष्यों का मन का मनोवैज्ञानिक   अध्ययन मिलता है जिनकी तर्क शक्ति नष्ट हो जाती है या पागल हो जाते हैं या आत्म हत्या करते हैं। उनका मानना था कि मनुष्य खुशी से अधिक आज़ादी को पसंद करता है लेकिन अनियंत्रित आज़ादी घातक होती है क्योंकि इस बात की गारंटी नहीं होती है कि मनुष्य आजादी का सकारात्मक उपयो...

प्रभाकर सिंह की कविताएं

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  प्रभाकर सिंह कवि परिचय  प्रभाकर सिंह, हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में प्रोफेसर हैं। कविता, इतिहास लेखन और भाषा चिंतन में इनकी विशेष रूचि है। 'आधुनिक साहित्य : विकास और विमर्श', प्रतिश्रुति प्रकाशन, कोलकाता और 'आलोचना के दायरे', साहित्य भंडार प्रकाशन, प्रयागराज से पुस्तकें प्रकाशित। वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से 'भारतीय भाषाओं में रामकथा' और लोकभारती, प्रकाशन, प्रयागराज से 'रीतिकाल : मूल्यांकन के नए आयाम' संपादित पुस्तकों का प्रकाशन। हिंदी साहित्य ज्ञानकोष में 5 अध्यायों का लेखन।  साखी, पक्षधर, बनास जन, कथा क्रम, साक्षात्कार और समीक्षा जैसी पत्रिकाओं में विभिन्न लेखों और समीक्षाओं का प्रकाशन। कुछ पत्रिकाओं में कविताओं का भी प्रकाशन। पिछले दिनों कोरोना काल  में वाणी शिक्षा डिजिटल गोष्ठी के अंतर्गत 'हिंदी साहित्य का इतिहास: अध्ययन की नई  दृष्टि विषय पर 31 व्याख्यानों का संयोजन विशेष चर्चा में रहा। संयुक्त परिवार भारतीय जीवन शैली की विशेषता रहे हैं। लेकिन वर्तमान जीवन पद्धति ने इस परिवार व्यवस्था में दरार डाल दी है। पहले हर घर में दादा ...