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विजय प्रताप सिंह की गज़लें

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                                                                        विजय प्रताप सिंह ने अरसा पहले कुछ उम्दा कविताएँ लिखी थीं। बहुत दिनों तक उनका कुछ भी लिखा जब सामने नहीं आया तो ऐसा लगा जैसे वे अपने रचनाकार से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। लेकिन तसल्ली की बात है कि उन्होंने उम्मीदपरक वापसी की है। यह वापसी इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि मुक्त छन्द में कविताएँ लिखने वाला कवि ग़ज़ल अब गज़ल को साध रहा है। शिल्प के स्तर पर भले ही कोई इन ग़ज़लों में मीन मेख निकाले , कथ्य के स्तर पर उन्होंने कोई समझौता नहीं किया है और उनका रचनात्मक तेवर बना हुआ है। अपनी एक ग़ज़ल में विजय लिखते हैं : ' अपनी ज़ुल्मतों का तुम हिसाब क्या दोगे/ कभी पूछ ...

आशीष तिवारी की कविताएं

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आशीष तिवारी किसी भी समय के कवि की प्रतिबद्धता अपने समय और समाज के प्रति होती है। हिन्दी कविता के तमाम ऐसे युवा स्वर हैं जो अपनी प्रतिबद्धता से हमें आश्वस्त करते हैं। आशीष में एक परिपक्व इतिहास बोध भी दिखायी पडता है। अपनी कविता ' इतिहास का भूत ' में आशीष लिखते हैं : ' इतिहास आईना है/ जितना धूमिल करोगे/ उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर। ' आशीष तिवारी ऐसे ही एक कवि हैं जिनकी कविताओं में पक्षधरता स्पष्ट है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है युवा कवि आशीष तिवारी की कविताएँ।   आशीष तिवारी की कविताएं इतिहास का भूत इतिहास के प्रति घृणा फैलाने वाला , उसे नकारने वाला , तब भयभीत हो जाता है , जब उसके सजाये रंगीन मंचों पर इतिहास मुंह चिढ़ाने लगता है इतिहास के आख्यान गम्भीर और चिंतनपरक होते हैं इनका मज़ाक उड़ाने वाला मदारी जैसा दिखने लगता है कभी-कभी उसका हाथ   अपने से बड़े मदारी के हाथ में जाता है   तो वह खुद को मदारी के बंदर जैसा उछलता भी पाता है इतिहास आईना है जितना धूमिल करोगे उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर ...