विजय प्रताप सिंह की गज़लें

विजय प्रताप सिंह ने अरसा पहले कुछ उम्दा कविताएँ लिखी थीं। बहुत दिनों तक उनका कुछ भी लिखा जब सामने नहीं आया तो ऐसा लगा जैसे वे अपने रचनाकार से सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। लेकिन तसल्ली की बात है कि उन्होंने उम्मीदपरक वापसी की है। यह वापसी इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि मुक्त छन्द में कविताएँ लिखने वाला कवि ग़ज़ल अब गज़ल को साध रहा है। शिल्प के स्तर पर भले ही कोई इन ग़ज़लों में मीन मेख निकाले , कथ्य के स्तर पर उन्होंने कोई समझौता नहीं किया है और उनका रचनात्मक तेवर बना हुआ है। अपनी एक ग़ज़ल में विजय लिखते हैं : ' अपनी ज़ुल्मतों का तुम हिसाब क्या दोगे/ कभी पूछ ...