शाहनाज़ इमरानी के कविता संग्रह 'दृश्य के बाहर' पर बसन्त जेतली की समीक्षा

इधर के जिन कवियों ने अपनी कविताओं से ध्यान आकृष्ट किया है उसमें शाहनाज़ इमरानी का नाम प्रमुख है । शाहनाज़ का पहला कविता संग्रह "दृश्य के बाहर" दखल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है । कवि आलोचक बसन्त जेतली ने इस संग्रह की समीक्षा की है । आज पहली बार पर प्रस्तुत है इस संग्रह की बसन्त जेतली द्वारा की गयी समीक्षा । जुगनू की रौशनी से काम नहीं चलने वाला बसन्त जेतली बहुत कुछ है इस दुनिया में और जो है वह प्रायः युग्म में है । खुशी है तो ग़म है , प्रेम है तो घृणा है, दोस्ती है तो दुश्मनी है और उमंग है तो हताशा भी है । हम यह सब देखते हैं, झेलते हैं । इस सब में बहुत कुछ ऐसा भी है जो हम रोज़ देखते हैं । कुछ ऐसा है जो नज़रों से चूक जाता है और कुछ ऐसा भी है जो हम देख कर भी अदेखा कर देते हैं या उसे महज़ अपने नज़रिए से देखते हैं । याने दृश्य तो बहुत कुछ है लेकिन वह हमारी रूचि–अरुचि, सतर्कता और उदासीनता...