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रमाशंकर सिंह की कविताएँ

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रमाशंकर सिंह  मनुष्य अपने होने की सार्थकता को प्रायः संबंधों में तलाशता है. सम्बन्ध वे आधार हैं जिससे जीवन को जीने का एक उद्देश्य मिलता है. जिससे जीवन को एक सार्थकता मिलती है. इन संबंधों के जरिये ही मनुष्य अमरता की परिकल्पना को अपनी संततियों के माध्यम से साकार करता है. रचनाकार प्रायः ही अपनी रचनाओं के माध्यम से इन संबंधों की पड़ताल करता है. शायद यही यह वजह है कि आज भी कवियों की कलम इन संबंधों पर चले बिना नहीं रह पाती. माँ, पिता, पति, पत्नी, प्रेमिका, पुत्र-पुत्री, दोस्त, पड़ोसी से ले कर इन संबंधों के अनन्त छोर हैं. अब तो फेसबुक ने आभासी मित्रता की वह दुनिया भी तैयार कर दी है जिसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर उपस्थित होना जरुरी नहीं होता. युवा कवि रमाशंकर सिंह ने इधर बेहतरीन कविताएँ लिखी हैं. खासतौर पर संबंधों को ले कर उनके यहाँ जो अनुभवजनित कविताएँ हैं, ये कविताएँ हमें बिल्कुल सहज रूप में उन संबंधों के आलोक में ले जाती हैं जिनसे जीवन का एक खुबसूरत सा ताना-बाना तैयार होता है. रमाशंकर इतिहास के छात्र हैं और अपना शोध कार्य करने के पश्चात इन दिनों इन्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टड...

पंकज पराशर का आलेख 'सौ वर्ष बाद भी आख़िर ‘कविता क्या है?’

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पंकज पराशर कविता लिखने वाला प्रायः हर व्यक्ति इस प्रश्न से कभी न कभी अवश्य जूझता है कि 'कविता क्या है?' तमाम बहस-मुबाहिसे के बावजूद आज भी यह प्रश्न प्रासंगिक बना हुआ है. साहित्य इसी मामले में विज्ञान से पूरी तरह अलग है कि इसमें कोई सुनिश्चित निर्णय नहीं दिया जा सकता और तर्क-वितर्क की अपार संभावनाएँ हमेशा बची-बनी रहती हैं. इस प्रश्न को ले कर पहले भी कवि-आलोचक गण अपनी-अपनी राय समय-समय पर व्यक्त कर चुके हैं. युवा आलोचक पंकज पराशर ने इस प्रश्न पर अतीत में हुए कुछ रोचक तर्क- वितर्कों पर सिलसिलेवार नजर डाली है. आज प्रस्तुत है 'पहली बार' पर पंकज पराशर का यह महत्वपूर्ण आलेख - सौ वर्ष बाद भी आख़िर ‘ कविता क्या है ?’      सौ वर्ष बाद भी आख़िर ‘ कविता क्या है ?’ पंकज पराशर जब हिंदी में ‘ गंभीर ’ और कथित ‘ लोकप्रिय ’ कविता के कवियों के बीच की खाई निरंतर बढ़ती हुई संवादहीनता के शिखर तक पहुँच गई हो और साहित्य के इतिहास में उल्लिखित होने की अर्हता प्राप्त कविताएँ छंदमुक्तता को ही समकालीनता का स्थानापन्न समझने लगी हो, तब अपने प्रकाशन से लगभग एक सौ दस वर्...