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नासिर अहमद सिकन्दर का आलेख ‘फिल्मी गीतों का काव्यात्मक स्वरूप’।

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नासिर अहमद सिकन्दर हिन्दी फिल्मों की कल्पना गीतों के बिना की ही नहीं जा सकती। ये गीत हमारी गीतात्मक परम्परा को उद्घाटित करते हैं। घर हो या दूकान, बस, कार हो या फिर टैम्पो सब में ये फ़िल्मी गीत अपनी धूम के साथ सुने जा सकते हैं। इनमें से तमाम ऐसे गीत हैं जो हमारी रूह में बस जाते हैं। तमाम गीत ऐसे हैं जिनके गहरे निहितार्थ हैं। संगीतात्मकता तो सबसे अहम् है ही। नासिर अहमद सिकन्दर ने इन गीतों को आधार बनाते हुए एक आलेख लिखा है ‘फिल्मी गीतों का काव्यात्मक स्वरूप’। इस आलेख को पढ़ते हुए आप निश्चित रूप से अपने कुछ पसंदीदा गीतों से भी जरुर गुजरेंगे जिनका जिक्र नासिर भाई ने अपने इस आलेख में किया है। तो आज पहली बार पर प्रस्तुत है नासिर अहमद सिकन्दर का आलेख ‘फिल्मी गीतों का काव्यात्मक स्वरूप’।               फिल्मी गीतों का काव्यात्मक स्वरूप नासिर अहमद सिकंदर गीत-संगीत के जानकार पुराने फिल्मी गीतों को आज भी ‘ सदाबहार ’ गीत कहते हैं कालजयी नहीं , क्योंकि यह शब्द साहित्यिक कृति के लिये प्रयुक्त होता है। फिल्मी गीत , साहित्य की श्रेणी में...

फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की कहानी 'मारेय नाम का किसान' (अनुवाद : सुशांत सुप्रिय)

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Fyodor Dostoevsky फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की न केवल रूस अपितु विश्व के अप्रतिम उपन्यासकार और कथाकार हैं । दोस्तोयेव्स्की छोटी-छोटी घटनाओं और परिस्थितियों को ले कर जिस सुगमता के साथ अपनी कहानियों की रचना करते हैं वह चकित कर देती है ैं । 'मारेय नाम का किसान' ऐसी ही एक कहानी है जिसमें जेल के बंदियों खासकर राजनीतिक बन्दी एम. के बहाने उस समय के रूस की राजनीतिक, सामाजिक स्थिति के बारे में खुल कर बात की गयी है ैं । तो आज पहली बार पर प्रस्तुत है फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की कहानी 'मारेय नाम का किसान' । मूल रूसी कहानी का अनुवाद किया है कवि-कथाकार सुशान्त सुप्रिय ने ।             मारेय नाम का किसान मूल कथाकार : फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की (अनुवाद : सुशांत सुप्रिय) वह ईस्टर के हफ़्ते का दूसरा दिन था। हवा गर्म थी , आकाश नीला था। सूरज गर्माहट देता हुआ देर तक आकाश में चमक रहा था , पर मेरा   अंतर्मन बेहद अवसाद-ग्रस्त था। टहलता हुआ मैं जेल की बैरकों के पीछे जा निकला। सामान स्थानांतरित करने वाली मशीनों को गिनते हुए मैं बंदी-गृह की म...