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शिव प्रकाश त्रिपाठी का आल्हा

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शिव प्रकाश त्रिपाठी   जन्म- 27 सितम्बर 1988 स्थान-उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले की बबेरू तहसील में किसान परिवार में शिक्षा- स्नातक एवं परास्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय           शोधकार्य (हिंदी साहित्य), कुमाऊँ वि० वि०, नैनीताल से अनुनाद ब्लॉग एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएँ प्रकाशित लोकगीत मानवीय मन की सघनतम एवं सहजतम अभिव्यक्ति होते हैं । लोकगीतों में आल्हा अपने छन्द विधान एवं गायन शैली की दृष्टि से सबसे अलहदा एवं विशिष्ट दिखाई पड़ता है । वीर रस की अभिव्यक्ति से अनुस्यूत आल्हा के बारे में यह ख्यात है कि इसे सुन कर निर्जीवों की नसें भी युद्ध के लिए फड़कने लगती हैं । युवा कवि शिवप्रकाश ने इसी आल्हा छन्द में कुछ कविताएँ पहली बार के लिए भेजीं हैं । तो आइए पढ़ते हैं शिवप्रकाश त्रिपाठी का आल्हा ।   शिव प्रकाश त्रिपाठी का आल्हा   सुशासन की है नौटंकी , घोटालों का राज बनाय एकहि वार कियो व्यापम ने , धर्मराज को दियो बुलाय । छीयालिस तो स्वाहा होई गये , बाकी ग...