संदेश

वंदना शर्मा

चित्र
कविता की दुनिया में वंदना शर्मा एक सुपरिचित नाम है. वंदना शर्मा की कविताएँ अपने अलग तेवर और शिल्प के चलते सहज ही पहचान में आ जाती हैं. वे ‘ कहने के असीम साहस के साथ ’ अपनी बातें रखती हैं और अपनी कविताओं में स्त्री समाज की विडंबनाओं को इस बेबाकी से उजागर करती हैं कि वे महज स्त्री समाज की विडम्बना या समस्या न हो कर पूरे शोषित-दमित समाज की समस्या बन जाती है. कहना न होगा कि आज भी स्त्रियाँ दमितों में दमित और शोषित हैं. आखिर क्यों ऐसा होता है कि स्त्री कुछ बोले, विद्रोह करे तो बेलगाम कह दी जाती है. आखिर एक लडकी के व्यक्तित्व को किन-किन प्रतिमानों द्वारा कब तक तौला जायेगा. शरीर की नाप-तौल, रंग, रसोई, ड्राईंग रूम, डिग्री. क्या-क्या प्रतिमान होंगे उसे मापने जांचने के? क्या यह समाज का दोयमपना नहीं. लड़कों यानी पुरुषों के लिए दुनिया की सारी बेहिसाब छूटें और लड़कियों के लिए जगत के सारे बंधन. यह कहाँ का न्याय है, कैसा समाज है जो अपने को आधुनिक कहते-कहलाते नहीं अघाता. लेकिन अपना सामंती व्यवहार किसी कीमत पर छोडना नहीं चाहता. क्या स्त्री का का अपना व्यक्तित्व ही उसे बताने के लिए काफी नहीं? वं...

महेश चन्द्र पुनेठा का आलेख 'अटूट और असंदिग्ध जनपक्षधरता के कवि : विजेन्द्र'

चित्र
'अटूट और असंदिग्ध जनपक्षधरता के कवि : विजेन्द्र' महेश चन्द्र पुनेठा  कोई अगर मुझसे कविवर विजेंद्र की एक और सबसे बड़ी विशेषता के बारे में पूछे तो मेरा एक वाक्य में उत्तर होगा- विजेंद्र अटूट और असंदिग्ध जनपक्षधरता के कवि हैं। उनकी जनपक्षधरता का परिचय इस बात से ही चल जाता है कि जब अज्ञेय की जन्म शताब्दी वर्ष में तमाम प्रगतिशील वामपंथी अज्ञेय की कला से मुग्ध होकर उनकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ रहे थे विजेंद्र ने ’असाध्य वीणा’ पर साहस और विवेक से लिखते हुए अज्ञेय की लोक से दूरी और जनविमुखता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि क्यों यह कविता एक बड़ी व अर्थवान कविता नहीं कही जा सकती है? विजेंद्र इस आलेख में कहते हैं -  'जब कवि जनता से-अपने लोक से-एकात्म होता है-उसके संघर्ष में शरीक होता है तभी वह शिवेतरक्षतये की बात सोच सकता है। आध्यात्म और रहस्योन्मुखता से वह जनता के संघर्ष में न तो शरीक हो सकता है। न वह शिवेतरक्षतये की बात सोच सकता है।’ कविता का सबसे बड़ा प्रयोजन यही है। यही उसकी सार्थकता है। विजेंद्र मानते हैं कि यह कविता शिवेतरक्षतये की कसौटी में खरी नहीं उतर...

राकेश कुमार उपाध्याय का आलेख 'रचनाकार मार्कण्डेय'

चित्र
मार्कण्डेय जी पर विशेष प्रस्तुतीकरण के क्रम में तीसरी कड़ी के रूप में आज राकेश उपाध्याय का आलेख ‘ रचनाकार मार्कण्डेय ’।     'र चनाकार मार्कण्डेय' राकेश कुमार उपाध्याय रचना का सन्दर्भ समाज से होता है या कह सकते हैं कि हर रचना समाज सापेक्ष होती है। रचना की उपादेयता तभी संभव है जब वह समाज की संरचना को सही दिशा दे। साहित्य के माध्यम से रचनाकार इसी सामाजिक संरचना को एक दिशा देता है.  मार्कण्डेय ऐसे ही कहानीकार हैं जिन्होंने समाज की नब्ज को पकड़ने की कोशिश ही नहीं की अपितु उसे एक नया आयाम भी दिया। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के बराई गांव में 2  मई 1930 को जन्मे   मार्कण्डेय का साहित्यिक अवदान उनके जीवन काल में साथ रहा और 18 मार्च 2010 को इसका पटाक्षेप हुआ. यह साहित्य के एक महत्वपूर्ण पक्ष का अवसान है, मार्कण्डेय ने भारत के ग्रामीण जीवन को जिस सजीवता के साथ प्रस्तुत किया और अपने परिवेशीय दृष्टि एवं आतंरिक अनुभव के पक्ष को कहानी की कला में एक सजीव दृष्टि देने का कार्य किया वह साहित्य की महत्वपूर्ण विशेषता है।  लेखकीय रचनात्मकता का गुण है...

प्रणय कृष्ण का आलेख 'मार्कण्डेय : स्मरण में है आज जीवन'

चित्र
मार्कण्डेय  जी लेखक होने के साथ साथ एक बेहतर इंसान भी थे। अपने समीप आने वाले किसी भी व्यक्ति से  मार्कण्डेय  जी जिस सहजता से मिलते और आव-भगत करते थे वह आमतौर पर इतनी बड़ी कद-काठी के लेखकों के जीवन व्यवहार में प्रायः नदारद मिलता है। नयी पीढ़ी से वे हमेशा अत्यंत उत्साह से मिलते और उन्हें रचनाधर्मिता के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। वामपंथ के प्रति उनकी प्रतिबद्धता आजीवन बनी रही. कई धडों में बटे वाम लेखक संगठनों में एका के हामी मार्कंडेय जी किसी भी तरह रचनात्मकता को बढ़ावा देने के पक्षधर थे।   मार्कण्डेय  जी के जन्म दिन पर विशेष प्रस्तुतीकरण के क्रम में दूसरी कड़ी के अंतर्गत प्रस्तुत है युवा आलोचक प्रणय कृष्ण का एक आत्मीय संस्मरण। मार्कण्डेय : स्मरण में है आज जीवन  प्रणय कृष्ण  मार्कण्डेय  जी से पहली मुलाक़ात की तिथि तो याद नहीं, लेकिन वो मंज़र और आस-पास का घटनाक्रम ज़रूर याद है जिसने इस मुलाक़ात को साधारण मुलाक़ात नहीं रहने दिया था. मैं इलाहाबाद में तीसरी पारी के लिए अध्यापक बनकर सितम्बर १९९६ में आ चुका था. जब इलाहाबाद में छात्र था तो कथाकार...