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हेरम्ब चतुर्वेदी के उपन्यास की अभिषेक मुखर्जी द्वारा की गई समीक्षा

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  इतिहास केवल उन शासकों का ही नहीं होता जो गद्दीनशी होते हैं बल्कि उनका भी होता है जो शासक तो नहीं बन पाते लेकिन राज्य को संवारने में नेपथ्य से ही उल्लेखनीय  भूमिका निभाते हैं। जहाँआरा मुग़ल इतिहास की ऐसी ही एक पात्र है जिसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल पाती । जहाँआरा मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी थी जो उसकी विश्वासपात्र थी। राजनीतिक विषयों में उनका खासा प्रभाव था। शाहजहाँ अक्सर उससे सलाह लेता रहता था। जब औरंगजेब के साथ शाहजहाँ का विवाद हुआ, तो केवल जहाँआरा ही थी जिसने सुनिश्चित किया कि शाहजहाँ को माफ़ कर दिया जाए। हेरम्ब चतुर्वेदी ने जहाँआरा पर एक उम्दा ऐतिहासिक उपन्यास 'जहाँआरा - एक ख्वाब, एक हक़ीक़त' लिखा है। इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए अभिषेक मुखर्जी लिखते हैं "अध्यात्म की तरफ झुकाव रहते हुए भी, दारा की वीभत्स हत्या और अपने ही पिता को कैद करने पर भी क्यों जहाँआरा ने औरंगज़ेब के शासन काल में भी 'मल्लिका ए जहाँ' के पद पर आसीन होना स्वीकार किया; उन्होंने औरंगज़ेब को मना क्यों नहीं किया या फिर नूरजहाँ की भाँति सांसारिक बंधनों से मुक्त हो कर पृथ...

आदित्य की कहानी 'लेटरबॉक्स'

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  आदित्य हर दौर अपने आप में बदलाव की बयार लिए होता है। कभी ये बदलाव प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई पड़ते हैं तो कभी अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ इस तरह घटित होते रहते हैं कि हम उनकी आहट तक नहीं सुन पाते। लेकिन रचनाकार की खूबी यही होती है कि वह न केवल इन बदलावों की पहचान करता है बल्कि उसे अपनी रचनाओं में दर्ज भी करता है। यह समय ऐसे ही कई एक बदलावों का दौर है, जिसके बारे में पहले कभी हम सोच भी नहीं सकते थे। 'लिव इन रिलेशन' हमारे समय का सच है। सेम जेंडर के दो लोगों के एक साथ सार्वजनिक रूप से जीवन बिताने का निर्णय लेने वालों का समय है यह। अभी तक यह सब अनैतिक माना जाता था। तमाम असहमतियों के बावजूद अब इसके लिए समाज में जगह बनने लगी है। हमारे समय का यह यथार्थ है। आदित्य हमारे समय के प्रतिभाशाली रचनाकार हैं। उन्होंने अपनी कहानी 'लेटरबॉक्स' में सुकृति और राशि के मनोभावों को खुबसूरती से व्यक्त किया है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं युवा कहानीकार आदित्य की कहानी 'लेटरबॉक्स'। 'लेटरबॉक्स' आदित्य 'मैं उन सभी औरतों की स्मृतियों का कुल जमा हूँ जिन्होंने प्यार किया और पीड़ाएं झेल...

आशीष सिंह का आलेख 'जीवन की खातिर लगातार जीवन से संघर्ष करती कहानी'

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  अमरकांत समाज मनुष्य की मूलभूत जरूरत है। हर मनुष्य इससे जुड़ कर ही आगे का रास्ता तय करता है। लेकिन समाज उसी मनुष्य को तवज्जो देता है जो उसके लिए विशिष्ट होता है। सामान्य मनुष्य  की उपयोगिता जब तक बनी रहती है, समाज के लिए वह उपादेय बना रहता है। जैसे ही वह व्यक्ति अनुपयोगी दिखाई पड़ने लगता है, समाज उसे अकेला मरने के लिए छोड़ देता है। लेकिन मौत पर भी चाहतों का वश कहां होता है। 'जिन्दगी और जोंक' अमरकांत की ऐसी यादगार कहानी है जो अपने लिखे जाने के सत्तर साल बाद भी प्रासंगिक बनी हुई है। अपने आलोचनात्मक आलेख में आशीष सिंह अमरकांत के आत्मकथ्य के हवाले से लिखते हैं ' सदियों से उसे इतिहास ने इतना ही दिया है और उसी पूंजी को कलेजे से चिपकाये वह जीवित रहने का ढंग सीख गया है। समाज में ऐसा भयंकर अन्तर्विरोध क्यों है। रजुआ सपना देख सकता है। वह उसे रोज देख सकता है। घंटों उसके बारे में सोचता अपने अन्दर दूर-दूर तक देखता और चारों ओर कष्ट घोर अन्धकार में एक रोशनी टिमटिमाती नजर आती है। कैसी रोशनी थी वह! उसके अन्दर परिवर्तन की प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी थी। वर्षों वह प्रक्रिया चलती रही.. ‌....