सोनी पाण्डेय की कहानी 'बदचलन कौन?'

सोनी पाण्डेय

हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति आज भी बहुत हद तक दोयम दर्जे की है। जीने की उसकी जद्दोजहद भी (पुरुषों की नज़रों में) हमेशा शक के घेरे में रहती है। वह कोई काम करे तुरन्त बदचलन और बदजात हो जाती है जबकि पुरुष वर्ग समाज में कुछ भी कदम उठाए, कोई भी काम करे, हमेशा निष्कलंक और प्रभावी स्थिति में रहता है। उसके पास स्त्री को बदनाम करने का जैसे एक बड़ा हथियार होता है. लेकिन समय और परिवेश में बड़ी तेजी से बदलाव आया है। हर कदम पर संघर्ष करने वाली स्त्री के जीने का जज्बा बढ़ा है, अब ये स्त्रियाँ,  हकीकतों को जानने-समझने लगीं हैं। इसीलिए तो अब वे उस पुरुष वर्ग की आँखों में आँख डाल कर कह सकने का माद्दा रखती हैं कि वास्तव में बदचलन कौन है? सोनी पाण्डेय ने बड़े साहस के साथ इस मुद्दे को अपनी इस कहानी में उठाया है। आइए पढ़ते हैं सोनी पाण्डेय की यह कहानी 'बदचलन कौन?'  
   
बदचलन कौन?

सोनी पाण्डेय

नीम के चौतरे पर बैठी मिडवाईफ चम्पा मौसी बारी -बारी से बच्चोँ के हाथ पर
चेचक के प्रतिरोधक टीके लगाये जा रही थीँ। औरतेँ समवेत स्वर मेँ देवी गीत गा रही थीँ . . . . . निमिया की डरिया मईया डाले ली झुलनवा हो कि झूली-झूली ना . . . . . .। मतहारी नीम की पत्तियोँ से टीके लगने के उपरान्त झाडती और पाँच रुपये का चढावा लेकर कटोरे मेँ डाल कर कुछ बुदबुदाती। वातावरण भक्तिमय हो उठा था। औरतेँ कतार मेँ अपने नन्हेँ -मुन्नोँ को ले कर खडी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थीँ। दिवाकर पाण्डे अपने दुवार पर बैठे इस दृश्य को देख कर कुढ रहे थे। क्रोध से काँपते हुए बोले . . . . इस छिनाल के हाथोँ से देवी न दवा लेगी न दुवा . . . .देखना कह देता हूँ , नन्हेँ यादव, सब मारे जाएँगे देवी के कोप से। नन्हेँ यादव अपनी लाठी का टेक ले चिँतित होते हुए बोले  . . . का करीँ ऐ बाबा , आप कह तो सहीये रहे हैँ , कौनोँ चारा भी तो नहीँ, इहाँ तीन-चार कोस मेँ कोई दूसरी मिडवाईफ नहीँ है, जाऐँ तो कहाँ जाऐँ। शहर से बडका बेटा चिट्ठी पठाये हैँ, बडी बेदर्दी से लिखा है कि जो लडकोँ को टीका न लगवाया तो शहर उठ ले जाऐँगेँ। आपे कहेँ, इस बुढवती मेँ नात -नतगुर बिन कैसे रहेँगेँ? घर काटने लगेगा, मलकिनिया नहीँ रहीसब उजर जाऐगा। नन्हेँ यादव कोँछी से सूरती निकाल  कर ठोँकने लगेदिवाकर पांडे ने चुटकी भर खैनी होठोँ के नीचे दबाते हुए कहा . . . . . हूँह,  नन्हेँ! इस छिनार ने गाँव भर की औरतोँ को बिगाडने का बींडा उठाया है, हमारी तीसरी आँख देख रही है अब तो अहिराने मेँ भी लाली-इसनोँ खूब बिका रहा है, मियाईन की दौरी खलिया जाती है। . . . सब साले डूबेँगेँ, फिर न कहना, चेताया न था।

दिवाकर पांडे चम्पा मौसी के वज्र दुश्मन थे, लेकिन चम्पा मौसी भी कम न थीँ
वो डाल - डाल, ये पात - पात। चम्पा की दवाईयोँ के आगे उनकी ओझयिती की दुकान बिलबिलाने लगी थीअतः इस ताक मेँ रहते कि कैसे इसे गाँव से खदेड भगाऊँ लेकिन ये काम इतना आसान नहीँ था। दिन बीतते रहेँ, दिवाकर पांडे कहानियाँ गढ - गढ के लोगोँ को  सुनाते रहे । चम्पा मौसी को पति ने छोड के दूसरा ब्याह कर लियादो बेटियोँ को ले कर मायके पहुँचीभाईयोँ ने ठेक न लेने दिया बेटियोँ वाली जवान औरत कहाँ जाएँ . . .

 
आठवीँ पास चम्पा को सहेली का आसरा मिलापति स्वास्थ्य विभाग मेँ थातीन -पाँच करके मिडवाईफ की नौकरी मिली। जिन्दगी की गाडी चल निकली, पैसा हो तो जीवन सम्भव है, चम्पा को समझ आने लगा। चम्पा की पहली समस्या दूर हुई तो दूसरी पहाड की तरह आ कर खडी हो गयी। सुन्दर अकेली औरत के लिए स्वास्थ विभाग की नौकरी किसी नर्क से कम न थीँ , कभी किसी डॉक्टर  के साथ नाम जुडता कभी कम्पांउडर से । बेटियोँ का मुँह देख दुनिया के ताने सहते, रोते - धोते चम्पा मौसी जीवन समर मेँ आगे बढ रही थीँ। चारोँ गाँव की औरतोँ की दीदी चम्पा, देखते - देखते सबके बच्चोँ की मौसी बन गयी। सबसे हँसने - बोलने, रिगाने - चिढाने के कारण चम्पा मौसी चट्टी - चौपाल तक चर्चित रहने वाली छिछोरी औरत कही जातीँ। इसी बीच एक घटना घटीकिसी ने चम्पा मौसी के घर मेँ घुस कर चोरी की।  बच्चियोँ और उनसे मार -पीट भी की।  बेचारी की मेहनत की सारी कमाई लूट गयीअकेली औरत, इसमेँ भी लोगोँ को खोट नजर आने लगा । दस यार पाल रखा है ससुरी ने कौनोँ ने बजा दिया, आदि- आदि कहते फिरते दिवाकर पांडे।

दिवाकर पांडे हाथ धो कर चम्पा मौसी के पीछे पड गये
दाव भुनाने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोडना चाहते थे । अफवाह उडा दिया, नौकरी दिलाने वाला राय फसाऐ बैठा है। काना - फूसी का दौर शुरु हुआ । खबर चम्पा मौसी की सहेली तक पहुँची कोहराम मच गया,  दोनोँ सहेलियोँ मेँ झोँटा - झोँटी सब हुआ, राय बेचारे बिना कुछ किए बदनाम हो गयेदिवाकर पांडे विजयी। किन्तु जो आगे हुआ वह अप्रत्याशित थाकिसी ने सपने मेँ भी  कल्पना नहीँ की होगी। एक शाम अचानक राय चम्पा मौसी के घर आयेऔर जो आये तो यहीँ के हो कर रह गये।

दिवाकर पांडे ने पंचायत बुलाया
गाँव क्षेत्र से दोनोँ की बेदखली की घोषणा हुई। चम्पा मौसी तमतमाती हुई  महापंचायत के बीच बैठे दिवाकर पांडे के पास पहुँचीकालर पकड कर जोर का तमाचा गाल पार जडते हुऐ पूरे पंचायत को ललकारते हुए कहा .. . . अरे पंचो ! हूँ मैँ छिनालरक्खे हूँ राय कोराय मर्द है मर्दइस पांडे की तरह मेहरिया नहीँजो किया डंके की चोट पर कियानाम जुडते हाथ थाम लिया . . .पंच प्रमुख के निकट पहुँच कर चुटकी बजाते हुऐ कहा . . . . हे मुन्शी जी सूप हँसे तो हँसे चालन कैसे हँस जीकहो तो बताऊँ तुम्हारे कुल की कथा सबको .. . . .  कब किसने ,...   कितने पेट कछाऐ - पोछाय। 

मुन्शी जी मुँह छिपाऐ चलते बने बाकी चार पंचोँ की ओर पलटते ही चम्पा मौसी रौद्र रुप धारण कर चुकी थी . . . गाँव बहरियाओगे विजयी सिँहतनी ये तो बताते जाओ गाँव सभा को कि तू क्या करने रोज खडहरे जाता है। तब तक पूरी पंचायत मौन तमाशा देख रही थीबचे तीन पंच नजर चुरा  कर भाग निकले थे। सभी स्तब्ध थे। मुन्ना यादव लाठी का टेक ले खडे हुए  मुस्कुराते हुए कहा .. . . चलो भाई लोगदेख लिया, बदचलन कौन, छिनाल कौन? . . . यहाँ साले सब बदचलन और सब छिनाल हैँ।

सम्पर्क-

सोनी पाण्डेय
कृष्णा नगर, सिधारी
आजमगढ।

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं)

टिप्पणियाँ

  1. ग्रामीण परिवेश पर बहुत अच्छी कहानी | आंचलिक शब्दों का बढ़िया प्रयोग | एक अकेली औरत और समाज का उसके प्रति व्यवहार का अच्छा वर्णन | कुल मिलाकर बहुत अच्छी रचना | बधाई इस रचना के लिए |

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  2. बहुत सुंदर रचना। पढ़कर मन मुग्ध हो गया...

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  3. सुन्दर कहानी! आपको हार्दिक बधाई!

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  4. सुन्दर रचना ।बधाई स्वीकार करें ।

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  5. सुन्दर रचना ।बधाई स्वीकार करें ।

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  6. बहुत बढ़िया रचना ग्रामीण परिवेश पर... बधाई हो।

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  7. अच्छी लघु कथा ...
    - कमल जीत चौधरी

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  8. देशज शब्दों की महक से सजी इस कहानी का प्रवाह मन को अंत तक बाँध कर रखता है | बधाई...

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